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Seema Verma

Abstract Drama

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Seema Verma

Abstract Drama

अंक १९ डार्लिंग कब मिलोगी

अंक १९ डार्लिंग कब मिलोगी

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नैना ने देखा माया दी का फोन है।

" नैना! मां गुजर गईं, हिमांशु बिल्कुल चुप बैठा है "

नैना की पहली प्रतिक्रिया यही हुई,

" हिमांशु का क्या होगा? उसकी समर्थ मां उसके लिए कवच और आधार थीं "

फिर उसने कपड़े बदले, सेल्फ पर से पर्स उठाया और बाहर निकल पड़ी ।

मिसेज अरोड़ा ने उसके लिए एक टैक्सी मंगा कर उसका नम्बर नोट कर लिया।

नैना उस पर बैठ कर सिर पीछे की सीट पर टिका दिया।

हिमांशु ने उसे अपने बचपन की बातें कहता हुए एक बार कहा था,

" मैंने बचपन से ही अपनी मां को परिस्थितियों से समझौता करते देखा है। जब पिता ने एक से बढ़कर एक गलीज लांक्षण लगा कर मां को तलाक नामा भेजा था।

तब सालों तक हर चुनौती का सामना करने वाली मेरी मां के भी हाथ - पैर ठंडे पड़ गये थे।

शायद उन्हें पहली बार लगा था ,

" यह किसी पाप की सजा उन्हें मिल रही है "

वे हर चोट सह गई थीं पर चरित्र पर इतना बड़ा लांक्षण कैसे सहेगी ?

कैसे सुनेगी कोर्ट में इतने गंदे आरोप ?

उनकी चाल लड़खड़ा गई थी।

 " मैं तब किशोर हो चला था "

 मन ही मन सोचता,

" नहीं - नहीं मां पर ऐसे आरोप वह नहीं लगने देगा " उसका चेहरा लाल पड़ गया था। 

तलाक के लिए भेजे गए कागज पलटते हुए मेरी आंखों में खून उतर आया था।

" मैं जान ले लूंगा उसकी। मेरी मां को रखैल बोलते हैं, चोर कहते हैं, मैं खून कर दूंगा उनका "

वे जिंदा रहेंगे तो हम हमेशा दुखी और कष्ट में रहेंगे। बहन की शादी नहीं होगी, हम घुट- घुट कर मर जाएंगे "

कह कर क्रोध के आवेग में घर से बाहर निकलने को तैयार था तब मां ने ही मुझे संभालते हुए मेरे आवेग थमने तक कमरे में बंद रखा था,

" मैं मां हूं बेटे, मुझमें सब सहने की हिम्मत है "

 कहती हुई बाद के दिनों में ब्रह्मास्त्र की तरह ढ़ाल बन कर उन दो भाई बहनों की परवरिश और आगे बढ़ने में मदद की थी। 

करीब पौने घंटे बाद टैक्सी हिमांशु के घर के सामने लगी थी। रात के करीब बारह बज रहे थे। लाजपत नगर का ७६ नम्बर का वह घर।

 आस- पड़ोस वाले दुख प्रकट करके चले गए थे। दो - चार नजदीकी पारिवारिक रिश्तेदार को छोड़ कर वहां मनहूस सा सन्नाटा पसरा हुआ है। 

ड्राइंग रूम के फर्नीचर हटा कर फर्श पर एक ओर चादर और फूलों से ढंका हुआ मम्मी का शव रखा था।

हिमांशु निश्च्छल और भावहीन बैठा था। आंखें सूखी।

माया नैना को देख हिलक कर रो पड़ी। उनसे गले लगते हुए नैना के भी आंसू निकल पड़े थे।

हिमांशु ने एक नजर उसकी ओर देख कर फिर मां की निश्च्छल पड़े देह की ओर देखने लगा ।

 डरे हुए भाव से सहमे उसके चेहरे को देख कर नैना को लगा मानों,

"कोई अबोध बच्चा मेले में अकेला छूट गया हो"

सामने निश्चछल पड़ी हुई मां का चेहरा शांत है। उनके चेहरे पर मलिनता का कोई भाव नहीं।

आखिर मलिनता के भाव आते ही क्यों ?

शहरी बैकग्राउंड की पली- बढ़ी मां ने अपने से कम शिक्षित ग्रामीण परिवेश वाले पति के साथ,

 उनकी मर्जी से रहते हुए फिर उनकी ही मर्जी से अलग हो कर अपनी शर्तों में जीवन यापन करते हुए बच्चों को बड़ा किया है।

माया दी उसके कंधे पर सिर रख कर सिसक उठी,

" नैना हिमांशु को संभालना "

नैना ने मुड़कर उसकी तरफ देखा । वह सिगरेट ढ़ीली करके उसमें से तंबाकू निकाल रहा है।

माया का सिर कंधे से हटा कर वह हिमांशु के पास चली आई,

" हिमांशु, इस समय यह अच्छा लगेगा ? इस समय तो कम से कम "

हिमांशु ठिठका अपनी खोई हुई आंखें उठा कर उसे देखा, आंखों में लाल डोरे थे। 

" तुम अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हो और मां के सपने को भी स्वाहा कर रहे हो "

" रहने दो, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो" 

 हिमांशु ने गहरी सांस छोड़ी।

यह रात नैना को बहुत लंबी लग रही है।

मां की अनुपस्थिति ने हिमांशु के आत्मविश्वास को हिला कर रख दिया है। नैना ने उसकी बात का प्रतिवाद नहीं किया।

उसे हिमांशु के साथ बीते अपने वे अनेकानेक क्षण कसके,जब वह उसके संसर्ग में क्षत- विक्षत हुई थी। तब हिमांशु ने अपनी जीवटता का परिचय देते हुए उसकी रक्षा की थी।

पर आज उसमें वो पहली जैसी जीवटता नहीं है।

उसने हिमांशु के कंधे पर हाथ रखा इस स्पर्श ने हिमांशु के लिए मरहम का काम किया।

वह सचेत हो कर बैठ गया है।

नैना सुबह ही घर से आई है।

उसने सोचा था वह शोभित से मिलकर विनोद भाई के लिए कुछ काम की बात करेगी जो फिलहाल संभव होती नहीं दीख रही है।

यहां बैठे हुए उसे अपनी भीतरी दुनिया बहुत दूर और अंधेरे में लिपटी हुई लगी। वह कमरे से बाहर बरामदे में निकल आई।

 उसके पीछे - पीछे हिमांशु भी चला आया।

" क्या हुआ था मम्मी को " नैना ने संभलते हुए हिमांशु से पूछा तो वह कुछ बोल नहीं पाया । उसका चेहरा पीड़ा से विकृत हो गया।

कुछ नहीं, वो घर की प्रोपर्टी नहीं बेचना चाहती थीं, कहती थीं,  

" वो सब प्रोपर्टी तुम्हारे पिता की मैं उसमें से कुछ भी नहीं लेना चाहती "

इसके विपरीत मैं उसे सेल कर के उन पैसों से एक स्कूल खोलना चाहता था। बस इसी बात का झंझट था,

लेकिन इधर एक दिन अचानक वे तैयार हो गई थीं,

" आखिर सब कुछ तुम लोगों का ही तो है । मैं कब तक जीवित रहूंगी और सांप के समान उसपर कुंडली मार कर बैठी रहूंगी ? "

" अचानक से वे इसके लिए तैयार किस तरह हो गई, मैं और माया दी हैरान" 

तभी उन्हें ये मैसिव हार्ट अटैक आ गया था,

कहते हुए उसकी आवाज भरभरा गई।

आंटी ने हिमांशु से उसकी नजदीकियां भांपते हुए एक दिन कहा था,

" नैना तुमसे दुबारा मुलाकात के बाद हिमांशु संयत दिखता है, क्यों ना तुम दोनों एक बंधन में बंध जाओ " 

नैना के कान सनसना गये थे। वो संकोच वश कुछ नहीं बोल पाई लेकिन उसके दिल की गवाही  , 

" हिमांशु के साथ बंधने का निर्णय कहीं जल्दबाजी में लिया गया निर्णय ना साबित हो"

फिर मन ही मन,

" अभी तो मुझे परिवार की जिम्मेदारी निभानी है, तब तक शायद हिमांशु भी ... "  

इस परिणाम तक पहुंचने के लिए उनके विचार एवं लाइफ- स्टाइल और ताने- बाने और अधिक साफ और सुलझे हुए होने चाहिए।

अब उसे लग रहा है,

" आंटी की सोच, कहीं उनके साथ ही तो दफ़न नहीं हो गई ? "

" संभालों खुद को हिमांशु, ढ़ेर सारी जिम्मेदारी तुम्हारे उपर है "

हिमांशु और माया दी को उबरने में कुछ समय लग गया था।

वहां से ही औफिस करती हुई नैना को घर वापस लौटने की फुर्सत तीन दिनों बाद मिली।

सपना बीच- बीच में फोन करके उसके हाल समाचार ले लिया करती है।

आगे ...


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