ससुराल की इज्ज़त
ससुराल की इज्ज़त
तृषा और वैभव अपने घर लौटकर आते हैं।तब तृषा की सास किचन में काम कर रही होती है बाहर हाल में बैठते हुए सावित्री जी कहती -"अरे बेटा ससुराल गये थे।सब अच्छे से हो गया होगा ।" शादी की बात इतने दिनों से चल रही थी। आखिरकार इतने दिनों में हो ही गई, चलो तृषा के भाई की शादी तो हो गई।कम से कम अच्छी लड़की तो मिल गई।तब वैभव कहता -" अरे मां•• कहां की अच्छी शादी•••लड़की वाले बड़े कंजूस थे , विदाई के समय सबको सौ रुपए पकड़ा रहे थे ,उनको ये तक तरीका नहीं है, लिफाफे शगुन में रखकर दिया जाता है।कितने छोटे घर से तृषा की भाभी आई है। कि कुछ पूछो नहीं ••और तो और मां तृषा के यहां खाने तक की व्यवस्था ढंग की नहीं थी। दोपहर का खाना भी कम पड़ गया था।"इतना सब वह सुने जा रही थी।उसके कमरे तक उसकी आवाज आ रही थी।उसे यह सुनकर बहुत गुस्सा भी आ रहा था।वह अपने कमरे में कपड़े जमा रही थी। और फिर उसका पति कमरे में कपड़े उतार कर टांगने आया। तभी उसके पति को समझ आ गया कि मेरी बातों का तृषा को बुरा लग रहा है। और
वह उसे गुस्से से देख रही थी।तब वह एकदम चुप होकर बिना कुछ बोले बाहर आ गया।
थोड़ी देर में उसकी बहन रीना आती है।तब मां से पूछती है- " मां भैया भाभी आ गये क्या ? वे लोग तो भाभी के यहां शादी में गये थे। वहां की शादी कैसी रही?क्या मिला ससुराल से भैया को ?आखिर वे अपने साले की शादी में गए थे! वहां तो उनकी बहुत खातिरदारी हुई होगी।अरे भैया ,बताओ न क्या मिला है वहां से ?तभी उसकी मां गिफ्ट का थैला खोलते हुए देखती है ,उसके लिए साड़ी और बेटे के लिए सूट का कपड़ा और मिठाई का डिब्बा हैं।उसकी मां मिठाई खोलते हुए ही कहती-ये कैसी मिठाई है ,कम से कम लड़की दामाद को तो ढंग की मिठाई रखते!! देसी घी की भी न लग रही है।मां से उसकी बेटी रीना कहती - "मां भैया को कुछ सोने का नहीं मिला क्या??"
तब उसकी मां कहती - " अरे रीना कहां से उम्मीद लगा रही हैं,जब तेरे भैया की शादी में कुछ ढंग का मिला नहीं, तो अब क्या मिलेगा••• वो भी साले की शादी से!!!मां भी बेटी रीना को बताने लगी, अरे तेरे भैया की ससुराल जैसे ही उसके साले के ससुराल वाले भी कंजूस है।इतना सुनते ही फिर तृषा ने मां को फोन करते हुए कहती हैं -" मां तुम मेरी भाभी का बहुत ध्यान रखना और उसकी साड़ी मुझे मत दे देना।जैसे मेरी सास ननद को दे देती है, यहां तो खान पान के बारे में और शगुन के बारे में भी बहुत कुछ सब बोल रहे हैं,भैया भाभी के बारे में न जाने लोग क्या- क्या बात कर रहे हैं। कि भैया की इतनी लेट शादी क्यों हुई,पर क्या हुआ अगर शादी देर से हुई,मेरी भाभी तो बड़ी सुंदर है ,उसे वो जेवर मायके से मिले हैं वो सब भी पहनने दे देना । मेरे यहां तो मेरे जेवर सब ननद जी को दे दिए गए हैं, मैं तो शौक से पहन ही नहीं पाई। सब भाभी के कम पैसों को देख रहे हैं ,उनके यहां से सौ रुपए मिला है वो बिना लिफाफे के ,ये सब देखा जा रहा है। मां जिसे जो कहना है कहे कम से कम मेरे ननदोई जैसा नहीं है,वह बिल्कुल भी अच्छे नहीं दिखते पैसा ही महत्वपूर्ण नहीं होता है,यहां तो भैया की शादी लेट हुई उसके लिए भी बातें हो रही है।मां अगर भैया मंगली न होता तो जल्दी शादी हो जाती । मेरे भैया आखिर स्मार्ट जो है, वो तो आप कुंडली मिलाने पर जोर देती थी इसीलिए नहीं तो हम कब की भैया शादी कर चुके होते।खैर मां आपने सही किया शादी में जल्दबाजी नहीं की ,नहीं तो मेरी भाभी सुंदर कैसे आती ?
इस तरह तृषा की बात करते सुन उसका पति भड़क जाता है।कि तृषा उसके यहां की पूरी पोल पट्टी खोल रही है , उसे यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होता है तो उसका पति चिल्लाकर कहता - "ये क्या हैं ,जो तुम इधर की उधर कर रही हो?"
तब वह कहती -"आप क्या कर रहे थे।जो खुद के बारे में सुनने की बारी आई तो बुरा लग रहा है।मेरे भैया भाभी की जोड़ी बहुत बढ़िया बनी है।यदि आप अपनी ससुराल की इज्जत करते तो मैं क्या बोलती!! नहीं न ,यदि आप अपनी ससुराल की इज्जत नहीं कर सकते तो मेरे से उम्मीद क्यों कर रहे हैं।
इतना सुन उसका पति समझ आता है कि उसे भी नहीं बोलना चाहिए था।
तब उसकी बोलती बंद हो जाती है,इधर सासुमा भी उसे गुस्से देखने लगती है ,तब उसकी बहन भी फोन छुड़ाने लगती है ,भाभी बस भी करो घर कि इज्जत और मान-मर्यादा को बनाकर तो रखो।
फिर उसकी नजर मोबाइल स्क्रीन पर पड़ती है तो देखती है कि मोबाइल का स्विच आफ है।अरे भैया मोबाइल तो आफ हैं। फिर तृषा कहती -" हां मेरा मोबाइल तो आफ है, मेरी मां ने यह नहीं सिखाया कि ससुराल की इज्जत उतारो। और श्रीमान जी और सासुमा जी सबको मैं बता दूं। मेरी मां ने मेरी विदाई के समय यह नसीहत दी थी दोनों कुल की लाज, मान सम्मान बना कर रखना, न मायके की इज्जत और न ही ससुराल की इज्जत पर आंच आने देना।ये दोनों परिवार तेरे अपने है , उन्होंने मुझे नसीहत दी थी दोनों की कमियों को कभी मत देखना ,यदि यह देखने लगोगी तो कभी संतुष्ट नहीं रह पाओगी।"इस तरह उसकी बात सुनकर पति सासुमा को लगा कि हम फालतू में बात कर रहे थे।आज तृषा को हमारी बात चुभी है ,इसलिए इतना बोल पाई।
फिर ननद ने भी कहा -"हां भाभी हम लोग ही आपके मायके वालों का कभी सम्मान नहीं कर पाए । दिखावा करना तो आसान है।पर हर कोई में उच्च संस्कार नहीं होते।आप हमारे घर लक्ष्मी बन कर आई। और भैया की तरक्की होती गई। और हम लोग आपके मायके से क्या मिला यही सोच बनाने में लगे रहे।"तभी उसकी सासुमा को लगा हम लोग तृषा के मायके वालों को लेनदेन से ही उन्हें तौलते रहे।पर वो असली चीज अपने बेटे को सिखा ही नहीं पाई।कि ससुराल की उसे भी इज्जत करनी चाहिए ।
तब सासुमा बोली-" तृषा हमने जो कहा या तेरे साथ किया उसके लिए हमें माफ कर दे।अब से तेरे मायके वालों पर मैं कभी उंगली उठाने नहीं दूंगी।अब मैं समझ गई हूं कि हर किसी को मायके की इज्जत प्यारी होती है। वैसे ही तुम्हें भी।
आज के बाद मैं अपने बच्चों को यही नसीहत दूंगी कि कभी किसी को सम्मान न दे सको तो कम से कम उसकी इज्जत न उतारो। और उन्होंने अपनी बात बेटे को भी समझाई कि बेटा तू अपने ससुराल में हमेशा कमी ही न देखा कर, हममें भी कमी हो सकती है ये मान लो यदि बहू ससुराल की इज्जत बचाती है तो तुम्हें उसके मायके की इज्जत करनी होगी।
तब वह कहता है -"हां मां हम कितना गलत कहते रहे हैं, जो कि हमें नहीं कहना चाहिए था।अब से हम ऐसा नहीं करेंगे।दोस्तों- हम सब यही देखते आए हैं कि हमारे मायके वालों को ससुराल वाले किसी भी मौक़े पर हमें चार बात सुनाने से नहीं चूकते। चाहे शादी ब्याह का समय हो या त्योहार पर मिलने वाला शगुन ही क्यों न हो।
पर एक मां अपनी बेटी को ससुराल को अपना मानने की नसीहत देती है तो अपने बेटे को ऐसी नसीहत क्यों नहीं देती कि किसी की इज्जत को न उछाले और ससुराल वालों का भी सम्मान करे।
