STORYMIRROR

Seema Verma

Abstract Drama

4  

Seema Verma

Abstract Drama

अंक २५ " डार्लिंग कब मिलोगी"

अंक २५ " डार्लिंग कब मिलोगी"

5 mins
38



" जीवन- चक्र चलता रहता है।" मां के गंगालाभ पर दुःखी पिता बोले थे,

" दुःख के कांटे उगते हैं। फिर उल्लास के अंकुर फूटने लगते हैं। एक ज्योति का बुझना और दूसरी का उभरना यही जीवन का नियम है "

" लेकिन तुम कितनी चुप- चुप हो गई हो विवाह कब करोगी ?

 हल्की मुस्कान के साथ ,

" मैं तो लंबी दौड़ का घोड़ा हूं बाबूजी"

पिता कुछ कहने वाले ‌‌‌‌थे पर फिर बड़े शहर में रहने वाली आधुनिका पुत्री के सामने चुप हो गए।

घर पर करीब हफ्ते भर बिताने के बाद नैना वापस दिल्ली लौटी थी।

" नमस्ते नैना! नमस्ते मिसेज अरोड़ा!" 

" क्षमा करें ! आपको इतनी सुबह कष्ट दिया "

क्षमा कैसी ? आओ-आओ कहती हुई गेट के ताले खोल चुकी हैं।

" धन्य भाग्य आज सुबह - सुबह तुम्हारे दर्शन हुए, घर पर सब कैसे हैं ? "

"ठीक है, अगर जरूरत पड़ी तो अगले कुछ दिनों बाद अनुराधा को यहां बुला लूंगी "

" नैना ,  अंकल पूछ रहे थे टी वी पर तुम्हारा ड्रामा अब आएगा ? "

" अगले महीने " 

सीढ़ी चढ़ते समय दिल की धड़कन तेज हो ही जाती है सो उसकी भी हुई।

वो चढ़ भी तो फटाफट गई थी । जैसे उपर दरवाजा खुलते ही कोई खजाना मिलने को है।

धीरे- धीरे उसकी चाल सुस्त हो गई।

जब वह छत पर पहुंची तो ठंडी हवा ने पसीजे हुए बदन पर फुरफुरी सी ला दी।

" नैना ! तुम ठीक तो हो ?"

नैना के होश पलक झपकने भर को गुम रहे

वह अपनी उस बरसाती के एकांत में जिंदगी में घटती जा रही चमत्कार बोध से आलोड़ित होती रही।  

 अपना ही स्वर सुनाई दे रहा है ,

" इतने दिनों तक कहां रही नैना ? 

 शोभित इंतजार में होगा उसके साथ नाटक की कमिटमेंट की बरबस याद आई और सपना ने भी तो फिर दुबारा आने को कहा था "

नीचे से मिसेज अरोड़ा ने केटली में चाय बना कर भिजवा दिया है।

जिसे वह बिस्तर पर ही उलटी पड़ी हुई कप में ढ़ाल रही है।


आज ऑफिस में एक डेलीगेशन को बाहर से आना है इसलिए नैना को समय से पहले ही निकलना होगा।

शाम को डेलीगेशन के लिए एक छोटी पार्टी अरेंज थी उसकी विशेष तैयारी करनी है। सात बजे शाम से शुरू हुई पार्टी देर रात तक चली।

अगले दिन से नाटक का रिहर्सल शुरू होने को है।  ऑफिस के बाद नैना रविन्द्र भवन के लिए ऑटो पकड़ लिया करती है। जहां शोभित से रोज ही मुलाकात होती है। 

एक दिन शाम में जब दोनों कैंटीन में खाना खा रहे थे उस दरम्यान … शोभित ,

" जानती हो! चारों ओर तुम्हारे अभिनय की भूरि-भूरि प्रशंसा हो रही है। विशेष कर तुम्हारी भावप्रवण आखें से निकले भाव पूरे ग्रुप को पसंद आ रही है "

 बिरयानी खाती नैना ठिठक गयी , 

" मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा "

" क्यों "

" क्यूंकि उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा "

" बेशक ! उन&n

bsp;सबों ने तुमसे कभी लफ़्ज़ों में नहीं कहा "

" शोभित ! मुझे ऐक्ट्रेस नहीं बनना है। मेरी मंजिल कुछ और है।

ये तो मुझे खुद के रहने वास्ते एक स्थाई निवास की आवश्यकता और परिवार को यहां शिफ्ट कराने की मजबूरी है। वरना मैं तुम्हारे प्रस्ताव को कभी नहीं स्वीकार करती "

" मालूम है तुम्हें मेरे पिता अभी तक इस बात से अनभिज्ञ हैं ? "

उसने घूंट- घूंट चाय पीते हुए कहा।

" तुम इस बार घर से आई हो , व्यग्र और परेशान दिखती हो "

" कुछ विशेष नहीं शोभित! " नैना ने चाय के कप पर नजर टिकाए हुए कहा।

" मुझे मित्र मानती हो ना ? तो मुझसे कह कर अपना हाथ हल्का कर लो "

पास आ कर शोभित ने नैना के हाथ थाम लिए,

" बोलो तुम्हारे होंठों पर मुस्कान लाने के लिए मैं क्या कर सकता हूं ?"

" मुस्कान मेरे वश के बाहर हो गई है"

" ऐसा क्या हुआ नैना? "

"कर्तव्य और भावना का अंतर्द्वंद्व "

नैना उसे सीधे-सीधे देखते हुए बोली।

" परिवार को देखती हूं तो तो मनोरम कामना का अंत होता है। "

"और मन की ऊष्मा का ध्यान करती हूं तो कर्तव्य का विरोध होता है "

" मैं समझा नहीं कुछ , अभिनय के साथ कर्तव्य का विरोध कैसे होता है ? "

नैना को उसका स्पर्श पसंद नहीं आया। एक सिहरन सी हो आई।

" मैं जानता हूं ,

" क्या जानते हो तुम ? " 

" तुम्हारे मन की दुविधा मैं देखना चाहता हूं। तुम्हारे प्रेम में ज्यादा बल है या मेरी भावना में "

स्तब्ध हो कर नैना उससे अलग हट कर खड़ी हो गई। 

आज उसे घर पहुंचने की जल्दी थी। उसके पास सपना आने वाली है।

नैना जब अपने बरसाती के सामने पहुंची, तो रात के लगभग नौ बजने को थे। खिड़की के पास खड़ी सपना ने उसे गली के मोड़ में मुड़ते ही देख लिया था। पास आने पर हाथ हिलाया।

जब तक नैना गेट खोल कर जीने तक पहुंची,

सपना ने दरवाजा खोल दिया था।

" आ गई! रिहर्सल में तो खासी थकान हो जाती होगी "

नैना ने मुस्कुराकर नहीं में सिर हिलाया।

 " तुम कब आई ? " 

" आज सुबह ही देवेन्द्र टूर पर गए हैं। तुमसे मिलने का मन हुआ बस चली आई "

सपना ने थकी हुई नैना की पीठ सहलाते हुए कहा।

" बहुत अच्छा किया सपना !

तुम्हें देखती हूं तो जिंदगी में आस्था बढ़ जाती है। "

तभी ' मुन्नी' जिसे नैना ने पिछले महीने ही हेल्पर के तौर पर रखा है।

पानी के गिलास लिए हुई आई ,

" सपना दीदी पिछले दो घंटे से बैठी हैं "

नैना ने इधर - उधर नजर घुमाई बेटू कहीं नजर नहीं आया तो पूछा 

" बेटू नहीं आया ? "

"नीचे गार्डेन में खेल रहा है "

नैना टेबल पर अपने अपना पर्स रख कर कुर्सी खींच सपना के सामने बैठ गई।

मुन्नी को चाय बनाने के लिए कह कर खुद कपड़े बदल कर फ्रेश होने चली गई।


आगे…


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract