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Diwa Shanker Saraswat

Drama Others

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Diwa Shanker Saraswat

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पुनर्मिलन भाग ३५

पुनर्मिलन भाग ३५

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 महर्षि शांडिल्य के आश्रम में भी मुझे बार बार राधा का ही ध्यान आ रहा था। श्री कृष्ण से सच्चा प्रेम करती बाला अपने परिजनों का सहारा बनने के लिये अपने प्रेम का भी बलिदान करने जा रही है। एक स्त्री के प्रेम की पूर्णता विवाह बंधन को स्वीकार करना ही तो है। दुखद है कि राधा का अमर प्रेम अपूर्ण रह गया।


 विचारों के झंझावात में एक दूसरा विचार मन में आया। प्रेम जो खुद स्वतंत्र है, किस तरह किसे बंधन में डालता है। इस बंधन और स्वतंत्रता के मध्य क्या संबंध है। क्या स्वतंत्रता खुद एक बंधन है। अथवा इसके प्रतिकूल बंधन के उपरांत भी स्वतंत्र रहा जा सकता है। अपने विचारों को अपनाया जा सकता है।


 कितने ही बड़े बड़े नरेश जो खुद को विशाल और स्वतंत्र देश का शासक मानते हैं, क्या वे बंधनमुक्त हैं। संभवतः नहीं। कितने ही विकारों के बंधन में वे खुद बंधे हुए हैं।


 दूसरी तरफ कितने ही अकिंचन विकारों की मजबूत श्रृंखला को तोड़ वास्तव में स्वतंत्र होते हैं।


एक स्त्री के प्रेम की पूर्णता क्या विवाह की अवस्था पर ही संभव है। कितने ही दंपत्तियों का वैवाहिक जीवन प्रेम शून्य होता है। लगता है कि वह मात्र अपने जीवन को ढो रहे हैं। जन्म जन्म तक उसी जीवन साथी की कामना उनके मन को दग्ध कर देती है।


 वैसे शास्त्रों में पति और पत्नी को मित्र के रूप में परिभाषित किया है। फिर प्रेम की पूर्णता पति या पत्नी होने से अधिक मित्रत्व निर्वाह करने में है। वैसे राधा और कृष्ण का कोई सांसारिक संबंध दृढ़ नहीं हुआ है, फिर भी वह बालिका अपने प्रिय के परिजनों की सेवा में अपना जीवन लगाने जा रही है। इसे मित्रता कहा जाये अथवा प्रेम की पराकाष्ठा, सही सही समझना कठिन ही है।


 बेटियों। मेरा मानस जिस चक्रव्यूह में उलझा था, वह महर्षि से छिप न सका। उसी कारण मुझे वह रहस्य जानने का सौभाग्य मिला जो संभवतः बहुत कम को ज्ञात है। अब मैं वह बताने जा रही हूँ जो महर्षि ने मुझे बताया। 


 यह उस समय की बात है जबकि श्री कृष्ण और राधा दोनों ही बचपन की अवस्था में थे। दोनों साथ खेलते, साथ साथ भ्रमण करते। उनकी बाल लीलाएं भी बड़ी विचित्र होती थीं। कभी राधा नृत्य करती तो श्री कृष्ण उसकी पायल के स्वर से ताल मिलाते हुए हाथों से ताली बजाते। कभी राधा श्री कृष्ण की मुरली छीन लेती। फिर श्री कृष्ण माता यशोदा से राधा की शिकायत करते।इसी तरह विनोद से समय बीत रहा था।


  नंदगांव और बरसाने के गोप साथ साथ गोवर्धन गिरि की तलहटी में गायें चराने गये। गोवर्धन गिरि पर विशेष औषधियों का अपार संग्रह पाया जाता है। इस कारण कुछ महीनों के बाद नंदराज अपनी गायों को वहीं चराने ले जाते।उन दिनों वहीं अस्थायी निवास बना गोप रहते। नंदराज और बृषभानु जी की मित्रता के कारण अक्सर ऐसे समय पर दोनों गांवों के गोप साथ साथ ही गोवर्धन गिरि पर पहुंचते। यह कृष्ण और राधा का बालहठ था अथवा विधि द्वारा उनके प्रेम के पूर्ण करने की तैयारी, कि दोनों ही अपने पिताओं के साथ वहीं गोचारण के लिये पहुंच गये। कुछ दिन साथ साथ रहे। फिर वही बालहठ। अब उन्हें घर वापस कौन लेकर जाये। फिर कुछ गोपों के साथ ब्रजराज ने दोनों बच्चों को वापस घर भेज दिया।


क्रमशः अगले भाग में


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