तालमेल से बंधी डोर
तालमेल से बंधी डोर
आज श्रेया आफिस के लिए निकलने वाली थी। तभी उसकी सास मधु जी ने टोकते हुए कहा - "ये क्या श्रेया कैसे कपड़े पहने हैं। कम से कम ढंग से तो जाओ। "
क्या कहा मम्मी जी आपने !!!" "मेरे इन कपड़ों में क्या खराबी है? आप मुझे यूं क्यों टोक रही है, ये आफिस का ड्रेस है, इसलिए मुझे ये पहन कर जाना होगा। श्रेया ने जवाब दिया।
तभी उसका पति सुधांशु आकर कहता -अरे श्रेया क्या हो गया, सास बहू में ऐसी क्या बातें हो रही है?
देखो न सुधांशु मेरे इन कपड़ों में क्या बुराई है ,मेरे आफिस का यही ड्रेस है। तो इसे क्या न पहनूं? मैं कोई फैमिली की शादी में तो नहीं जा रही हूं। कि साड़ी पहनूं, ।
वो पैंट शर्ट और जैकेट पहनी हुई थी। वह आफिस के ओकेशन में सिल्क साड़ी पहनती थी। वह अपनी शादी के बाद पहली बार वह जॉब पर जा रही थी। शादी के बाद आफिस का पहला दिन था। इसलिए उन्होंने उसे देखकर टोका।
मम्मी जी आपको को तो पहले से ही पता था कि मैं छुट्टी के बाद जॉब पर जाऊंगी , फिर ये टोका-टाकी क्यों! !श्रेया ने सासु मां से पूछा।
तभी मधु जी कहती हैं-" तुम तो कहीं से बहू लग ही न रहीं हों। "
तब वो कहती हैं-" हां मम्मी जी काम के समय में आपकी बहू नहीं हूं। क्योंकि आफिस के समय आफिस के हिसाब से रहना पड़ेगा, मैं जब तक घर में रहूंगी तो कायदे से रहूंगी। "
तब यह सब सुनकर मधु जी परेशान हो उठी। श्रेया से बोली-" श्रेया तुम अभी नयी नवेली हो तो इतना बोलती हो। "
हां मम्मी जी मैं पुराने जमाने वाली बहू नहीं ही हूं। कि अपनी बात कहने में वर्षों लगा दूं,जो कहना हो तो वह सामने से कहती हूं।
क्या कहा•••• नये जमाने की हो, वे बोलीं
हां मम्मी जी, मैं नये जमाने की हूं। मैं पहले की बहुओं की तरह चुप रहकर घुट- घुट कर नहीं सहूंगी। मैं अपने सारे फर्ज निभाऊंगी। और आफिस और घर के बीच तालमेल बना कर रखूंगी।
तब सुधांशु बोला - "बिल्कुल ठीक कहा श्रेया , आफिस और घर के बीच तालमेल तो होना ही चाहिए। "
मम्मी जी लौटकर बात करती हूं मुझे अभी देर हो रही है।
फिर श्रेया ने इतना कह हौसलों की उड़ान भरते हुए आफिस अपनी गाड़ी से निकल गई।
और मधु जी को समझ आया कि वह कुछ गलत नहीं बोल रही है, फिर वे कुछ न बोल पाई।
तभी सुधांशु ने कहा - "मम्मी क्या आप नहीं जानतीं कि यदि रस्सी को जरुरत से ज्यादा खींचेगी तो वह टूट ही जाएगी। इसी तरह श्रेया को उतना ही टोकिए जितना वह सुन सके। वह आज के जमाने की है। आप उसे प्यार से समझाइये वो सब समझेगी। "
इस तरह आफिस से जब वह लौटकर आई तो मधु जी बोलीं -बहू तू काम पर जा, इससे मुझे कोई एतराज़ नहीं है, पर ये समझना कि कोई तुझ पर उंगली न उठा पाए। मैं इसलिए तुझे टोकतीं हूं।
तब श्रेया ने भी बड़ी शालीनता से कहा -"मम्मी जी मैं कोई दूध पीती बच्ची तो नहीं हूं। मैं काम करती हूं। मुझे भी मालूम है कैसे रहना चाहिए। चाहे आप इसे मानो या न मानो। घर में कायदे से आपके हिसाब से चलूंगी। पर आफिस में आफिस के नियम मानूंगी। आप भी ये सोचिए कि मैं काम पर न जाऊं। तो ऐसा होगा नहीं •••क्योंकि शादी के पहले ही तय हो गया था कि मैं अपनी जॉब नहीं छोडूंगी। मेरे काम करने से पैसे तो घर में ही आने है। मैं चाहती हूं कि टिपिकल सास की तरह आप भी न रहे।
इस तरह दोनों की बात सुनकर सुधांशु हंस पड़ा।
और कहने लगा -" मम्मी कहा था कि श्रेया गलत नहीं है। यदि हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा। " फिर इस तरह दोनों सास बहू भी मुस्कुरा दी।
दोस्तों - हम चाहते हैं कि हमारे घर पढ़ी लिखी बहू आए,तो हम क्यों उन पर रोक-टोक लगाते हैं। कपड़े में शालीनता हो, इससे ज्यादा हमें क्या चाहिए। यदि हम अपनी बहू को आगे बढ़ने का हौसला दे। तो वह क्यों पीछे रहे। इसलिए हमें खुले विचारों के साथ आगे बढ़ने में उसका साथ देना चाहिए। ताकि आने वाली कठिन परिस्थितियों में भी वह तैयार रहें। पहले के समय हम आर्थिक रुप से पुरुष पर निर्भर रहते थे। तो पहले बंधन नियम,सब चल जाते थे। पर आज के समय हमें बहू बेटी को आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। ताकि बेटों से भी वह पीछे न रहे।
