भगवान को छप्पन भोग ही क्यों?

भगवान को छप्पन भोग ही क्यों?

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"बच्चों, आज हम बात करेंगे त्यौहार में कृष्ण भगवान को छप्पन भोग क्यों लगाते हैं।"

"हां, हां चाचाजी, अक्सर जब माँ से कहो कि बस यही बना है, तो नाराजगी से कहती हैं, नहीं तुम्हारे लिए छप्पन भोग बनाऊंगी। मैं जानना चाहता था कि यह छप्पन भोग क्या होते हैं?" मुंह दबाकर हंसते हुए उत्कर्ष ने कहा।

"रस अथवा स्वाद मुख्यत 6 होते हैं। मीठा,नमकीन, अम्ल, कड़वा, तीखा और कसैला। इनसे 56 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। उनकी सूची लंबी है। माँ के कहने का अभिप्राय है कि विभिन्न प्रकार के ढेरों व्यंजन बने तब तुम प्रसन्न होगे। अब आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी।"

"जी चाचा जी, प्रत्यूष ने उतावले पन से कहा, इसके पीछे की कहानी जानने को हम उत्सुक हैं।"

"बच्चों इसके पीछे एक कहानी है। एक बार इंद्र के प्रकोप से गोकुल में लगातार 7 दिनों तक वर्षा होती रही। ब्रज वासियों और गायों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर 7 दिनों तक उठाए रखा। सभी ने पर्वत के नीचे शरण ली। इस दौरान उन्होंने कुछ नहीं खाया। सात दिन के पहर और घंटे मिलाकर 56 होते हैं वे इस प्रकार हैं:

24 घंटे में होते हैं आठ पहर( एक पहर 3 घंटे का) तो 8 ×7= 56 । सात दिन बाद जब बरसात रुकी तो सभी गोकुलवासियों ने सोचा हर पहर में खाना खाने वाले श्रीकृष्ण ने इन 7 दिन में कुछ भी नहीं खाया। तब आठवें दिन सबने 7 दिन के एक-एक पहर के हिसाब से श्रीकृष्ण को भोग लगाया।"

"भोग का क्या अर्थ है, चाचाजी ?" भुवन ने पूछा।

"भोग अर्थात वह सभी प्रकार का भोजन जो हम भगवान को अर्पित कर सकते हैं। उसी दिन से छप्पन भोग की परंपरा शुरू हुई जो आज तक चली आ रही है।"

"इसमें किस प्रकार के व्यंजन होते हैं, चाचाजी ?" कामना ने अपनी कल्पना में 56 व्यंजनों को मानों सामने देख लेने के लिए पूछा।

" जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि यह एक लंबी सूची है मगर तुम्हारी उत्सुकता को देखते हुए मैं बताने का प्रयास करता हूं। भात, दाल, चटनी, कढ़ी, दही शाक की कढ़ी, शरबत, बाटी, श्रीखंड, मुरब्बा, शर्करा, बड़ा, मधु ,मठरी, फेनी, पूरी, शतपत्, घेवर, मालपुआ, चिल्डिका जलेबी, मेसू, रसगुल्ला, चन्द्रकला दधि (महारायता),स्थूली, लौंगपूरी, खुरमा, दलिया, परिखा, सुफलाढय़ा, दधिरूप, (बिलसारू),मोदक, साग, अचार, मोठ, खीर, दही, गोघृत, मक्खन, मलाई, कूपिका, पापड़, सीरा, लस्सी, सुवत, मोहन,सुपारी, इलायची, फल, 7 तांबूल,मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु और अम्ल।"

"काश, हम भी 56 भोग लगाएं!"कमलेश ने होठों पर जीभ फेरते हुए कहा।

" क्यों नहीं ,गोवर्धन पूजा वाले दिवस मंदिरों में विशेष प्रसाद इन्हीं 56 भोगों का बनता है आप उस प्रसाद को ले सकते हैं। अब दूसरी कथा सुनो।

दूसरी कथा यह है कि श्री कृष्ण और राधा जिस फूल पर विराजते हैं, उसकी 56 पंखुड़ियां हैं। प्रत्येक पंखुड़ी पर एक मुख्य सखी और श्री कृष्ण विराजमान हैं ,इस हेतु 56 भोग लगते हैं।"

"बस चाचा जी, आज दिन 56 में से 1-2 भोग लगाने की इच्छा तीव्र होती जा रही है।

प्रार्थना है, शीघ्र छुट्टी दें। धन्यवाद, चाचाजी।" बच्चों ने हंसते हुए कहा।

"बहुत अच्छे, कल मिलते हैं।"



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