चुप्पी कहीं कमजोरी तो नहीं!!!
चुप्पी कहीं कमजोरी तो नहीं!!!
एक औरत की जब विदाई होती है ,तो केवल अपने कर्तव्यों का पालन करना सिखाया जाता है। कहा जाता है कि औरत की विदाई डोली पर सजती है पर अर्थी ससुराल की देहरी पर सजती है।इस तरह तनुजा अपने कर्तव्य का निर्वाह बहू पत्नी और मां बनकर करती जा रही थी । उसके पति की आय बहुत कम थी।
वह सुबह से काम लगती ,पर काम रात के ग्यारह बजे तक भी कभी खत्म नहीं होता। उसकी सुबह घर के कामों से शुरू होती ,वह हर काम को बड़ी ही तल्लीनता से करती ,पर सास के ताने कभी खत्म नहीं होते ।पति का हर काम समय से करती।पर कोई न कोई कमी रह ही जाती।
एक दिन की बात है। सासुमा को चाय देने में देर हो गई ।क्योंकि पति को मीटिंग में जल्दी जाना था। तो वह पहले टिफिन बनाने में लग गयी और सासुमा को चाय तुरंत बना कर नहीं दे पाई तब सासुमा कहने लगी, "अरे बहू चाय घर में ही मिलेगी या मंदिर की लाइन में बैठ जाए।
इस तरह से सास को भी बिना ताने दिए चैन नहीं मिलता!
पति को वह कुछ सामान लाने के लिए कहती तो पास जाती, थैला देती या टिफिन हाथ में पकड़ाती "वह कहता तुम मुझसे दूर रहा करो क्योंकि तुम्हारे पास से मसालों की ही गंध आती है, तो मन मसोस कर रह जाती। जैसे उससे कोई अपराध हो गया।"
उसके पति की एक कंपनी में मीटिंग रहती तो फोन पर बात कर सुन लेती कि भाभी जी को पार्टी में लाना है। पर तनुजा के पति को लगता कि बहन जी टाइप को क्या ले जाना। इस तरह तनुजा को उसका पति अपने लेवल का न मानता ।
तनुजा कभी कभार ही मायके जा पाती वो भी समय को देखते हुए घर वापस लौटना होता।
क्योंकि उसका मायका लोकल था
तनुजा का पति हमेशा कहता कि मैंने मां बाबूजी की पसंद से शादी की ,उन्हें घरेलू लड़की चाहिए थी ,वो तुम हो!पर तनुजा कभी भी बहस को बढ़ाना नहीं चाहती थी , इसलिए चुप रह जाती।वह अपना फर्ज निभाती जा रही थी हर काम समय पर करने की कोशिश करती। क्योंकि सबको अपना मानकर ही तरे सिरे से सेवा करती।
उसके पति को उसके कपड़े से मसाले और तेल की महक ही आती वो हमेशा खिंचा- खिंचा सा रहता।
समय निकलता जा रहा था। बच्चे भी बड़े हो रहे थे।सबकी अपनी-अपनी दिनचर्या थी।सब अपने में खुश पर तनुजा घर गृहस्थी में इतनी उलझी रहती कि अपने बारे में सोच ही नहीं पाती।बस उसे घर कैसे चलाना है ,गृहस्थी के डिब्बे खाली न रहे ,बस यही तक उसकी सोच सीमित थी। उसके बच्चे पापा की सह पाकर अपना अपनी मनमर्जी से काम कर रहे थे।
फिर कुछ समय बाद बड़े लड़के की नौकरी लग जाती है।उस समय उसकी शादी को लेकर भी उसकी कोई पूछ परख नहीं होती। सास और पति ही सब निर्णय लेते हैं।कुछ समय पश्चात लड़के की शादी भी हो जाती है।नयी बहू को दादी सास समझाने लगती है, तुम्हें भी तनुजा जैसे रहना है।अब तनुजा की बहू नये जमाने की। वह पढ़ी लिखी थी।नये विचारों की थी उसके मायके में सब अपना- अपना काम करते थे।
शुरु में उसनेे कुछ नहीं कहा । कुछ दिनों तक सब देखती रही।अब उससे सासुमा का अपमान और अवहेलना सहन नहीं हुई ,तो उसने साफ - साफ कहा - "आप सब मुझे मम्मी की तरह बिल्कुल मत समझना। क्योंकि मैं भी घर की एक सदस्य हूं। जैसे सब चाहते हैं सब काम समय पर हो। सबको मदद करनी होगी।सब अपने- अपने काम स्वयं करेंगे। मुझे भी अपना समय चाहिए मैं मम्मी की तरह नहीं मन मारकर सब सह कर नहीं रह सकती।" इस तरह दादी सास की बोलती बंद!
आज माही ने जो आवाज उठाई वह गलत नहीं थी।
इस तरह आज तनुजा को एहसास हुआ कि मुझे क्या मिला ? मेरी इतने सालों की तपस्या का क्या? मैं आखिर क्यों चुप थी!
फिर धीरे-धीरे तनूजा बहू माही की भावना को समझने लगी। और अब जब भी टेबल पर खाना लगता, तो सब आ जाते, वह सबके आगे पीछे नहीं दौड़ती, ये नाश्ता कर लो, कि खाना खा लो उसके आने से खाने पीने का समय निश्चित हो गया।इस तरह सब काम समय से पहले हो जाता।और तनुजा का भी जिंदगी के प्रति नजरिया बदलने लगा। और उसे बहू की बातें सही लगने लगी।अब लड़के की नौकरी से भी घर में कोई कमी न थी।वह भी अपनी बात सबके सामने खुलकर बोलने लगी। बहू उसकी सखी सहेली की तरह बन गई। बहू ने आत्मविश्वास से जीना सिखा दिया ।आज उसे अहसास हो गया कि मेरा समय भी आ गया है, नयी सुबह हो गई।आज ये बीता समय एक नई सीख दे गया कि चुप रहने से कोई काम नहीं बनता। इसलिए कहा जाता है कि जब जागो तभी सवेरा ये बीता साल तनुजा के जीवन में बहुत बदलाव ले आया
दोस्तों - घर परिवार में चुप्पी जहां तक जरुरी हो उतनी ही रखनी चाहिए ,न कि अपने कर्तव्य पालन के लिए अपने आप को समर्पित करते जाएं।और लोगों की नजर में वह तुम्हारी कमजोरी बन जाए। अपने आप में आत्मविश्वास और स्वाभिमान भी आवश्यक होता है।
