पुनर्मिलन भाग ३३
पुनर्मिलन भाग ३३
जब सूरज बादलों के पीछे छिप जाता है, उस समय बहुधा अंधकार की तीव्रता में छोटे छोटे दीपक भी अपनी क्षमता पर गुमान करने लगते हैं। वैसे उनका गर्व करना निरर्थक भी नहीं है। आखिर अंधेरे में भी वह कुछ तो प्रकाश करते है। पर दीप का यह भूल जाना कि उसकी ज्योति भी अग्नि का परिणाम है, कदापि उचित नहीं। न तो वह माटी की काया, न रुई की बाती और न तेल ही प्रकाश करने में सक्षम है जब तक कि खुद अग्नि उस दीप की काया को आधार बना, तेल और बाती के संगम से अंधेरे जगत को प्रकाशित न करने लगे।
बादलों के छटते ही रवि जब अपने प्रकाश से संसार को प्रकाशित करने लगता है, उस समय संभवतः उन दीपों का मुख भी आश्चर्य से खुला रह जाता है। अहो। इतना अधिक प्रकाश। संभवतः हमारे जैसे लाखों दीपों के एक साथ प्रकाश से भी अधिक।
लेखक का उद्देश्य कहीं भी द्वारिकाधीश श्री कृष्ण की पत्नियों के प्रेम को कम कर आंकना नहीं है, पर राधा प्रेम का साक्षात उदाहरण देख, अपने प्रेमी के सुख के लिये किसी भी कष्ट को सहन करने की दृढ़ इच्छा जान, वे सब खुद ही देवी राधा की पुजारिन बन गयीं। श्री कृष्ण के स्वस्थ होते ही श्री राधा की चरण धूल सभी रानियों ने अपने मस्तक पर लगायी। देवी राधा के दिव्य चरित्रों से परिचित होने की इच्छा हुई। तथा उपलब्ध लोगों में जो देवी राधा के विषय में सबसे अधिक बता सकती थीं, वह माता रोहिणी ही थीं। भगवान शेष के अवतार बलराम जी की माता श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के अतिरिक्त गोपियों की लीलाओं से भी बहुत अधिक परिचित थीं।
" बेटियों। यह सत्य है कि आप सभी अपने पति श्री कृष्ण से असीम प्रेम करती हैं। पर इससे भी बड़ा सत्य है कि राधा तथा दूसरी भी गोपियों के मन के प्रेम की थाह पाना ही बहुत कठिन है। जैसे अनंत आसमान का कहीं भी अंत नहीं है, उसी तरह गोपियों के प्रेम का भी कोई अंत नहीं है। फिर राधा तो उन प्रेम स्वरूपा गोपियों की अधीश्वरी है। एक बार कोई प्रयत्न कर आसमान के तारों की गिनती कर ले। संभव है कि कोई अति लगनशील व्यक्ति रेगिस्तान के रजकणों को गिन ले। बहुत संभव है कि असीम सागर को कोई एक छोटे से पात्र से खाली कर दे। पर राधा प्रेम की थाह पाना असंभव है। यही सत्य है। " जब माता रोहिणी ने राधा के विषय में यह कह दिया तब रुक्मिणी आदि सभी रानियाँ माता रोहिणी के चरण स्पर्श कर कहने लगीं।
" माता जी। आपके कथन पर हमें पूर्ण विश्वास है। प्रिय के उत्तम भविष्य के लिये पूरे जीवन विरह मार्ग का चयन, यह निःसंदेह अति महान लोगों का कार्य है। माता। सत्य है कि हमारे स्वामी श्री कृष्ण प्रेमावतार हैं। असीमित को असीमित में विभाजित करने पर प्रत्येक के हिस्से में असीमित ही आता है। फिर असीमित प्रेम के बटवारे पर ईर्ष्या के भाव रखना वास्तव में क्षुद्रता ही है। ऐसा नहीं है कि हमारे मन में ऐसे क्षुद्र विचारों का जन्म नहीं हुआ। पर आज श्री राधा जी के पवित्र प्रेम का परिचय पाकर हमारे मन में कभी कभी उठती मलिनता पूरी तरह मिट गयी है। जिस तरह तीव्र गति से बहती नदी का जल कितनी ही मलिनताओं को अपने साथ बहा ले जाता है। उसी तरह अब श्री राधा प्रेम से परिचित होने के बाद हमारे मन में बस प्रेम ही प्रेम शेष बचा है।
माता जी। उन दिव्य, प्रेम की अधीश्वरी के चरित्र जानने की इच्छा मन में है। श्री कृष्ण से निस्वार्थ प्रेम करने बाली गोपियों का पवित्र चरित्र हम जानना चाहते हैं। यदि उस चरित्र को सुनने के हम पात्र हैं तो कृपया हमें भी वह परम पवित्र चरित्र सुनाने की कृपा करें। "
" बेटियों। सच्ची बात है कि श्री राधा तथा अन्य गोपियों के चरित्र को इस संसार में बहुत कम लोग ही पूरी तरह जानते हैं। श्री कृष्ण और श्री राधा के अतिरिक्त उनकी कृपा के पात्र बने उद्धव, महर्षि वेदव्यास और महर्षि वेदव्यास के पुत्र शुकदेवजी महाराज के अतिरिक्त अन्य कौन है जो राधा तत्व की सही तरह से व्याख्या भी कर सके। फिर भी जितना मुझे ज्ञात है, वह आपको बताऊंगी। पर इस विषय में एक बड़ी समस्या है। पुत्र की प्रेम कथाओं का वर्णन करना किसी भी माॅ के लिये कभी संभव नहीं होता है। संबंधों का संकोच हमेशा ही मनुष्य को रोकता है। इसलिये कोई ऐसी व्यवस्था बन जाये कि श्री कृष्ण यहाॅ आयें ही नहीं और उनके इस तरफ आगमन पर कोई मुझे उसकी सूचना दे सके तो ही मैं किसी तरह श्री राधा और श्री कृष्ण की प्रेम लीलाओं को सुना पाऊंगीं। "
इसके बाद रानियों के अनुरोध पर श्री कृष्ण की छोटी बहन देवी सुभद्रा दरवाजे पर रखबाली के लिये खड़ी हो गयीं। श्री कृष्ण अथवा श्री बलराम को आते देख माता रोहिणी और भाभियों को सावधान करना उनकी जिम्मेदारी थी। शायद वह जानती ही न थीं कि श्री राधा चरित्र कितना मधुर है। इस मधुर चरित्र को सुन भला कौन चैतन्य रह पाने में समर्थ होगा। फिर देवी योगमाया की अवतार सुभद्रा के लिये तो शायद बिलकुल ही नहीं। वह क्या स्थिति होगी जबकि देवी सुभद्रा खुद श्री राधा के पवित्र प्रेम की गाथाओं को सुन खुद ही चैतन्य नहीं होंगीं और उसी समय श्री कृष्ण और बलराम दोनों भाई भी वहीं आ पहुंचेंगे।
क्रमशः अगले भाग में
