बेटी
बेटी
साक्षी ने अस्पताल में नार्मल डिलीवरी से प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया। बिटिया को जैसे ही नर्स ने साक्षी की सास दमयंती जी की गोद मे दिया। वो उसको देखते रोने लगी। दमयंती जी को रोता देख साक्षी उदास और दुःखी हो गयी क्योंकि साक्षी को जिस बात का डर था वही हुआ।
तभी बुआ सास ने साक्षी की माँ से कहा "समधन जी ! बहू पर आपकी परछाई पड़ गयी। आपके दो बेटियां है। इसीलिए साक्षी को भी बेटी हुई। लगता है वो भी आप की तरह सिर्फ बेटियों की ही माँ बनेगी।"
साक्षी की माँ ने जवाब में कुछ भी नहीं कहा।
अंदर ही अंदर साक्षी को ये बात सुन कर बहूत बुरी लगी। उसने अपने पति अमन से कहा"कि बुआ जी को मेरी माँ का अपमान करने का कोई अधिकार नही।कोई खुश हो ना हो मैं बहूत खुश हूं। अपनी बेटी के होने से माँजी तो ऐसे रो रही थी जैसे बेटी ना हुई कोई दुर्घटना हुई हो।"
अमन ने कहा "साक्षी तुम माँ को गलत समझ रही।"
साक्षी ने आगे अमन के बोलने से पहले ही कहा"मुझे पता था तुम्हारा जवाब यही होगा। मुझे कुछ नहीं सुनना| तुम्हारे खानदान में बेटियां होती |तो शायद कोई मेरी मां का दर्द समझ सकता था माँजी मुझसे मिले बिना ही चली गयी।"
साक्षी ने अपनी माँ सावित्री जी से कहा"माँ मुझे माफ़ कर दो। बुआ जी की सोच ऐसी होगी। मैंने कभी नहीं सोचा था।"
साक्षी तू इतना क्यों सोच रही है? मुझे बुरा नहीं लगा क्यों कि समधन जी......
साक्षी ने अपनी माँ की बात को भी बीच मे रोकते हुए कहा"माँ तुम उनकी बात ही मत करो। उनको बेटियां नहीं तो वो क्या समझेंगी बेटी की माँ का दर्द।"
""साक्षी तू अभी गुस्से में कुछ भी बोले जा रही है। लेकिन गुस्से में हमे शब्दों का सम्भलकर इस्तेमाल करना चाहिए। क्योंकि कई बार आंखों देखी और कानों सुनी बात भी गलत होती है समझी।""'मैं चलती हूं अपना ख्याल रखना।
तभी साक्षी की जेठानी सुगंधा अस्पताल में खाना लेकर आयी। उसने कहा"साक्षी बधाई हो।"
"कैसी बधाई भाभी? आज तो मुझे सबके असली चेहरे देखने को मिल गए। अच्छा हुआ आप को दो बेटे ही है।
माँजी के लिए सिर्फ हम कहने के लिए बेटियों की तरह है। अब समझ मे आया उनके कम बोलने का कारण। ये उनका अभिमान है। जो उनके व्यक्तिव को दर्शाता है।
साक्षी तुम क्या बोले जा रही हो। माँजी जैसी सास तो किस्मत वालो को मिलती है। मैं उनको दस सालों से जान रही हूं। तुमको सिर्फ अभी एक साल हुआ है। वो तो गलती से भी किसी का दिल नहीं दुखा सकती ।
अरे जो मुँहबोली ननद को इतना सम्मान और प्यार दे |वो अपनी बहूओं का दिल भला कैसे दुखा सकता है।आजतक उन्होंने तुम्हें भी तो कुछ नहीं कहा।
बस बस कीजिए। आपको बेटे है ना तो आपका मान ऊंचा ही होगा। आप ऐसा कहेंगी ही।
साक्षी गुस्से में किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं थी।
नार्मल डिलीवरी की वजह से तीसरे दिन अस्पताल से छुट्टी मिल गयी।
मन मे गुस्सा लिए साक्षी कार में बैठी। घर के नजदीक उसे ढोल नगाड़े और पटाखों की आवाज आयी। तो साक्षी ने कहा अमन ! लगता है किसी के यहाँ कुछ प्रोग्राम है अपने घर के आसपास। चलो परिवार वाले ना सही भगवान ने इसी बहाने मेरी बेटी का स्वागत धूमधाम से किया। साक्षी ने अमन को ताना मारते हुए कहा।
अमन इतना सुन के मुस्कुराने लगा।
अमन को मुस्कुराते देख के साक्षी को और गुस्सा आ गया।
घर के सामने पहुँचते| साक्षी ने देखा घर पूरा फूलों से सजा हुआ। ढोल नगाड़े, आतिश बाजी से बिटिया के स्वागत में सब खड़े थे।"
दमयंती जी एक हाथ मे लाल रंग की और दूसरे हाँथ में आरती की थाली लिए दरवाजे पर खड़ी थी।
उन्होंने ने रंग की थाली बड़ी बहू को पकड़ाकर पहले पोती की आरती उतारी फिर पोती के पैरों की छाप उन्होंने कपड़े और उसके बाद अपना आँचल बढ़ा कर ली । वो आज भी रो रही थी।
पूरे धूमधाम से अपनी बेटी का स्वागत होता देख के साक्षी रोने लगी।
तभी दमयंती जी ने सावित्री जी से कहा"समधन जी बहूत बहूत शुक्रिया आपका |अपनी परछाई मुझे देने के लिए| मेरे घर के सुने कोने को सजाने के लिए, मुझे मुस्कुराने की वजह देने के लिए।"
साक्षी आज हैरान थी और शर्मिंदा भी ।कि उसने बिना सोचे समझे अपनी इतनी अच्छी सास के बारे में ये सब बोल गयी"
साक्षी शुक्रिया बहू मेरा बचपन मेरी पोती के रूप मे लौटने के लिए। अब मैं अपनी पोती को वो सब खुशी दूँगी। जो मुझे कभी नहीं मिली। वो खुल के हँसेगी, खेलेगी और अपनी जिंदगी को भी जियेगी।
जीजी अब तो मैं भी पोती वाली होगयी। अब ना मेरा घर ना मेरे पोतों की कलाईयां कुछ भी सुना ना होगा।
हाँ भाभी सही कहा...
और ढोल पर पूरा परिवार झूमने लगा।
तभी जेठानी ने साक्षी के पास आ के कहा"तुम्हें पता है साक्षी इतना जश्न तो मेरे बेटे होने पर भी नहीं हुआ था। मैंने कहा था ना कि तुमने गलत समझा है बात को।
हम सिर्फ दुःख में ही नहीं खुशी में भी रोते है।
साक्षी ने हम्म कह के जवाब दिया।
तभी साक्षी ने सबके सामने कहा "माँजी !मुझे माफ़ कर दीजिए|मैंने आपकी कम बोलने और चुप रहने की आदत को आपका घमंड समझा।"
तब दमयंती जी ने कहा "बेटा ! माफी मांगने जैसा इसमें कुछ भी नही। तुम्हारी जगह मैं भी होती तो यही समझती।"
बचपन मे मेरे मां बाप का साया छीन गया। चाचा चाची ने कहा"लड़की हो कम बोला हंसा करो। ससुराल आयी तो सास ने भी वही कहा बहूवो को ज्यादा बोलना हँसना शोभा नहीं देता। बड़ी तमन्ना थी कि मुझे बेटी हो।सोच बेटी होगी तो उसको सब खुशियां दूँगी। लेकिन दो बेटे ही हुए। लेकिन तुम चिंता मत करो!अब मैं अपनी पोती के साथ खेलूंगी भी ,हंसुगी भी, मेरी पोती वो सब करेगी जो उसकी मर्जी होगी। जो मैं चाह के भी ना कर पायी।लाओ दो मेरी पोती।
हे भगवान! मेरे ये आंसू भी ना रुक रहे आज तो खुशी के मारे। और साक्षी को गले लगाते हुए कहा बेटा!बेटियां परिवार पर बोझ नहीं वो तो खुद दो परिवारों के जिम्मेदारियों का बोझ उठाती है।....
गर्व से कहो कि बेटी की माँ हो। मेरी पोती मेरी अभिमान हैं।