अपनों से ही आहत हुई••••
अपनों से ही आहत हुई••••
रजनी बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी। उसकी बहन रोशनी जरुरत से ज्यादा चतुर और चालाक थी ,समय का फायदा कैसे उठाना है, यह कोई उससे ही सीखे.धीरे - धीरे ये उसकी आदत में आ गया था।यह बात उसकी मां भी अच्छी तरह जानती थी।वह उसकी होशियारी पर बहुत बार शाबाशी तक दे देती थी।
जबकि रजनी सीधी जरुर थी, पर वह सब समझती थी, और वह कम भी बोलती थी।
जब मन अधिक भर जाता तो इकट्ठा ही निकलता है यह सभी जानते हैं।यही हाल रजनी का था।
एक बार की बात है रोशनी अपने मायके आई हुई थी।उसकी छोटी बहन रजनी भी आई हुई थी ।बड़ी बहन जब भी मायके आती तो अपनी नोटों की गड्डियों को दिखाती ,तब एक दिन उसकी मां पूछती है - " अरे बेटा इतने पैसे क्यों यहां लेकर आई हो?" तब वह बड़े ही रौब से कहती -"अरे मां मेरे खुद के पैसे हैं, मैं चाहे जैसे खर्च करु , मेरे यहां तुम्हारे दामाद कुछ नहीं कहते हैं। मैंने पार्लर से जोड़े हैं ।"
तब वह बाजार जाकर बहुत सारा सामान खरीद लाती है, और सामान निकाल- निकाल कर मां को दिखाती है तब मां बोलती है- " अरे तू रोशनी इतना कमाती है, तो मेरे लिए क्या लाई! यहां के लिए भी कुछ ले आया कर।"
तब वह बड़ी ही चतुराई से कह देती है, आपने कुछ बोला ही नहीं, क्या ले आते?तब मां बोली तुम मायके आती हो तो घर की मिठाई ही ले आती हो जैसे कुछ बाजार में अच्छा मीठा मिलता न हो।तुम तो एक नंबर की कंजूस की कंजूस ही रही, जब से शादी हुई है, तब से यही देख रही हूं।
बाजार से इतना कुछ लाई।ये तक तुमसे न हुआ चलो कम से कम मां पापा के लिए चाट चटौनी ही ले जाए, तब वह बात बनाते हुए बोलती - " अरे मां हम जब फिर से बाजार जाएंगे तो जरूर ले आएंगे। "
इतना कह बात वह टाल ही जाती।और रजनी को आए हुए दो दिन ही हुए तो बाजार गई ,तो उसने सोचा चलो घर लौट रही तो चाट फुल्की पैक करा लेती हूं।जैसे ही घर पहुंचती तोतो सामने का नजारा देखकर उसके होश ही उड़ गए क्योंकि मां और उसकी दीदी उसका बैग खोले बैठी थी और रजनी अपनी मां से कह रही थी कि देखो तो मां रजनी के पास ढंग की एक साड़ी तक न है। और मेरी देखो••• मां मेरी साड़ी सभी हैवी वर्क वाली हैं।
इतना सुनते ही रजनी बोली- "दीदी ये क्या हैं मेरी गैर मौजूदगी में एक तो मेरा सामान खोले बैठी हो, और ऊपर मेरी ही बुराई क्यों?कोई और विषय नहीं है क्या! बात करने के लिए,जो आप मेरे ही पीछे क्यों पड़ी हो? पता नहीं आपको मेरी ही सामान में कमी क्यों दिखती है!और हमें पता है कि आप कैसी हो, और क्या पहनती हो ,कभी जेठानी की साड़ी लाती हो,तो कभी ननद की ले आती हो। मुझे किसी और की साड़ी पहनना पसंद नहीं है ,न ही मेरे पति को पसंद हैं जो भी साड़ी है ,वो सब मेरी ही स्वयं की है और यहां वहां से मांगी हुई न है, यहां भी आप तो मांग मांग कर भाभी की कभी ,कभी मम्मी की साड़ी ही पहनती हो, हमें न बताओ मेरा रहन सहन कैसा है••• इस बात की फ़िक्र मत करो, कम से कम खुद की तो , साड़ी पहनती हूं । मुझे तुम्हारी तरह दिखावा पसंद नहीं है। "
इतने में बात बदलते हुए रोशनी कहने लगी -"मैं तो तुम्हारी वाली लिपिस्टिक निकाल रही थी मेरी वाली साड़ी पर तुम्हारी कोक शेड वाली अच्छी लगेगी। इसलिए सामान खोला।"
तब मां बोली -"अरे रोशनी ने तुम्हारा बैग खोलकर सामान और साड़ी देख लिया क्या हुआ?इतनी गुस्सा तुझे क्यों आ रही है? तेरी बहन ही तो है।
तब रजनी बोली -
बस करो मां•• अब तो मुझे बख्श दो मेरी शादी हो चुकी है, मेरा भी मान सम्मान है ,अब भी छोटी बच्ची न रह गई।कि तुम और दीदी सुना दो और मैं सुन लूं। और दीदी आप मां को ज्यादा ही लपेटे में लिए रहती हो, सब समझती हूं।कि यहां से जितना मिल जाए तो ले जाऊं। भले ही खुद कुछ न करो।"
तभी उसके पापा आते हैं, तो देखते हैं मां बेटी दोनों रजनी पर सवार है ,तो वह कहती - " पापा दीदी ऐसी क्यों है, कुछ नहीं तो मेरी ही बुराई शुरू ये कोई अच्छी बात है!!मेरी जितनी चादर उतना ही पैर पसारती हूं, ये तो नहीं दूसरे की मांग कर साड़ी पहनूं।दीदी का यही हाल है,वो मां से मेरी साड़ियों को देखकर बुराई कर रही थी। "
एक तो मैंने जो बाजार से लौटते समय सोचा सबके लिए चाट फुल्की ले जाऊं, सब साथ में खाएंगे पर यहां तो नजारा ही अलग था।
तब उसके पापा ने मां और रोशनी को समझाया कि तुम लोग को इतनी समझ नहीं है , कब कैसे बात करनी चाहिए।कम से कम इसके स्वाभिमान को ठेस को तो मत पहुंचाओ।ये कभी कोई चाह नहीं रखती , और रोशनी तुम्हें तो अच्छी तरह से जानता हूं, इतना पैसा होते हुए भी हाव- हाव लगा रहता है।कि कितना मिल जाए। और तुम्हारी मां भी तुम्हारा साथ देकर बहुत ग़लत कर रही है।
अब रोशनी और उसकी मां की बोलती बंद हो जाती है।उनको लगता है कि हमें रजनी के बारे में इतनी बात नहीं करनी चाहिए थी।
फिर रजनी अंदर जाकर चाट फुल्की सब खोल कर सबको देने लगती है। क्योंकि उसके मन में कोई मैल नहीं रहता है। और रोशनी भी बात संभालते हुए कहती -"अरे रजनी हमारा वो मतलब नहीं था।बस इतना मां से कह रहे थे कि भले ही साड़ी में कम खरीदो पर फैशन और समय के अनुसार तुम खरीदो ,बस इतना ही कह रहे थे।
तब रजनी कहती - "दीदी मैं साड़ी खरीदने में चूज़ी हूं ,मैं फैशन के अनुसार नहीं खरीदती हूं मैं ऐसी साड़ी खरीदना पसंद करती हूं जिसका फैशन कभी न जाए। मुझे तड़क भड़क वाले कलर पसंद ही न आते हैं। और सिल्क तो हमेशा चलता है इसलिए मेरी ऐसी ही पसंद है। "
तब रोशनी कहती हैं -"अरे बाबा माफ़ कर दे मेरी मां मैं कभी तेरे पीठ पीछे बुराई न करुंगी। और फिर रोशनी अपनी ग़लती मानी लेती है।मां भी कहती हैं जो हुआ सो हुआ रजनी बात का बतंगड़ न बना।" फिर मां कहती-" देख रोशनी तुमसे बोलते ही रह गये और रजनी तो चाट फुल्की ले भी आई।" इस तरह मां सुन उसका भी मन शांत हो जाता है।
दोस्तों- हमें दूसरों के सामान देख बुराई नहीं करना चाहिए। नहीं तो आपसी रिश्तों पर दरार पड़ते देर नहीं लगती है।चाहे सगे संबंधी ही क्यों न हो, मन तो दुखी होता है । इसलिए हमें सोच समझकर ही बोलना चाहिए।
