असली ख़ुशी स्वतंत्र होने में होती है
असली ख़ुशी स्वतंत्र होने में होती है
"हमारी असली ख़ुशी स्वतंत्र होने में होती है। स्वतंत्र होने का अर्थ है बिना किसी डर के अपना जीवन जीना। स्वतंत्रता हमारे साहस पर निर्भर करती है। जितना ज्यादा साहस, उतनी ज्यादा स्वतंत्रता।साहस के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, ईमानदारी अर्थात अपने प्रति ईमानदार होना। कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। ",अपने ऑफिसमें 75 वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में ध्वजारोहण के बाद करुणा ने इन शब्दों द्वारा स्वतंत्रता के महत्व को बताते हुए अपने २ मिनट के संबोधन को विराम दिया।
अपने स्कूल के दिनों से ही करुणा एक मेधावी छात्रा रही थी। पढ़ाई -लिखाई में आगे रहने वाली करुणा के मम्मी -पापा ने उसे हमेशा ही प्रोत्साहित किया।इस मामले में करुणा के मम्मी -पापा बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं करते थे। लेकिन उसके मम्मी -पापा ने उसे साफ़ -साफ़ कह रखा था कि, "पढ़ाई के अलावा अगर कहीं और ध्यान लगाया तो पढ़ाई छुड़ाकर शादी करवा देंगे।"
यहाँ कहीं और ध्यान लगाने से उनका मतलब किसी लड़के से दोस्ती करना था। बेटे और बेटी में कोई अंतर न करने वाले उसके मम्मी -पापा,उसके भाई को कभी इस तरह की धमकी नहीं देते थे। जो माँ -बाप और रिश्तेदार अपने घर के लड़कों से कहते रहते हैं कि, "बहू कब लाएगा ?" वही लोग लड़कियों के मामले इतने दकियानूसी क्यों हो जाते हैं ? लड़कियों की लड़कों से दोस्ती तक स्वीकार नहीं कर पाते हैं।
खैर दिमाग वाली करुणा ने अपना दिमाग सिर्फ पढ़ाई में लगाया और दूसरी बातें उसके दिमाग में आती तो थी;लेकिन वह तुरंत उन्हें दिमाग से निकाल देती थी। वह अच्छे से जानती थी कि, "वह एक लड़की है। चाहे लोग कितनी ही लड़के और लड़की की समानता की बात कहें, लेकिन वे इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं। कथनी और करनी में फर्क अभी तक बना ही हुआ है। करुणा बैंकिंग एग्जाम की तैयारी करने लगी और बैंक में ऑफिसर बन गयी।
करुणा के मम्मी -पापा ने उसकी शादी के लिए लड़का ढूंढना शुरू किया। उनकी तलाश दर्शित पर जाकर समाप्त हुई। दर्शित अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था, उसके पापा राज्य सरकार में डिप्टी सेक्रेटरी थे और वह स्वयं भी डिप्टी कलेक्टर था। हमारे यहाँ पर तो अक्सर शादियाँ लड़के के बाप के रुतबे को देखकर ही हो जाता है, इस मामले में तो बाप तो रुतबेदार था ही और बेटा भी बड़ा अधिकारी ऊपर से एकलौता। करुणा के मम्मी -पापा को रिश्ता एकदम जँच गया। औपचारिकता के लिए करुणा को लड़के दर्शित से मिलवाया गया।
औपचारिकता इसलिए कहेंगे क्यूँकि करुणा के पास रिश्ते को स्वीकार करने के अलावा कोई और विकल्प उपलब्ध नहीं था जिस तरीके से दर्शित करुणा की नौकरी और उससे मिलने वाले वेतन आदि के बारे में बात कर रहा था, करुणा को दर्शित एक लालची लड़का लगा था। फिर दर्शित के परिवार वालों ने सीधे तौर पर तो नहीं, घुमा-फिराकर दहेज़ की बातभी की थी।
करुणा ने अपनी शंकाओं से अपने मम्मी -पापा को अवगत भी करवाया था। "बेटा, हम कौनसे सड़क पर रह रहे हैं। तेरी शादी अच्छे से करेंगे;तब ही तो तेरे छोटे भाई कल्पेश की शादी अच्छे से होगी। ",करुणा की मम्मी ने कहा।
"अरे कल्पेश की शादी की छोड़ो। तू हमारी एकलौती बेटी है, अगर अच्छे से शादी नहीं करी तो लोग 10 तरीके की बातें करेंगे। ",पापा ने समझाया।
"और नहीं तो, शादी में हुए खर्चे से ही लोग लड़के के कद और पद का अनुमान करते हैं।डिप्टी कलेक्टर दामाद के लिए तो थोड़ा बहुत खर्च करना ही पड़ेगा। वैसे भी अपने कौनसी कमी है ?",मम्मी ने फिर समझाया।
"मम्मी, लालची इंसान का लालच कभी खत्म नहीं होता है। वह बढ़ता ही जाता है। ",करुणा ने कहा।
"चार किताबें पढ़ने से तू कोई ज्यादा समझदार नहीं हो गयी है। दुनियादारी की तुझसे ज्यादा समझ है हमें।दर्शित और उसका परिवार एक प्रतिष्ठित परिवार है। हम तेरे माँ -बाप हैं, दुश्मन थोड़े न हैं। तेरा भला -बुरा अच्छे से समझते हैं। ",मम्मी ऐसा कहकर किचेन में चली गयी थी।
करुणा की राय ने दर्शित के पद के नीचे दबकर दम तोड़ दिया और करुणा की शादी धूमधाम से दर्शित से हो गयी। करुणा दर्शित की दुल्हन बनकर अपने नए घर पर आ गयी। करुणा के बैंक अकाउंट और दूसरे इंवेस्टमेंट्स की सभी जानकारी दर्शित ने ले ली थी। सही भी है, पति -पत्नी के बीच कोई पर्दा थोड़े न होता है। लेकिन दर्शित ने अपनी फाइनेंसियल डिटेल्स पर पर्दा डाले रखा।
दर्शित किसी न किसी बहाने से करुणा का सारा वेतन ले लेता था। करुणा को, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के बावजूद भी, अपनी छोटी -छोटी जरूरतों के लिए दर्शित के सामने हाथ पसारने पड़ते थे।दर्शित और उसका पूरा परिवार हमेशा करुणा के मम्मी -पापा से किसी न किसी बहाने से रूपये -पैसे, उपहार आदि लेने की फिराक में ही रहता था। शादी के शुरू के महीनों में हर त्यौहार आदि के अवसर पर करुणा के पीहर से महँगे उपहार, फल, मिठाइयाँ आदि आते ही रहते थे। धीरे -धीरे एक वर्ष के सारे त्यौहार पूरे हो गए, तब उपहार आदि घट गए।
तब दर्शित और उसके घरवालों ने अपने असली रंग दिखाने शुरु कर दिए। उन्होंने करुणा पर अपने मायके से रूपये लाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। करुणा के विरोध करने पर दर्शित करुणा पर हाथ उठाने से भी बाज नहीं आया। करुणा ने अपने मम्मी -पापा को बताया;लेकिन उन्होंने उसे समाज का वास्ता देकर इस रिश्ते को निभाने के लिए मजबूर किया। करुणा की माँ ने उसे बच्चा करने का सुझाव देते हुए कहा कि, "बेटा, शादी को एक साल होने को आया। बच्चा कर ले, बच्चे के आने से सब ठीक हो जाएगा। "
करुणा ने कहा भी कि, "मम्मी, बच्चे के आने से इन लोगों का लालच दूर नहीं होगा। "
करुणा कभी भी उतना साहस नहीं जुटा पायी थी कि स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सके, तो आज भी वही हुआ;वह फिर से अपने रिश्ते को बचाने में जुट गयी थी। वह आत्मनिर्भर होकर भी परतंत्र बनकर रह गयी थी। इसी बीच करुणा एक बच्चे की माँ भी बन गयी;लेकिन दर्शित और उसके घरवालों के लिए वह एक पैसे छापने वाली मशीन से ज्यादा कुछ नहीं थी। अब करुणा को अपने बच्चे की छोटी -छोटी जरूरतों के लिए भी जूझना पड़ रहा था।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर वह अपने बच्चे के लिए भगत सिंह का फैंसी ड्रेस खरीदना चाहती थी।उसने जब दर्शित से पैसे माँगे तो दर्शित ने यह कहते हुए झाड़ दिया कि, "फैंसी ड्रेस की क्या जरूरत है ?पैसे बर्बाद करने के लिए नहीं है। फालतू के चोंचलों में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है। "
"मम्मा, मुझे फैंसी ड्रेस नहीं चाहिए। आप पापा से कुछ मत माँगा करो। माँगने वाले को भिखारी समझते हैं।",करुणा के बच्चे की इस बात ने करुणा को झगझोड़ दिया था।
करुणा ने तय कर लिया था कि वह अब स्वतंत्र होकर जियेगी।स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कहे अपने शब्दों के अनुसार उसने जीने का फैसला कर लिया था।
"सर, मैं पदोन्नति को स्वीकार कर रही हूँ। ट्रांसफर से मुझे कोई समस्या नहीं है। वाकई में, मैं कल ही ज्वाइन करने के लिए तैयार हूँ। ",करुणा ने महीनों से विचाराधीन पदोन्नति के ऑफर को स्वीकार कर लिया था।
उसने ऑफिस से लौटते ही दर्शित और उसके मम्मी-पापा को अपना फैसला सुना दिया था कि, "वह अब इस घर में नहीं रहेगी। वह ट्रांसफर लेकर दूसरे शहर में जा रही है। वह स्वतंत्र होकर जीना चाहती है। अब से उसक पैसों पर उसका अधिकार होगा अगर आप लोगों ने मुझे परेशान करने की कोशिश की तो पुलिस को पहले से ही सूचना देकर आयी हूँ। अभी २ मिनट लगेगा और पुलिस इस घर तक पहुँच जायेगी। मुझसे ज्यादा तो घेरलू हिंसा अधिनियम की जानकारी आपको होगी, दर्शित। "
"आपकी भलाई इसी में है कि मेरे रास्ते में न आये। आपके सीनियर्स तक आपके कारनामे पहुँचाना मुझे अच्छा नहीं लगेगा। ",करुणा ने किंकर्त्तव्यविमूढ़ खड़े दर्शित को देखते हुए कहा।
नयी राहों की तरफ बढ़ती करुणा और उसके बेटे को, दर्शित और उसके मम्मी -पापा बस जाता हुए देखते रह गए थे।
