Seema Verma

Others

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" डार्लिंग कब मिलोगी"अंक …१६

" डार्लिंग कब मिलोगी"अंक …१६

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 माया! हिमांशु की दीदी हैं। वे नैना से मिलना चाहती थीं। इसलिए हिमांशु के साथ आ गई थीं।विवाहोपरांत सपना देवेन्द्र के साथ उसके फ्लैट पर चली गई थी। चूंकि विवाह समारोह अत्यंत सादा था अतः समेटने को विशेष कुछ नहीं था।

नैना सपना के विदा हो जाने के बाद बहुत खालीपन महसूस कर रही थी। उसका मन वापस घर जाने का नहीं है।

काफी देर तक वो जया , माया और शुभ्रा सब एक साथ बातें करते हुए मन बहलाने की कोशिश करते रहे थे।

लेकिन फिर अगले दिन जया और शुभ्रा का स्कूल और खुद नैना के औफिस खुले रहने की वजह से उन्हें उठना पड़ा तब माया ,

" नैना मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर चलूं ? "

" दीदी! " ये भी पूछने की बात है ? " नैना बहुत खुश हुई। हालांकि उस पर दिन भर की थकान हावी हो रही थी।

घर पहुंच कर सबसे पहले वो बाथरूम में जा कर शावर के नीचे खड़ी हो गयी।

करीब दस मिनट तक यूंही खड़ी रही। ठंडे पानी के धार से उसकी थकान कुछ हल्की हुई।

माया नैना के बिस्तर पर ही आराम कर रही है। बाथरूम से निकल 

माया के लाख मना करने पर भी नैना किचन में काॅफी बनाने चली गई।

थोड़ी ही देर में नाश्ते से सजी ट्रे और भरे हुए मग में काॅफी लेकर वापस आ गई।

" काॅफी अच्छी बनाती हो। " माया ने लंबी घूंट लेते हुए।

नैना सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई। वह थोड़ी आशंकित हो गई है। दीदी अकेली आई हैं।

" नैना ! तुम सोचोगी मैं तुमसे इतनी बेतकक्लुफ कैसे जबकि हम इससे पहले मिले भी नहीं हैं ?

ऐसा नहीं है, हिमांशु के जरिए मैं तुम्हें तुम्हारे स्कूल के दिनों से जानती हूं या यों कह लो तुम्हारा इंतज़ार मुझे उन दिनों से ही था।

" दीदी" नैना सकुचा गई।

" हिमांशु के मन में क्या है यह मैं जानती हूं "माया ने उसे अपने बांहों में बांध लिया और फुसफुसाती हुई ,

" मुझे विश्वास है , हम एक दूसरे की जिंदगी बांटेंगे। "

लेकिन पहले इत्मीनान से तुम्हें हिमांशु और मेरी अर्थात हमारे बचपन की कहानी सुननी चाहिए।

फिर कुछ निर्णय लेने को तुम स्वतंत्र हो "

नैना की नजरों के सामने हठात ही बचपने में देखी गई हिमांशु के दरवाजे पर मिली उन कड़क आंटी जी का चेहरा आ गया।

उसकी आंखों में सवाल तैर गये।

 " हां ! वो हमारी मां हैं। जिनका अलगाव हमारे बचपने में ही पिताजी से हो गया था। बात कुछ नहीं दोनों के अहं के टकराव की थी। जिसे हिमांशु का बालमन ही तो था , चाहता तो सब कुछ भुला देता पर भुला नहीं पाया 

हिमांशु तब बहुत छोटा था। 

हमारी मां पढ़ी-लिखी जमाने से आगे की सोच रखने वाली महिला जब कि पिता ग्रामीण परिवेश से।

जिन्हें पत्नी की आमदनी का हिस्सेदार बनने से तो कोई परहेज नहीं था।

परहेज था तो उसके स्वनिर्मित स्वतंत्र अस्तित्व से।

मां के माथे पर हर वक्त चिंता की लकीरें रहती। बहुत छोटी सी उम्र में ही हिमांशु छिप- छिपा कर बाबा के हुक्के से गुड़गुड़ी के कश लगा लिया करता। मां इस सबसे चिड़चिड़े स्वभाव की हो गई थीं।

छोटी सी खाई कब रिश्तों में बड़ी दरार डाल जाती है।

कोई नहीं जानता।

हिमांशु ने बचपन से मां - बाबा को एक दूसरे के मुंह पर दरवाजा बंद करते देखा है।

सो जिंदगी में तालमेल और समझौते से उठकर सोचने की हिम्मत उसमें जरा कम है।

वह थोड़ा भावुक है। 

और शायद तुम जानती होगी ,

"भावना के क्षेत्र में बहुत कुछ अजीब और अनपेक्षित होता है "

जिसे झेलने को तैयार हो ?

हम स्त्रियां भावुक तो होती हैं। पर पुरुष भावुक हो तो झेल नहीं पाती हैं। हम अक्सर स्वाभाव से ही दास्य भाव स्वीकार करने की आदी रहती हैं।

नैना थोड़ी आत्मलीन रही , जैसे खुद को खंगाल रही हो।

वह संकोच के कारण माया से तुरंत कुछ कह नहीं सकी। कहीं वे यह न सोच लें खामखा इतरा रही है।

फिलहाल इस वक्त उसे ,

" खुद की जिंदगी के टूट चुके तारों से निकलने वाली बेढ़ंगे सुरों से परेशान किसी पुरुष को समझ पाने की गुंजाइश हिमांशु के रूप में 

दीख रही थी। "

जिसे गंवाने को नैना किसी हाल में तैयार नहीं है।

हिमांशु उसकी कच्ची उम्र का पहला और अंतिम प्रेम है। या यूं कहें वह नैना के लिए सदैव से ' आकाश तारा ' रहा है।

प्रिय पाठकों!

कभी- कभी ऐसा होता है कि आप किसी से मिलते हैं, और अचानक ऐसा लगता है कि सामने बैठा बंदा आपका राजदार हो सकता है ‌,

जिसके समक्ष आप अपने मन की किताब बेखौफ खोल सकते हो।

ठीक यही हालत अभी नैना के सामने माया की है।  

" कुछ कहना चाहती हो नैना ? " नैना कातर हो रही है।

" बहुत कुछ, या कहिए सब कुछ ,

" माया दी ,

बाहर से शांत और सुखी दिखने वाले हिमांशु भी अपनी जिंदगी में कितने तूफान समेटे हुए हैं ना ?

आवश्यकता है उस दायरे को तोड़ कर सब कुछ बह जाने देनें की "

-- माया

" जानती हो बाद के दिनों में वह इन्हीं ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चल कर बड़ा हुआ है, जिससे उसके पांव लहुलुहान हैं। 

उसे मिली अथाह - अकूत पैतृक सम्पत्ति की वजह से उसने अब तक कितनी हीजगहों पर नौकरी छोड़ी और फिर नयी- नयी पकड़ता रहा है।

अक्सर अवसाद में घिर जाया करता है। और तद्नुरूप बुझा- बुझा व्यवहार और उससे बचने के लिए अब तो दवाइयों का सेवन भी करने लगा है। 

मैंने नोटिस किया है। आजकल उसकी मित्रता कुछ ऐसे ही साथियों से हुई है।

 नैना सुन कर अधीर हो रही है। उसकी आंखों से आंसू बह निकलने को तत्पर हैं।

किशोरावस्था से ही अपने आराध्य के तेवरों की जो मधुर छवि उसके हृदय में बसी है। 

उसका ऐसा अवमूल्यन ?

हिमांशु के लिए एक अंजानी सी आशंका उसे अंदर तक कंपा गई।

" नैना मेरा माथा तो तभी ठनका था जब इसने आई . ए . एस की परीक्षा कंपीट करके भी सर्विस ज्वाइन नहीं की थी ,

" मेरा मानना था,

 इंसान ठोकरें खा कर और मजबूत होता है। पर इसका ईगो किंगसाइज है। जो शायद तुम्हारे साथ और संसर्ग में कम हो जाए "  

बातचीत में कब शाम ढ़ल कर रात में बदल गई थी दोनों को पता ही नहीं चला।

हिमांशु आया था माया को लेने। वो उसके साथ फिर मिलने का वाएदा ले कर माया को ले कर चला गया था।

अपने शहर से दूर दिल्ली में वे उन दोनों की मित्रता के प्रारंभिक दौर थे। फिर वे अक्सर मिलने लगे थे।

एक दिन शाम में हिमांशु ने बेधक दृष्टि से उसे देखते हुए पूछा था ,

" माया दी तुमसे मिली थीं, क्या कह रही थीं वो ? "

" कुछ नहीं! क्यों उनका मुझसे मिलना तुम्हें इतना नागवार गुजर रहा है ? "

" तुम नाराज़ हो गई मुझसे " 

नैना सोच रही है ,

" मैं तुमसे नाराज़ हो नहीं सकती हिमांशु , लेकिन खुश भी किस वजह से होऊं ?

शायद इन दोनों के बीच या परे हूं ? मैं उलझ सी गई हूं "

एक दिन पिक्चर हौल की सीढ़ियां उतरते हुए,

" भूख लग रही है। चलो मैकडोनाल्ड चलते हैं "

हिमांशु ने कहा था।

" घर चलो ना ! " नैना ने अनुरोध किया।

" मैं जल्दी से आलू परांठे बना लूंगी तुम्हें पसंद हैं माया दी ने कहा है "

नैना को उम्मीद नहीं थी , पर हिमांशु तैयार हो गया।


आगे ...


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