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Amita Kuchya

Inspirational

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Amita Kuchya

Inspirational

आत्मग्लानि ही सबसे बड़ा पछतावा

आत्मग्लानि ही सबसे बड़ा पछतावा

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जिंदगी के इस उम्र के पड़ाव में कुंती जी सब कुछ होते हुए भी बिल्कुल अकेली हो गई थीं।वो अपने कमरे से पानी मांग रही थीं, बुढ़ापे में शरीर साथ न दे तो हालत भी बद से बदतर हो जाती है। उनकी आवाज हाल में बैठे तीनों बहू बेटे को सुनाई नहीं पड़ रही थी। और वो प्यास के मारे चिल्ला रही थी।कोई तो मुझे पानी दे दो। उनके कमरे में पानी नहीं रखा था।


बस उन्हें लगता था कि बहू बेटे उनके पास कोई बैठे ,बोले बताए।वो लकवाग्रस्त होने के कारण से अपने आप उठ बैठ नहीं पाती थी। वो उठने बैठने व चलने फिरने में सक्षम नहीं हो रही थीं। क्योंकि जब खड़े होने की कोशिश करती तो असहनीय दर्द हो जाता था। क्योंकि उनका बैलेंस नहीं बन पाता था।वो ज़्यादातर अपने कमरे में ही रहती । क्योंकि तीनों बहू बेटे के साथ होते हुए भी साथ न थे।वे केवल औपचारिकता ही पूरी कर रहे थे।उनके पति का अच्छा व्यवसाय था । तो उन्हीं को बेटों ने संभाल लिया था।वह जब भी पानी मांगती तो काम वाली बाई या नौकर चाकर सुन लेते, पर आज उनके पास कोई नहीं था।उनका गला सूख रहा था। उनके पैर भी जवाब दे चुके थे।तब उनकी आवाज अचानक बच्चों के कानों में सुनाई देती है, तो उन्हें लगता है कि दादी आवाज लगा रही हैं ,और वो आवाज़ सुनकर पोते पोती उनके कमरे में पहुंच जाते हैं।


तभी उसके मम्मी पापा को लगा कि खाने की टेबल से दोनों बच्चे अचानक कहां चले गए।तब बड़ी बहू आवाज लगाती है ,फिर सासुमां के कमरे से आवाज़ आती है, मम्मी हम लोग यहां दादी के कमरे में हैं। फिर बड़ी बहू उस कमरे में पहुंच जाती है।


तब कुंती जी कहती -" बहू मुझे पानी पीना था , और मैं मांग रही थी ,तुम लोगों ने तो सुना नहीं, क्या करुं ?? तुम लोग तक मेरी आवाज़ जा ही नहीं रही ,अब सुनते ही नहीं हो ! तो मैं क्या करूं ••••और रोने लगती हैं। "


तभी धीरे -धीरे तीनों बेटे भी आते हैं, और कहते हैं मां हमसे जितना हो सकता है, हम कर तो रहे हैं आपका इलाज चल तो रहा है।अब हम लोग चौबीस घंटे आपके पास नहीं बैठ सकते!!


तब कुंती जी ने कहा- अगर तुम्हारे बाबूजी होते तौ मैं तुम लोग की मोहताज न होती।


फिर जब शाम होती है •••


तो उनकी बेटी मां की खैरियत पूछने आ जाती है।मां कैसी है तू ,तेरे हाथ पैर में कोई सुधार ही न हो रहा ,तू मेरे साथ चल •••


तब मां कहती हैं -"बेटा कोई क्या कहेगा कि तीन- तीन बेटों के होते एक मां बेटी के घर पड़ी है,ये अच्छा लगेगा क्या??"


तब वो कहती हैं-" मां जब भाईयों और भाभियों के पास आपके लिए समय नहीं है ,तो मैं हूं ना •••••

इतना सुनते ही भाईयों और भाभियों को आत्मग्लानि होने लगती है फिर वो लोग कहते हैं - " हां बहन हम लोग मां की देखभाल खुद नहीं कर पाए और शायद समय रहते उन्हें वाक पर ले जाते ,तो उनकी ये हालत न होती। डाक्टरों ने कह दिया है कि भारी शरीर होने के कारण ठीक न हो पा रही हैं। क्योंकि वजन पर बैलेंस बनाना कठिन हो रहा है,जिसके कारण वो खड़ी भी नहीं हो पा रही हैं। बहन अब हम लोग उनका अच्छे से इलाज कराएंगे ताकि मां को इतनी तकलीफ़ से न गुजरना पड़े।यदि उनको नागपुर भी ले जाना पड़े तो ले जाएंगे।आप जानती तो है। इनका कितने अच्छे से इलाज करा रहे हैं। फिजियोथेरेपी से भी इनमें कोई फायदा नहीं हो रहा है।अब हम लोगों ने सोच लिया और अच्छे डाक्टर को भी दिखाएंगे।ताकि मां ठीक हो सकें।


फिर तीनों बेटों के मुख से अपनी पछतावा वाली आवाज सुन कुंती जी अंदर से खुश होते ही कहने लगीं - " बच्चों मेरा आधा दर्द तुम लोग के साथ ही बोलने से कम हो जाएगा।तुम लोग तो मेरे पास बैठते ही नहीं हो। कम से कम मुझे अच्छा तो लगेगा।कोई अपना मेरे पास है। "


उसके बाद बहुएं भी कहने लगतीं - " मां जी अब से आपको अकेले नहीं रहने देंगे,आज से आप बैठक वाले रुम के पास वाले कमरे में रहने देंगे ,ताकि आपको अकेलापन न लगे।हम लोग आपके पास आते जाते बने रहेंगे।ताकि बोलते बताते रहें।


इस तरह की उनकी बात सुनकर उन्हें लगा कि अब मेरे पास कोई तो बोलने बताने वाला होगा। और इस तरह थोड़े से प्यार और अपनत्व से वह मुस्कराने लगीं। और उनका चेहरा खुशी से खिल गया।


दोस्तों - डाक्टरों के द्वारा इलाज में समय तो लगता ही है।पर मन के घाव अकेलेपन से बढ़ जाते हैं,यदि हम प्यार से बुजुर्गों से दो मीठे बोल बोलें तो उनके बुढ़ापे की तकलीफ़ भी आधी हो जाती है। और प्यार के दो शब्द भी किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होते हैं। इसलिए बड़े बुजुर्गों की चौबीस घंटे वाली सेवा भले ही न करें, पर दो शब्द प्यार से अवश्य बात करें। इससे उन्हें अकेलापन भी न लगेगा। और वो अपनों के साथ से खुश भी रहेंगे।



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