चंद्रकला
चंद्रकला
मात्र बारह साल की आयु में चंद्रकला व्याह कर ससुराल आ गयी। विवाह की यह आयु हमें बहुत कम लगे पर उन दिनों यह आम बात थी । ज्यादातर लड़कियों की शादी दस से बारह साल की आयु तक हो जाती थी। चंद्रकला को यही बताया गया कि उसकी शादी एक पुराने रईस परिवार के लड़के से हो रही है। चंद्रकला जीवन भर खुश रहेगी। पर सच्चाई यह है कि धन की प्रचुरता खुशियों की प्राप्ति का एक साधन मात्र है।
चंद्रकला का पति सोनी पढाई में बहुत होशियार था। लड़कियों की पढाई की कोई बात ही नहीं थी। सोनी गांव से बाहर शहर में पढने गया। हमेशा अच्छे अंक पाये। धनी परिवार के लड़के पर माॅ बाप पानी की तरह पैसा बहाते। पर बहू की भी कोई जरूरत है, यह किसी को ध्यान न आता। चंद्रकला खरा सोना थी जो तपकर निखर रही थी।
सोनी ने खूब पढाई की। पर न तो कोई नौकरी की और न घर या खेत खलिहान से मतलब रखा। पहलवानी का एक शौक और हो गया। जी भर दूध पीना, बादाम खाना, दस किलोमीटर रोज दोड़ना , कुश्ती लड़ना अब रोज की बात थी। अजीब स्थिति थी कि बेटे की अकर्मण्यता का दंड बहू चंद्रकला को मिलता। अब सोनी और चंद्रकला के दो बेटियां भी थीं। चंद्रकला सास के तानों को तो बर्दाश्त कर लेती पर उसकी बेटियों की भी तो कुछ जरूरत थी। बेटियों के लिये सास से उलझने का साहस किया तो सास ने एक पत्थर उसके सर पर मार दिया। चोट ज्यादा नहीं पर कम भी न थी। पर आज पहली बार सोनी के मन को चोट लगी। आखिर उसने चंद्रकला से विवाह किया है। दोनों बेटियों की जिम्मेदारी उसी को निभानी है। चंद्रकला की चोट ने बहुत बदल दिया।
पढे लिखे लोगों की कमी थी। फिर दो विषयों में मास्टर को विद्यालयों ने हाथों हाथ लिया। अब चंद्रकला का भी घर में सम्मान बढा। पर सोनी के मन में कुछ अलग चल रहा था। शायद वह खुद को चंद्रकला का गुनहगार समझ रहा था। दिल्ली सरकार के विद्यालयों के लिये अंग्रेजी प्रवक्ता की जगह निकली। सोनी ने भी आवेदन कर दिया। और जल्द ही वह दिल्ली स्थानांतरित हो गया। चंद्रकला और बच्चे भी अब दिल्ली रहने लगे।
चंद्रकला तो पढी लिखी न थी पर शायद परिवार नियोजन का ज्ञान पढे लिखों को भी न था। फिर तीन और लड़के और दो और लड़की के जन्म के साथ सात बच्चों के परिवार को भरा पूरा परिवार कहा जाने लगा।
चंद्रकला पढी लिखी न थी। दुनिया दारी भी कम समझती थी। अपनी बच्चियों के लिये सास से प्रतिवाद करने बाली चंद्रकला को कभी उम्मीद भी न थी कि उसे अपने पति से प्रतिवाद करना होगा। एक दिन सोनी एक पंजाबी लड़की से शादी कर घर आ गया तो चंद्रकला को विवाद करना पड़ा । पर इस बार भी चंद्रकला अकेली पड़ गयी। सास और ससुर के हिसाब से उसे भी क्या कमी है। लड़का दोनों को रख सकता है। पति ने यह बताने की कोशिश की कि शादी करना मजबूरी हो गयी थी। अब सब झेलना होगा। हालांकि चंद्रकला के पास कानून का सहारा था। पर पति भक्ति का जो पाठ बचपन से पढी थी, उसे भूल नहीं सकती थी। घर में भले ही पति का उसने खूब विरोध किया पर एक सच्ची बात यह भी थी कि सोनी की नौकरी उसी की मदद से बची। अब चंद्रकला सोनी के साथ नहीं रह सकती थी। चंद्रकला अपने स्वाभिमान से समझोता नहीं कर सकती थी। हालांकि छोटे बच्चे दिल्ली ही पढाई के लिये रहे पर बड़ी लड़कियों को साथ लेकर चंद्रकला गांव आ गयी। जैसे चंद्रकला ने स्वाभिमान से समझोता करने से मना कर दिया, बड़ी और समझदार बेटियों ने भी पिता के साथ रहने से मना कर दिया।
यों तो सोनी पूरे सौ बीघा जमीन का मालिक था। पर जमीन कोई पैसे नहीं देती। पैसे मिलते हैं, मेहनत से। एक धनी परिवार की बहू के विषय में लोगों की यही राय थी कि वह खेत बटाई पर दे देगी। लोग सस्ते में काफी उपजाऊ जगह की आसा रखे थे। पर चंद्रकला ने खुद खेती करने का निश्चय किया। परिवार के विरोध के बाद भी चंद्रकला ने खुद खेती की। एक नौकर रख लिया। पर जहाॅ तक संभव था, वह खुद परिश्रम करती। खुद बिना पढी चंद्रकला अपनी बेटियों को शिक्षा के लिये जाग्रत करती रही। माॅ के सानिध्य में रही दोनों बड़ी बेटियों ने माॅ के सहयोग के साथ साथ पढाई भी खूब की। दोनों लड़कियां गांव में सबसे ज्यादा पढी लड़की हुईं।
एक दिन विद्यालय से वापस आते समय सोनी को दिल का दौरा पड़ा । सोनी संसार छोड़ गया। पर जिस पंजाबी लङकी की बजह से चंद्रकला विपत्ति झेल रही थी, अब वह अनाथ हो गयी। समय बदल जाता है। दूसरी जाति के एक शादीशुदा लड़के से विवाह करने को उसके माता पिता ने अपने स्वाभिमान से जोड़ा । पर चंद्रकला उससे अधिक उदार थी जितना कोई हो सकता है। कोई और औरत होती तो खुद की दुर्दशा के कारण की दुर्गति पर खुश होती।पर अपनी सौत का सहारा चंद्रकला बनी। अब यह चंद्रकला की जिद थी, उसका स्वाभिमान था या पंजाबी लड़की पर दयालुता, पर अपने पति का धन लेने से चंद्रकला ने मना कर दिया। चंद्रकला की सहमति से सोनी के सारे मद सोनी की दूसरी पत्नी को मिले। चंद्रकला ने खेती करके अपने सभी बच्चों का पालन किया। अपने छोटे बच्चों को भी शिक्षित करने की चंद्रकला ने तमाम कोशिशें कीं। पर एक मजबूत भवन हमेशा मजबूत नींव पर ही खड़ा होता है। बचपन में ऐशोआराम का जीवन जीने बाले छोटे लड़के व लड़कियां सामान्य शिक्षा से अधिक पढ न सके तो इसमें चंद्रकला की कोई गलती नहीं थी ।
