STORYMIRROR

Sheikh Shahzad Usmani

Abstract Horror Tragedy

3  

Sheikh Shahzad Usmani

Abstract Horror Tragedy

भ्रमकाल (लघुकथा)

भ्रमकाल (लघुकथा)

2 mins
232

"ठीक है, मासाब। सारी डिटेल तो आपने दे दी। लेकिन अब तो मैं पहले से ज़्यादा कन्फ़्यूज़ हो रहा हूँ।"

"क्यों भाईसाहब ?"

"सब तरफ़ डर ही डर है। लिखित अनुमति देकर बच्चे को स्कूल भेजूँ मास्क लगवाकर, कोर्स की समस्याओं के हल के लिए या स्कूल वाली के साथ ही कोई दूसरी प्राइवेट ऑनलाइन पढ़ाई भी करवाते रहें। प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में एडमिशन करवा दूँ या फ़ीस जमा कर यहीं चलने दूँ। नई शिक्षा नीति का कोर्स तो हमारे बच्चे के भाग्य में इस साल भी नहीं, मासाब।"

"मतलब आपकी उलझनें भी मेरी जैसी हैंं। मैं तो अपनी बच्ची को अपने ही अशासकीय स्कूल में पढ़ा रहा हूँ, लेकिन.....।"

"लेकिन क्या मासाब? बता ही दो; दिल हल्का हो जायेगा।"

"भाईसाहब, न तो मैं अपनी बिटिया को अपने स्कूल की ऑनलाइन कक्षाएं अटैण्ड करवा रहा हूँ और न ही मैंने उसकी ट्यूशन-फ़ीस की पिछली दो क़िश्तें जमा की हैं; भले स्कूल से बार-बार फ़ोन पर सूचनाएं भेजी जा रही हैं अंतिम तारीख़ की।"

"क्यों मासाब।"

"एक तो हमें पिछले पाँच महीनों से वेतन नहीं मिला और दूसरी बात यह कि मोबाइल और इन्टरनेट की आदतें डलवाकर मुझे अपनी अच्छी भली बिटिया को बिगाड़ना नहीं है। मालूम हैंं बच्चों की ऑनलाइन शरारतें। किसी भी क़दम को उठाने में डर रहा हूँ। बहुत सी उलझनों में फँसा हूँ भाईसाहब।"

"बात तो सही है। कुछ तो करना पड़ेगा मासाब। फ़िर क्या सोचा आगे के लिए?"

"अपनी बच्ची को अपने वाले स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में डालने की सोच रहा हूँ। ... मास्क, सेनेटाइज़र की दुकान शुरू करने या नमकीन बिरयानी का ठेला लगाने की सोच रहा हूँ। लेकिन...।"

"... लेकिन उसमें भी उलझनें हैं, है न। अबकी बार सबके साथ सभी कन्फ़्यूज़न में हैं मासाब, है न।"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract