सासुमा मां जैसी क्यों नहीं !!
सासुमा मां जैसी क्यों नहीं !!
आज सुगंधा अपनी बहन से फोन पर बात कर रही थी।तब उसे पता चला कि वह अपने बच्चों की छुट्टी के बाद मायके आ रही है।तब उससे भी पूछा- " दीदी तुम भी आ रही हो क्या?आ जाओ हम दोनों साथ रह लेंगे।"
तब सुगंधा ने कहा-" मुझे सासुमा जी से बात करनी होगी।तब ही उसकी सासुमा ममता जी की आवाज आई बोली -"बहू कब तक फोन पर लगी रहेगी,आज चाय मिलेगी कि न मिलेगी!"
शाम का समय था। फिर जब वह चाय बनाकर लाई, तब सासुमा बोली -"अरी बहू तेरा चेहरा पढ़ सकूं हूं मैं, कोई बात करनी है क्या •••तेरा चेहरा देखकर लग रहा है, जैसे कुछ पूछना चाहे है, पर बोल न रही है•••क्या बात है?"
तब बड़ी हिम्मत करके वह बोली -"मां जी मेरी बहन मायके आ रही है, मैं भी चली जाऊं ?पिछली बार भी उसके साथ नहीं रह पाई थी।
इतना सुनते ही वे बोली-"अरे कितने दिन रहोगी वहां?"तब वह कहती हैं -" पांच छह दिन तो रह ही लूंगी,साल भर एक बार ही मौका मिलता है।"
तब ममता जी बोली- " यहां घर का काम कौन संभालेगा! मुझसे अब न होता है।"
तब सुगंधा ने कहा -"मां जी बाजू में रज्जो जो है, वह काम कर दिया करेगी। इतना सुन बोली- वो कितना काम करेगी! उनके इस प्रश्न को सुन सुगंधा बोली- " मां जी वह बर्तन और कपड़े तो कर ही लेगी। झाड़ू रोज सुबह बस लगवा लेना, पोंछा का क्या है दो तीन दिन में पूरे घर में करा लेना।मेरे कमरे में जरूरत ही नहीं है,पर आप बैठक और किचन बस में ही रोज पोंछा लगवा लेना इतना ही काफी होगा। " फिर उसकी सासुमा बोली -"अच्छा चली जा, पर तू जितने कपड़े टंगे हैं, और एक्स्ट्रा कपड़े टावल चादर वगैरह है, वो सब धुल कर ही जाना। "
उसने जी कह कर हां में सिर हिला दिया।
तब और उन्हें याद आया तो वो कहने लगी कपड़े प्रेस भी कर जाना, नहीं तो मेरा बेटा परेशान हो।
और सूखा नाश्ता भी बनाकर रख जाना। इतने सुनते ही वह मन ही मन बड़बड़ाते हुए कहने लगी -"कहीं एक सप्ताह का खाना भी बना कर न रख जाऊं!!!"
अरे अरे ••••क्या सोचने लगी, सासुमा ने चैतन्य करते हुए बोला, फिर वह बोली कुछ नहीं मां जी •••
अंदर जाते हुए सुगंधा बड़बड़ करते हुए बोलने लगी, नाम के अनुरूप तो ममता ही नहीं है, पता नहीं मेरे मायके जाने के नाम पर सासुमा के क्यों बाजा बजने लगते हैं। मुझे तो लग रहा है कि कब पहुंच जाऊं। सबसे खुब बातें करु••कितना मजा आएगा।
फिर वह जल्दी- जल्दी सब काम करने लगती है •••
अगले दिन तैयारी करके मायके चली जाती है •••
फिर वह बीच-बीच में सासुमा से फोन करके खाना पीना और दवा के बारे में पूछ लेती है। जब भी उसकी मां भी सुगंधा की सास से फोन पर बात करके पूछती समधन जी कैसी है आप, तब वो कहती- अरे बहन जी कैसी हूं, पूछ रही है आप !!बस अभी- अभी काम से फुर्सत हुई हूं।
अब कब भेज रही हो सुगंधा को, मेरे से कोई काम ही नहीं होता, दो दिन रहे या चार दिन क्या होता है, मिल तो लिया ऐसा कीजिए जल्द से जल्द भेज दीजिए।तो सुगंधा अपनी मां से सासुमा जी को कहती मैं परसों पहुंच जाऊंगी।
अब मायके में वह अपनी मां से कहती-मां मेरी सासुमां ऐसी क्यों हैं ?दो चार दिन काम क्या करना पड़ रहा है, तो उन्हें बड़ी परेशानी हो रही है।एक आप हैं जो उसी उम्र में होकर भी इतना काम करती हैं।
अब आठ दिन बाद ••••
सुगंधा जैसे ही घर में पहुंचती है तो मां जी कहती हैं- "आ गयी आराम करके एक मैं हूं, जो घर में इतनी परेशान हुई हूं। मेरी कमर तो काम के मारे अकड़ गई है।
तब वह पानी पीने किचन में पहुंचती है तो देखती है कि किचन पूरा फैला पड़ा है, बर्तन भी धुलने पड़े हैं, कपड़े का ढेर भी टंगा है। तो उसे बहुत गुस्सा आया,ये सब देखकर वह मां जी पूछती है- "अरे मां जी इतने सारे बर्तन जूठे क्यों पड़े हैं ?रज्जो नहीं आई क्या?
तब ममता जी कहती हैं-" अरे जब तुझे आज ही आना था, तो क्यों उसे आज के पैसा देना, मैंने मना कर दिया।"
तब वह कहती-" मां जी मैं सफर से अभी आई हूं।तो क्या सीधे काम में लग जाऊं? पानी भी पीना है तो पहले गिलास मांजू। फिर पानी लूं।ऐसा भी क्या पैसे बचाना मां जी ••••वह कांच के गिलास को धुलकर पानी लेकर पी लेती है।
अब चाय पीना हो तो ममता जी को इतना भी नहीं हुआ कि बहू को एक कप चाय बना कर दे दे•••वह मन में बड़बड़ा कर चाय का डंका सिंक से निकालकर साफ करती है। और चाय बनाकर मां जी देते हुए कहती -" मां जी एक दिन और रज्जो से काम करना लेती तो क्या हो जाता !वैसे ही मुझे तो सारे काम करने ही है ••• "
अरे तू समझती न है•• एक दिन के दो सौ रुपए ले लेती •••इसलिए मना कर दिया।
तब वह चाय पीकर किचन में जाकर और कहने लगती है••• ओखली में सिर दिया है, तो पीटना तो पड़ेगा ही•••और वह किचन समेटने लगती है।
दोस्तों -हम कहीं से आते हैं तो तुरंत काम करने का मन नहीं होता है।चाहे दो घंटे के लिए कहीं क्यों न गये हो, खासकर सफर से लौटे तो लगता है कि कोई चाय पानी तो दे दें।पर सासुमा मां जैसे क्यों नहीं होती है ?ऐसी बहुत से घर की कहानी होती हैएक तरफ मायके जब पहुंचो तो मां कितना कुछ सोचती है कि बेटी को ये खिलाऊंगी, वो बनाऊंगी। पर सास मां भले ही न बने, पर परेशान तो न करे। आखिर सासुमा मां जैसी क्यों नहीं होती।
