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Meera Ramnivas

Abstract

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Meera Ramnivas

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बहू बेटी

बहू बेटी

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शादी के बाद उमा का ये पहला रक्षाबंधन था। पता नहीं सासू माँ जाने की इजाजत देंगी भी या नहीं ,उमा सुबह से इसी उधेड़बुन में थी। किंतु सुबह जब सब नाशता कर रहे थे ,तो सासू माँ ने उसके पति सोमेश से मुखातिब होते हुए कहा " बेटे सोमेश आज बहू का रिजर्वेशन करवा देना,बहू रक्षाबंधन मनाने के लिए पीहर चली जायेगी। , लेने तुम चले जाना, वापसी का दोनों का टिकट करवा लेना , गौरी बिटिया भी राखी पर दो दिन के लिए आ रही है"।

"माँजी दीदी आ रही हैं, मैं रहने देती हूँ। भाई को बुला लेती हूँ। ,यहाँ खाना वगहरा, आप अकेले कैसे कर पायेंगी" 

 सास ने उमा की बात सुनकर प्यार से कहा" ये क्या कह रही हो बहू! क्या तुम्हारे आने से पहले घर में खाना नहीं बनता था, हम दोनों माँ बेटी बना लेंगी, तुम निश्चिंत होकर जाओ, राखी का त्योहार पीहर में मनाने का आनंद ही कुछ और है। , साल में एक ही तो पर्व आता है, जब हर बहन पीहर जाना चाहती है, माँ, पिता भी चाहते हैं कि बेटी घर आये ,सबसे मिले ,बचपन याद करे। मैं खुद हर राखी पर जाया करती थी। मेरी सास ने मुझे कभी नहीं रोका ।

अपनी सास का मां जैसा स्वरूप देख,उमा का दिल गदगद हो गया।

उमा ने तुरंत चहकते हुए माँ को फोन किया" माँ मैं राखी पर आ रही हूँ।" "अच्छा बेटा!मैं तो सोच रही थी कि तेरी सास तुझे आने भी देगी या नहीं,मैं तेरी सास को फोन करने ही वाली थी। किंतु नौबत ही नहीं आई।  

अच्छा भाभी कब जा रही है अपने पीहर,? "अरे वो जाकर क्या करेगी । मैंने उसे कह दिया है कि राखी भेज दे,या भाई को बुला भेज। "

"माँ आपने भाभी को जाने से मना कर के ठीक नहीं किया।  उनकी और उनके परिवार की भी तो इच्छा होगी कि वे राखी पीहर में मनायें"। मैंने सोचा तुम आ रही हो, तो खाना पीना आदि कैसे होगा।

वो तो हम दोनों भी बना लेते,बहू के लिए अलग नियम, बेटी के लिए अलग नियम, ये तो अनुचित है ना माँ ! वो भी तो किसी की बेटी है । भैया को कहो आज ही भाभी का टिकट करवा दें। अच्छा ठीक है बेटा !कहते हुए माँ ने फोन रख दिया।


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