औरत क्यों सहनशील बने ?
औरत क्यों सहनशील बने ?
विनीता जब सुबह- सुबह अपने मायके अचानक पहुंच जाती है, और वहां पहुंचते ही उसके अचानक आने का कारण मां जानने की कोशिश करती हैं ,और उसकी मां पूछती -"अरे विनीता बेटी ऐसा क्या हो गया ,जो बिना फोन किए ही आ गई।
तब उसे और अधिक रुलाई छूटती है, वह उन्हें रोते हुए कहती-" मां मैं अब सुमित के पास कभी नहीं जाऊंगी।" तभी उसके रोने की आवाज सुनकर उसका भाई और भाभी भी वहां पहुंच जाते हैं । क्योंकि उन्हें भी उनके कमरे तक आवाज रोने की सुनाई देती है।तो एक दम से आकर चौंककर उनके पास पूछते हैं- " दीदी आप!!अचानक यहां... और रो क्यों रही हो ?कुछ बताओ तो सही हुआ क्या ••••!
तब वह कहती -"सुमित आजकल मुझ पर हाथ उठाने लगे हैं ,वो कहीं और का गुस्सा मुझ पर निकालते हैं।" तब उसकी रागिनी भाभी बोलती है ऐसे कैसे आप पर हाथ उठा देते हैं? पहले भी उठाया है क्या?
तब वो बोली - "भाभी पहले बिजनेस में नुकसान के कारण अपनी भड़ास मुझ पर निकालते थे,और अगले दिन वो मुझसे माफ़ी मांग लेते।तो मैंने आप लोगों को कुछ नहीं बताया, पर अब तो बिना बात पर चिल्लाते हुए बात करते हैं।अगर उनकी बात पर तुरंत जबाव न दो तो हाथ तक उठाते हैं।अब तो छोटी- छोटी बात पर हावी होने लगे हैं,कभी चाय फीकी कहते हैं,तो कभी चाय मीठी कर दी , ये कहते हैं ।इस तरह हर तरह से उन्हें मेरे से परेशानी है।
तब उसकी मां सुमित्रा जी समझाते हुए कहती _ "बेटा धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।" तब उसकी रागिनी भाभी ने कहा - "अरे मम्मी जी आप कैसी बातें कर रही है। दीदी सब कुछ छोड़कर तभी आई है, जब कुछ ठीक होने के आसार नहीं लग रहे थे।"
उसी समय उसका भाई बोला-" दीदी कुछ समय यहां रहो और एक मौका देकर देखो।"
तब रागिनी कहती - " सुनिए जी ,दीदी अपनी बसी-बसाई गृहस्थी यू ही छोड़कर नहीं आई है, उन्होंने भी बहुत मौके दिए होंगे।आपको क्या लगता दीदी ने कोशिश नहीं की होगी।"
तब वह कहता-" आखिर दीदी कब तक यहां रहेंगी? कुछ तो रास्ता निकालना होगा। "
इतने में उसकी रागिनी भाभी कहती- " हमें तो दीदी का साथ देना चाहिए। और आप लोग दीदी को ही झुकने कह रहे हो ,वो आखिर कब तक ज्यादती सहेंगी।" इधर वो खुशियों की तलाश में आई।हम उनका साथ नहीं देंगे तो कौन देगा।इस तरह वह ननद का हाथ थामकर वह कहती -"दीदी आप चिंता मत करो ,हम आपके साथ है।आप पढ़ी-लिखी है।आप नौकरी की तलाश कर एक दम निश्चिंत होकर यहां रहो।हम आपके साथ है।
इस तरह हाथ थामते ही ननद को भाभी के प्रति अपनापन लगता ,वो गले लगकर कहती -"भाभी आपने मेरा साथ देकर आत्मविश्वास बढ़ा दिया है।" इतने में रागिनी भाभी कहती -" आप देखना जीजा जी को अपनी ग़लती का एहसास एक दिन हम करा कर ही रहेंगे, और उन्हें आपकी कद्र भी करनी होगी।
फिर कुछ दिन बाद विनीता के पास सुमित का फोन आता है, उसे अपने किए की गलती का एहसास होता है।वह माफी मांगने लगता है।
तब वह कहती - " अब माफी मांगने से क्या फायदा,हाथ उठाने के पहले आपने नहीं सोचा कि मुझे पर क्या बीतती होगी। आपको कोई परेशानी है, तो खुलकर कहते ,आप तो मुझे बोलने का मौका भी नहीं देते थे।मैं कैसे आत्मसम्मान को मारकर आपके पास लौट आऊं।"
तब वह कहता - " मैं तुम पर कभी हाथ नहीं उठाऊंगा।चाहो तो लिखकर दे सकता हूं।अब मैं बिल्कुल अकेला हो गया हूं।उस समय गुस्से में न जाने क्या कुछ कह दिया था। अब माफ़ कर दो, ये मुझे एहसास हो गया है, मेरी जो झुंझलाहट थी ,वो मैंने तुम पर निकाली जो कि बहुत ही ग़लत थी। तुम्हारे जाने के बाद मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है। "
तब वह कहती - "आपको मेरे मायके में आकर सबके सामने यह बात कहनी होगी।" यदि मेरी भाभी, मां भेजेंगी तो ही तुम्हारे पास लौटूंगी।"
दो दिन बाद जब सुमित उसे लेने आता है ,तो वह कहता - "चलो विनीता तुम्हें लेने आया हूं, सबके सामने माफी भी मांगता हूं।
तब वह कहती- " मैं तुम पर निर्भर नहीं रहूंगी। मैंने अपने लिए नौकरी ढूंढ ली। मैं अपने लिए जीना चाहती हूं। तुम्हारे इशारे की कठपुतली बनकर नहीं रहूंगी।
इतने में उसकी मां कहती-" बेटा अगर दामाद जी इतना कह रहे हैं ,तो एक मौका दे दो। पर तुम कभी कुछ मत सहना। क्योंकि हम तुम्हारे साथ है, और कभी भी कोई बात हो तो बेझिझक हमें फोन करना,अब सहने की जरूरत नहीं है।
फिर विनीता की मां और भैया भी कहते- " देखिए दामाद जी हमने बड़ी मुश्किल से अपनी बेटी को संभाला है, अब उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं करिएगा जिससे विनीता को तकलीफ़ हो।आप दोनों अपनी शुरुआत बहुत प्यार से करें।पर ध्यान रखिएगा हम उसके साथ है। वह अकेली और कमजोर नहीं है।
इस तरह विनीता खुशी से पति के साथ चली गई।भाभी ने उसका साथ देकर उसको खुशियों की चाबी थमा दी। और नौकरी करते हुए आत्मविश्वास और सम्मान से पति के साथ रहने लगी।और विनीता की नौकरी करने से पारिवारिक स्थिति में सुधार हो गया।
इस तरह उसके थोड़े मजबूत इरादों उसे पति से वो सम्मान मिला जिसकी वो हकदार थी। इसलिए अपने लिए जरुर कदम बढ़ाने चाहिए।
दोस्तों - औरत को सहने की सलाह क्यों दी जाती है।ताकि उसका परिवार बचा रहे, किस कीमत तक सहे ! आखिर क्यों? हमें अपनी बेटियों का साथ देकर उसकी हिम्मत देकर उसके जख्म पर मरहम लगाना चाहिए। ताकि बेबस और असहाय और अबला महसूस न हो। अब समय बहुत बदल चुका है ,आज समानता के साथ औरत आदमी साथ बढ़ रहे हैं।कोई किसी से कम नहीं है। इसलिए घरेलू हिंसा सहन करना बहुत ही ग़लत ही होगा। क्योंकि हिंसा सहना अर्थात गलत को बढ़ावा देने के समान है।