बुढापे का दर्द
बुढापे का दर्द


“आ... बैठ, मेरे पास”
मैं, झट उनसे लिपट गई और उनके मुरझाये चेहरे को गौर से देखते हुए बोली, “ पापा, लगता है रात को आप ठीक से सोते नहीं ! इसलिए आँखों के नीचे काले घेरे बन गये हैं”
“ओह, तू तो खामखा परेशान होते रहती है मुझे तेरी शादी की फ़िक्र है अब एक ही सप्ताह बचा है,तेरा ब्याह होगा, दुल्हन बनेगी...फिर ससुराल चली जाएगीआज तेरी माँ रहती, तो घर में अलग ही रौनक होती ! तुझे हल्दी लगती, महिलाएं रस्मों के गाने गाती दिनभर सगे-सम्बन्धियों का आना-जाना लगा रहता पर, चाहकर भी, मैं तेरे लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूँ ! “
“ऐसा मत कहिये पापा ! माँ के गुजरने के बाद आपने माँ का भी फर्ज निभाया पर, मैं माँ की तरह आपका ख्याल नहीं रख सकी ! बहुत ग्लानि हो रही है मुझे !
सब याद है मुझे, चाय से पहले माँ आपको सत्तू का शरबत देना कभी नहीं भूलती ! ताकि आपको एसिडिटी न बढ़ जाय ! जब भी आप खाना खाने बैठते, गर्म रोटी आपके आगे परोसती, बासी रोटी अपने हिस्से में छिपा कर रख लेती ! रात को सोने से ठीक पहले माँ आपके बिछावन का चादर बदलना न भूलती... हूं...हूं..हूं....”
“अरेरे.....तू रो रही है ? आजकल की पढ़ी-लिखी लड़कियाँ ससुराल जाने वक्त भी नहीं रोती !”
“पापा, मुझे ससुराल की नहीं, आपकी फ़िक्र है”
“ओह! मेरी चिंता छोड़ आस-परोस में इतने सारे लोग हैं बता,पड़ोसी किस दिन के लिए होता है ?और घर के सारे कामों के लिए बुधनी तो है ही । तुझे सब पता है, वह खाना भी अच्छे से बनाती है”
“हाँ...सच में, बुधनी मौसी आपका बहुत ध्यान रखती है टू कॉपी माँ जैसा घर संभालना जानती है वो”
“ सुन,तेरी माँ ब्याह कर जब इस घर में आयी थी तो तुम्हारी दादी ने बुधनी को तुम्हारे माँ का हाथ बटाने, उसे साथ रख दिया था समवयस्क होने के कारण उसे तेरी माँ से घनी दोस्ती थी
बुधनी बाल विधवा हो गई ...इसी वजह से ससुरालवाले ने उससे नाता तोड़ लिया ! भाग्य का विडंबना देखो ! जब तेरी माँ को डॉक्टर ने जवाब दे दिया, “अब ये कम दिनों की मेहमान है...इसे दवा की नहीं, दुआ की जरूरत है”
सुनते ही मैं पूरी तरह से टूट गया। नन्हीं सी जान को लेकर मुझे अपना जीवन अथाह दिखने लगा पर, तेरी माँ अंत घड़ी तक मुझे ढांढस बांधती रही, अपने ऊपर भरोसा रखना, ईश्वर जरुर तुम्हारा साथ देगा
एक रात वो बुधनी को सराहने में बैठाकर बोली, “ मेरे जाने के बाद, तुम गुड़िया और अपने मालिक ( पति ) का ख्याल रखना एक तुम ही हो,जिस पर मुझे पूरा भरोसा है। गुड़िया पढ़-लिखकर,जब ससुराल चली जायेगी तब जाकर मेरी आत्मा को शान्ति मिलेगी”
हाँ, ये सच हैतेरी माँ के देहांत के बाद, बुधनी ने अपने संतान की तरह तेरा ख्याल रखा और मेरा ...“
अभी पापा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि, बुधनी मौसी चाय लेकर पहुँच गई हमलोगों को कप थमाते हुए वह बाहर बरामदे पर बैठकर चाय पीने लगी
मैंने साहस बटोरते हुए पापा से कहा, “ मुझे आपसे कुछ कहना है”
“ हाँ..बोल, जरुर विदाई के लिस्ट में कुछ सामान छूट गया है ? ”
“ पहले आप मेरे सर पर हाथ रखिये, फिर मैं बताती हूँ”
“लो, रख दिया ससुराल जाने वाली है...फिर भी बच्चों की तरह इसे जिद्द पर अड़े रहने की आदत नहीं छूटी !”
“पापा, मेरी शादी से पहले आपको बु...धनी मौ...सी से शादी कर...नी पड़ेगी ” किसी तरह डरते-डरते मैंने अपनी बात कही
“हे भगवान ! कैसे सोच लिया तुमने ? ये नामुमकिन है और मेरे मान-मर्यादा के खिलाफ भी
यदि तुम्हारे ससुराल वाले सुन गये तो तुम्हारी शादी नहीं होगी ! इतना सुंदर घर-वर सब हाथ से निकल जाएगा ! मैं जीते जी मर जाऊँगा तू पढ़ी-लिखी होकर भी ऐसी बातें करती है !? “
“ पढ़ी-लिखी हूँ पापा, तभी आपसे ऐसी बातें कहने की हिम्मत जुटा पायी । मैं बुधनी मौसी की तरह मर्यादा का खोखला चादर ओढकर, जीवन होम कर देना उचित नहीं समझती !
माँ ने बचपन में एक कहानी सुनाई थी, उसका सार था -- जवानी में भारी से भारी दुःख भी बर्दास्त हो जाते, पर... बुढापे का दुःख अकेले सहा नहीं जाता !”
अकस्मात बुधनी मौसी को सामने खड़ा देख, पापा की आँखें नम हो गईं अपना सिर नीचे झुकाते हुए वो बुदबुदाए, “ बेटी, किताब की भाषा तो सभी पढ़ लेते हैं पर... बुढापे के दर्द की भाषा विरले ही संतान पढ पाते !”