बराबर ज़िम्मेदारी
बराबर ज़िम्मेदारी
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बड़ी परेशान सी थी विभूति आज। सुबह से ऑफिस में कभी इस बंदे से कभी उस बंदे से बात किए जा रही थी पर उसकी परेशानी का कोई हल नहीं निकल रहा था। इसी सब के बीच में वो कभी अपनी लगभग छह महीने की बेटी रीवा को संभाल रही थी और कभी घर के काम निपटा रही थी ।
किसी तरह उसने रीवा को सुलाया और सारे दिन की परेशानी से तंग आकर वो थक कर बैठ गई। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। उसने दरवाज़ा खोला। सामने उसके पति विशु थे। विशु को देखते ही उसकी रही सही हिम्मत भी टूट गई और वो उसके गले लगकर रो पड़ी।
विशु उसे रोता देखकर घबरा सा गया और चुप कराने की कोशिश करने लगा। बड़ी मुश्किल से उसने विभूति को चुप कराया और सारी बात बताने को कहा। विभूति ने उसे बताया कि उसके ऑफिस वालों ने उसे और मैटरनिटी लीव देने से मना कर दिया। रीवा के जन्म के कुछ समय पहले से ही विभूति मैटरनिटी लीव पर थी और अब जब रीवा छह महीने की होने वाली थी तो वो चाह रही थी कि उसे थोड़ा और छुट्टियां मिल जाती पर ऐसा नहीं हुआ।
विभूति के मायके और ससुराल में से कोई भी आकर उसके साथ नहीं रह सकता था। अगर ऐसा होता तो वो बड़े आराम से एक मेड को रखकर सब संभाल सकती थी पर वहां से कोई नहीं आ सकता था और सिर्फ मेड के भरोसे वो अपनी बच्ची नहीं छोड़ना चाहती थी। लेकिन वो इतनी मेहनत से हासिल अपनी नौकरी को भी छोड़ना नहीं चाह रही थी। आज पूरा दिन हो गया था उसे ऑफिस में बात करते हुए पर उसे निराशा ही मिली थी।
उसके मुंह से ये सब सुनकर विशु ने उसे कहा," मुझे अंदाज़ा था कि ऐसा ही कुछ होगा। इसलिए मैंने अपने ऑफिस में बात कर ली है। अगले छह महीने तक मैं वर्क फ्रॉम होम करूंगा और एक मेड की मदद के साथ मैं रीवा को संभाल लूंगा। तुम चिंता मत करो।अभी तक तो मज़बूरी थी कि रीवा को तुम्हारी जरूरत मुझसे ज्यादा थी पर अब मैं भी उसे संभाल सकता हूं। अब तुम अपनी नौकरी को आराम से दुबारा करो और मुझे भी अपनी ज़िम्मेदारी को बराबरी से संभालने दो।"
विभूति विशु की बात सुनकर बहुत खुश हुई और इतने समझदार पति को पाकर उसकी सारी परेशानी छू हो गई। सच ही है अगर दुनिया बराबरी की हो तो ज़िन्दगी सुकून भरी हो जाती है और सारी दिक्कतें छू हो जाती हैं।