Diwa Shanker Saraswat

Classics

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Diwa Shanker Saraswat

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बदलाव भाग 2

बदलाव भाग 2

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 वास्तव में बदलाव की आवश्यकता तो सृष्टि के आरंभ में ही महसूस होने लगी थी। खुद त्रिदेवों में एक बृह्मा जी को लगने लगा कि कुछ भूल हो रही है। मानस संतानों की उत्पत्ति के बाद भी संसार में वृद्धि हो ही नहीं रही थी। सृष्टिकर्ता परेशान थे। बिना पूछे किसी को परामर्श नहीं देना चाहिये। शायद देवों के देव भोलेनाथ के यही विचार थे। सत्य है कि बिना प्रयास के सब कुछ मिल जाये तो महत्व समझ नहीं आता। बिना मांगे दी गयीं सलाह का अंत अक्सर बहुत दुखदायी होता है। ईश्वर की सामर्थ्य पर संदेह नहीं किया जा सकता है।त्रिदेवों में एक बृह्मा जी की अमित सामर्थ्य शाली हैं। वह युगों युगों तक मानस सृष्टि करने में सक्षम हैं। उनका सृष्टि करते करते थकना वास्तव में एक लीला से अधिक कुछ नहीं थी।

 "सहायता करो भोलेनाथ।" भोलेनाथ प्रगट हुए।

" क्या आवश्यकता हुई बृह्मा जी।"

" सृष्टि आगे बढ ही नहीं रही है।"

 " बिलकुल नहीं बढेगी।"

 " क्या करना होगा।"

 " कुछ नहीं। बस बदलाव।"

 " कैसा बदलाव।"

 " सोच में बदलाव। देखो मुझे।"

 भोलेनाथ ने अपना अर्धनारीश्वर रूप दिखाया। आधे शरीर से वह नर और आधे से नारी थे।

" आपका आधा शरीर कैसे अलग है। "

". मेरा ही नहीं। खुद भी अपने में देखिये। शक्तिमान के साथ सदा शक्ति होती है। शक्ति बिना कोई कैसे शक्तिमान । "

 थोड़ी मेहनत लगी। आखिर बृह्मा जी को अपनी शक्ति माता शारदा दिखी। आधे भाग से वह अलग हो उनके वाम विराज गयीं।

" बृह्मा जी। यह सोच बदलिये। आपकी नजर में अभी स्त्रियों का कोई मूल्य नहीं है। आप बस पुरुषों को जन्म दे रहे हैं। पुरुषों की सामर्थ्य सीमित है। एक असीमित सामर्थ्य की रचना करनी होगी। "

फिर एक बदलाव हुआ। स्त्री की रचना शुरू की गयी। पर जब वह स्त्री का मन बना रहे थे तभी अनेको दिव्य शक्तियां जिन्हें प्रकृति भी कह सकते हैं, अपने अपने उपहार लेकर आ गयीं। बृह्मा जी से अनुरोध करने लगीं कि हमारे उपहारों का प्रयोग इनके मन में जरूर करें।

 यह दूसरा बदलाव था। पुरुषों का मन तो ऐसे ही सामान्य तरीके से बनाया। पर स्त्री के मन में पृथ्वी से लेकर सहनशीलता, समुद्र से लेकर गहराई, अंतरिक्ष से लेकर ऊंचाई, सूर्य से लेकर तेज, चंद्रमा से शीतलता तथा और भी न जाने कितने गुण भर दिये। तब जाकर बदलाव की प्रतीक स्त्री बनी। फिर स्त्री ने न केवल पुरुष के साथ मिलकर सृष्टि को आगे बढाया अपितु संस्कारों को भी पीढी दर पीढी आगे बढाया। अनेकों बार जब पुरुष कमजोर पड़ रहे थे, तब खुद आगे बढकर उन्हें राह दिखाई।

एक कथा सुनाई जाती है कि माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया। पर बहुत तलाशने के बाद भी दुर्गा नाम की स्त्री का विवरण नहीं मिलता। पर नवदुर्गा जरूर पता चलती हैं। तो शायद दुर्गा कोई एक स्त्री न थीं। अपितु सभी स्त्रियों के गुण थे। या संसार की सारी स्त्रियां थी। जिनमेः कन्या, माता, बहन, तपस्विनी , अस्त्र शस्त्रों की ज्ञाता, विदुषी स्त्रियां सब थीं।

तो संभवतः यह हुआ था कि अत्याचारी के समक्ष सारा पुरुष समाज झुक गया था। किसी का भी साहस उसका विरोध करने का न था। पर स्त्रियां न झुकीं। उन्होंने अन्याय का विरोध किया। अन्याय को खत्म कर दिया। यह भी सृष्टि के महत्वपूर्ण बदलावों में से एक है जिसमें महिलाओं ने पुरुषों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की थी। 


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