"दृष्टिकोण"(कहानी)
"दृष्टिकोण"(कहानी)
आज श्रीमती विभा शर्मा के घर एक शानदार पार्टी का आयोजन किया गया था। उनका बेटा वैभव देश के प्रतिष्ठित कॉलेज से एम. बी. ए करके अब यू. एस की एक प्रसिद्ध कम्पनी ज्वाइन करने यू. एस जा रहा था। वैभव अपनी सफलता का श्रेय पूरी तरह अपनी माँ को ही देता था। वास्तव में विभा ने एक ऊँचे ओहदे पर काम करते हुए सारी जिन्दगी अच्छी कमाई की थी। इसीलिए वैभव और उसकी जुड़वाँ बहन स्निग्धा को कभी पैसे की कमी महसूस नहीं हुई।
स्निग्धा ने भी एम .बी .ए किया था और अब वह सिंगापुर की एक कम्पनी में काम कर रही थी। उसका काम ऑनलाइन ही था, जिसे वह घर पर ही रहकर कर लेती थी। दोनों बच्चों की पढ़ाई में बहुत खर्च हुआ लेकिन विभा ने उनकी योग्यता को कभी पैसे के सामने कमजोर नहीं पड़ने दिया। आज सबसे ज्यादा विभा ही चहक रही थी। उसे वैभव की सफलता पर गर्व तो था ही, अपनी सामर्थ्य पर भी उसे बड़ा गुरूर अनुभव हो रहा था। वह बड़ी चहकती हुई मेहमानों का स्वागत कर रही थी।
जब किसी ने वैभव से पूछा कि वह अपनी सफलता का श्रेय किसको देता है तो उसने कहा "ऑफ कोर्स मम्मी को, वही मेरे लिए सब कुछ हैं।" स्निग्धा ने देखा कि यह सुनकर पापा कुछ असहज से हो गए और चुपचाप दूसरी ओर चले गए। स्निग्धा की कोशिश रही कि पार्टी में वह पापा के साथ ज्यादा से ज्यादा रह सके।
रात को जब पार्टी ख़त्म हो चुकी थी और घर में सब आराम के मूड में आ गए थे, स्निग्धा ने वैभव को टैरेस पर बुलाया। यह बचपन से ही उन दोनों की पसंदीदा जगह थी। यहाँ बैठकर वे दोनों देर तक बातें किया करते थे। स्निग्धा ने पूछा "वैभव! तुझे पता है न कि जब तू और मैं बहुत छोटे थे, तब माँ और पापा एक ही ऑफिस में काम करते थे।
"हाँ, पता है, क्यों? मेरा मतलब है कि आज तू यह बात क्यों पूछ रही है?"
"फिर तो यह भी पता ही होगा कि उन दिनों हम दोनों की देखभाल एक आया करती थी, जिस पर घर के और भी बहुत से कामों की जिम्मेदारी थी। एक दिन माँ पापा को पता चला कि आया हम दोनों को दूध के साथ जरा सी अफीम देती थी ताकि हम दोनों शान्त और निढाल से पड़े रहें और उसे तंग न कर सकें।
"हाँ, और यह बात जानकर मम्मी पापा के पैरों तले जमीन खिसक गयी थी।" वैभव बोला "उस आया को तो पुलिस के हवाले कर दिया गया था, लेकिन माँ और पापा दोनों के सामने यह समस्या खड़ी हो गयी थी कि हमारी देखरेख कैसे हो! उस समय ऐसे क्रच भी नहीं थे, जहाँ बच्चों को छोड़ा जा सके।"
"यही तो बात थी। मम्मी पापा दोनों बहुत चिंतित थे हमारी सुरक्षा के लिए।" स्निग्धा बोली, "दोनों के सामने एक ही उपाय था कि उनमें से एक अपना जॉब छोड़कर घर पर रहे और बच्चों की देखभाल करे। मम्मी के सामने अपनी उन सहेलियों के उदाहरण थे जिन्होंने घर और बच्चों के लिए जॉब कुछ समय के लिए छोड़ा और फिर वे दोबारा ज्वाइन ही नह
ीं कर सकीं। मम्मी उनका फ्रस्ट्रेशन देख चुकी थीं इसलिए वे जॉब छोड़ने वाली बात पर बिल्कुल राज़ी नहीं थीं। ऐसी स्थिति में पापा ने ही झुकना उचित समझा। उन्होंने उस समय अपना जॉब छोड़ने का निश्चय किया। उन्होंने सोचा था कि दो साल बाद जब हम दोनों प्ले स्कूल जाने लगेंगे तब वे अपना ऑफिस फिर से ज्वाइन कर लेंगे।
"फिर पापा ने ज्वाइन क्यों नहीं किया ? जैसे कुछ सोचते हुए वैभव ने पूछा।
"जब पापा ने ज्वाइन करना चाहा तो पता लगा कि दो साल तो बहुत बड़ा अंतराल है। दो साल में बड़े बदलाव आ गए थे। पापा को अपने बराबर के लोगों यहाँ तक कि मम्मी के नीचे रहकर काम करना पड़ता। यह करना असंभव नहीं, तो मुश्किल तो था ही। इससे अच्छा तो यह होता कि पापा कहीं और काम कर लेते। फिर कहीं और काम की तलाश में समय निकलता चला गया।
एक ओर पापा का जॉब के बिना वक्त बीता जा रहा था तो दूसरी ओर घर की सारी जिम्मेदारियाँ या तो पापा ने खुद ही ओढ़ ली थीं या यह कहो कि सबको आदत पड़ गयी थी घर के प्रत्येक काम के लिए पापा पर आश्रित रहने की।
कोई उचित जॉब न मिलने पर पापा ने कोई बिज़नेस करने की भी कोशिश की किन्तु वह कोशिश भी सफल न हो सकी। मम्मी पदोन्नति होने पर और भी व्यस्त होती चली गईं और पापा एक आम भारतीय गृहिणी की तरह घर की जिम्मेदारियों में और भी उलझते चले गए और ज़िन्दगी में उपेक्षित भी होते चले गए।"
स्निग्धा का स्वर पापा की भावनायें समझते हुए और भी स्निग्ध हो आया। वह बोली," वैभव! माँ ने हमारे लिए जो कुछ किया, वह जगजाहिर है। लोग कहते हैं कि माँ ने हमारी ज़िन्दगी बना दी पर क्या तुझे नहीं लगता कि पापा के किये को श्रेय न देना पापा के प्यार को झुठलाना होगा। क्या बचपन से लेकर बड़े होने तक हमारी हर छोटी बड़ी जिम्मेदारी के लिए पापा उपलब्ध नहीं रहे हैं?
पी टी मीटिंग हो तो पापा, होमवर्क करना है तो पापा, हम बीमार हैं तो देखभाल के लिए पापा, घर की हर छोटी बड़ी परेशानी का एकमात्र इलाज पापा। सच तो यह है कि मम्मी अपने काम में पूरा समय और अटेंशन दे सकीं क्योंकि उन्हें घर की जिम्मेदारियों से निश्चिन्त किया हुआ था पापा ने। दुनिया न समझे, न सही पर हमें तो पापा के प्यार और योगदान को समझना ही चाहिए।"
वैभव भी गहन विचारों से निकला हो जैसे, बोला, "बात तो तूने सही कही है, मैंने कभी ऐसे सोचा ही नहीं था।"
वह कुछ कहने को मुड़ा तो चौंककर बोला, "पापा, आप!"
स्निग्धा को भी पता नहीं चला कि पापा कब आये! पर पापा को देखकर समझ आ रहा था कि पापा ने उनकी बातें सुन ली हैं। वैभव आ कर पापा से लिपट गया, उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे। बस रूँधे गले से इतना ही बोला "थैंक यू पापा"! पापा ने भी उसे अपने कलेजे से लगा लिया। स्निग्धा की आँखों में भी ख़ुशी के आँसू थे।