अंक…२३"डार्लिंग कब मिलोगी"
अंक…२३"डार्लिंग कब मिलोगी"
-- हिमांशु …
ज़िंदगी में बहुत सी बातें बहुत साधारण होते हुए भी किसी के साथ जुड़ जाने के बाद असाधारण हो जाती है।
" जैसे कि यह मेरा ,
जज़्बाती हो कर नैना को अपने नाम की अंगूठी पहनाने का निर्णय ले लेना "
नैना मुझसे बहुत छोटी है।
बहुत… मतलब बहुत …पर मुझे उसका साथ शुरू से ही प्रिय लगा है। वह बेहद मासूम थी।
किशोरावस्था में उसने मेरी जिंदगी में प्यार के रंग भरे थे,
जबकि मैं उसे परेशान हालत में छोड़ कर रातों -रात भाग आया था।
मैं अक्सर सोचता …, दूसरे दिन स्कूल में जब उसने मुझे नहीं देखा होगा! तब उसकी क्या हालत हुई होगी ?
खैर …
न जाने क्यों मैं शुरु से ही ऐसा रहा हूं ?
मेरी मां और पिताजी का सम्बंध विच्छेद चाहे जिस भी परिस्थितियों में हुआ।
एक अजीब सी बात जो मुझे लगातार खलती रही है।
वो ये कि…
मेरे नानाजी जब तक जीवित रहे उनकी पूर्ण सहानुभूति मेरे पिताजी के साथ थी।
अपने मृत्यु के समय उन्होंने मुझसे कहा था,
" तुम्हारी पिता की कुंठा का कारण चाहे जो भी रहा हो ?
अन्ततः वो तुम्हारे पिता हैं और उनकी देखभाल करना तुम्हारा धर्म बनता है"
उनके इस कथन ने मेरे विकसित होते व्यक्तित्व की चूल हिला कर रख दी थी।
विभिन्न अन्तर्द्वन्द को लेकर चलना मुझ पर भारी पड़ने लगा।
जो बाद मेरी मानसिक परेशानियों का कारण बना रहा है।
मैं जब कभी कहीं भी बैठा रहता।
कानों में बचपन की सुनी हुई आवाज गूंजने लगती। कभी अपने पुश्तैनी घर जिसमें सब क्षत- विक्षत सा रहता में पिता की छवि, जिसमें वे सदा किसी के इंतजार की मुद्रा में दिखाई देते, कभी नाना के निर्देश याद आ जाते।
और फिर सब कुछ अंधेरे के विशाल समुद्र में डूब जाता।
आप समझ सकते हैं। एक दस- बारह साल के भावुक और संवेदनशील लड़के की व्यथा जिसे सब कुछ अधूरा ही मिला।
माॅं का प्यार हो चाहे पिता का वात्सल्य दोनों एक दूसरे के बिन अधूरे … थे।
और वह अधूरा पन जिससे लाख पीछा छुड़ाना चाहने पर भी छुड़ा नहीं पा रहा था।
दिल में सदा से हमेशा संपूर्णता की चाहत पलती रहती
बहरहाल जो भी हो,
उस दिन जब नैना हमारे घर आई तब उस सुनहरे एकांत में मैं रोमांचित हो गया था।
उसके साथ उन बेहद करीबी पलों ने मुझे जैसे दीवाना बना कर रख दिया।
न जाने कितनी देर यूं ही हाथों में हाथ डाले हम बैठे रहे।
लगा, जैसे कभी भी इस ढ़लती - रंगीन शाम के बाद रात और फिर सबेरा नहीं हो।
तभी नैना ने मुझे कई नाटकों में शोभित के साथ काम करने की बात बता कर हैरान कर दिया।
अंदर ही अंदर मैं ईर्ष्या …से दग्ध हो गया था।
लेकिन यह नैना की मजबूरी थी।
मेरे पाॅंव भी ठीक से जमे नहीं हैं। इसलिए मन मसोस कर रह गया।
हवा में ठंडक बढ़ गई थी। जो देह में हल्की सी सिहरन पैदा कर रही थी।
नैना का साथ हल्की ऊष्मा प्रदान कर रहा था। उसकी आंखों में भी रंगारंग तरलता थी।
जो मेरी आहत भावनाओं को शीतलता प्रदान कर रही थी।
जब हम दोनों घर पहुॅंचे , वहां माया बाहर से लौट कर खाना लगवा रही थी।
हम भी कुर्सी पर जम गये । घर का पुराना नौकर चपातियां बना कर ले रहा था।
अचानक माया,
" हिमांशु, तुम अपने बिजनेस पार्टनर से क्यों नही मिले ?"
वह मुझे मेरे साथी से फोन पर बातचित के दौरान तय हुई मुलाकात के पूरे नहीं करने से रिग्रेट करते हुए देख दुखी थी।
मैं अपने पार्टनर से क्षमा मांगते हुए ,
" माफ कीजिएगा आज नहीं आ पाऊॅंगा , परिवार के साथ बैठा हूं… हाॅं- हाॅं कल शाम में मिलूंगा "
यह कह कर मैंने फोन काट दिया।
और वापस आ कर कुर्सी पर बैठ गया।
मैं सब कुछ भूल करअपने और नैना के बीच की खुशी उसके साथ बाॅंटना चाहता था।
पर वो तो किसी और ही मूड में नजर आ रही थीं।
" कल चला जाऊॅंगा तुम फिजूल में परेशान न हो , वैसे भी उसकी बेकार की बातें सुनकर मेरा दिमाग भन्ना जाता है "
इस पर माया ने मुझे घूर कर देखा।
" देखो नैना , माया किस तरह गुस्से में घूर रही है " मैं ने बनावटी गुस्से में उसे देखा।
नैना मुस्कान दबाती हुई नजरें नीची कर के पानी पीती रही।
" हिमांशु ,
जिंदल ने मुझे फोन करके बताया, उसने तुमसे छत्तीसगढ़ में एजेंसी दिलाने की बात की थी। पर तुमने उसे कोई जवाब नहीं दिया "
माया ने फिर हिमांशु को टोका।
" माया मुझे घर छोड़कर और कहीं जाने के लिए मत कहो,
मैं अपना सर्वश्रेष्ठ यहीं नैना के साथ दे सकता हूं। वैसे भी अब मां नहीं रहीं तो तुम्हें खुश रखने और अकेले नहीं रहने देने की जिम्मेदारी भी हमारी है "
" मुझे शांति और भरा-पुरा घर चाहिए " हिमांशु संजीदा हो गया।
" वैसे भी भगवान् का दिया हुआ बहुत है।
" देखा तुमने नैना,
" जिंदल के साथ इसका आज दस बजे का एप्वाइंटमेंट था। वहां जाना था इसे ये गया ही नहीं "
नैना आशंका से भर गई।
माया ने न चाहते हुए भी अनजाने में हिमांशु के जिंदल के पास न जाने का ठीकरा नैना के सिर पर फोड़ दिया था।
" आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया था दीदी ? नैना ग्लानि भाव से बोली।
" हिमांशु ने तुम्हें कुछ … नहीं कहा ? "
उसकी नजर नैना की उंगलियों पर जा टिकी ,
" यह तो माॅं की अंगूठी ? "
पलक झपकते वह सारी बात समझ गई। उसके माथे पर अधिकार से चुंबनों की बौछार कर बोली,
" तुम इसकी प्रेमिका हो, भावी पत्नी हो, उसे तैयार करना तुम्हारा अधिकार भी है और कर्तव्य भी है "
नैना के कपोल शर्म से लाल हो गए।
" दीदी ऐसा भी होता है? विवाह के पहले अधिकार वो आपकी नहीं तो मेरी सुनेगा ? "
मैं सोच रहा था … ,
" आदमी को विश्वास जरूर डिगा कर रखना चाहिए वरना जिंदगी में खालीपन भर जाता है"
परिणाम स्वरूप…
अभी- अभी शाम कितनी मदभरी थी और अब … कितनी चुभन भरी ।
आगे …
