"डार्लिंग कब मिलोगी" अंक …१७
"डार्लिंग कब मिलोगी" अंक …१७
पंद्रह मिनट बाद ही वह किचन में जल्दी - जल्दी आटा गूंध रही थी।
आलू प्रेशर कूकर में उबल रहे थे। एक तरफ उसने चटनी के लिए बैंगन टमाटर पकने को रख दिए थे।
लगभग तीस मिनट बाद वह कमरे में आलू के परांठे ,टमाटर की चटनी और मग में गर्म काॅफी की ट्रे ले कर कमरे में आई।
हिमांशु कमरे में घूम कर सेल्फ पर रखे तस्वीरें देखने में व्यस्त हैं।
एक तस्वीर जिसमें नैना, सपना और शोभित के साथ खड़ी है। हिमांशु के हाथ में वही तस्वीर लहरा रही है।
उसे यह ख्याल आया यह तस्वीर उसे हटा देनी चाहिए थी।
नैना बैठ गई ।
दो निवाले खाने के बाद बोला,
" अच्छे बने हैं। तुम भी खाओ ना "
कहते हुए काॅफी के दो घूंट लिए। अच्छी गृहस्वामिनी बनने के काफी लक्षण हैं तुम्हें "
हिमांशु बोला था। उसका स्वर गंभीर है।
नैना कुछ नहीं बोली उसे माया की याद आई,
" हिमांशु जिसे प्रेम करता है। उसके प्रति पजेसिव हो जाता है "
मुझको लेकर हिमांशु में अधिकार की भावना है। आखिर प्रेम में लोग पॅजेसिव क्यों हो जाते हैं ?
वो ट्रे किचेन में रख कर लौटी तो हिमांशु ने उसे हाथ पकड़ कर पास ही बैठा लिया। फिर कंधे से पकड़ कर साथ सटा लिया उसकी बड़ी -बड़ी आंखों में झांकते हुए ,
" तुम्हारी आंखें कितनी गहरी हैं इनमें सिवाय मेरे किसी की परछाई ?
नैना मन ही मन उद्वेलित हो गई।
" तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया ? मुझसे गुस्सा हो ? कहते हुए उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया ।
स्पर्श परिचित था। पहचान की तरंग ने नैना की
देह को तरंगित कर दिया।
धीमें से ,
" नाराज़ नहीं हूं, पर उलझन में जरूर हूं "
" किसे ले कर , मुझे ? "
" तुम्हे लेकर, खुद को लेकर "
हिमांशु एक क्षण को अलग हुआ फिर त्वरित गति से पास आ कर ,
" मुझे तुमसे यह कहने की जरूरत नहीं है, कि हम कितने पास थे "
नैना चौंक गयी।
उसके स्वर से ऐसी ध्वनि आ रही है।
जैसे किसी अपरिचित या फिर अपराधी ?
उसने हिमांशु की ओर देखा -- सामान्य दृष्टि -- किसी विशेष भाव से विहीन।
तभी फ़ोन घनघना उठा था , घर से पिता का फोन है। पल भर में उसे अपना अतीत , वर्तमान और घर परिवार में सारे सम्बन्ध याद आ गये।
उसने हिमांशु से अलग हट कर फोन उठाया था।
फोन पर पिताजी का भारी स्वर ,
" विनोद के बच्चे का अन्नप्राशन है सभी तुम्हारी राह देख रहे हैं, जया और रोहन कुमार भी आ रहे हैं "
आवाज से स्पष्ट था, आग्रह नहीं आदेश है।
हिमांशु ने हाथ थामने की कोशिश की थी। लेकिन तब तक नैना संभल चुकी थी।
उसने सिगरेट सुलगा ली और पैंट की जेब से एक पुड़िया निकाल रहा है।
नैना ने कनखियों से देखा , फिर नज़र घुमा ली।
उसे माया दी से हिमांशु के इस नये शौक का पता चल चुका है।
अन्नप्राशन की डेट एक हफ्ते बाद की थी , तो औफिस से छुट्टी लेने और सारी तैयारियां पूरी होने में ही समय निकल गया।
एक हफ्ते के बाद , नैना अपने छोटे से लगेज के साथ घर पहुंची थी। तो दरवाजा पहले से ही खुला था। और सामने सोफे पर पिता , विनोद भाई और रोहन कुमार लाइन से बैठे हुए बातचीत में मशगूल थे।
जया उससे तीन दिन पहले ही पहुंच चुकी थी।
विनोद भाई के बेटे के अन्नप्राशन में घर का माहौल खूब हंसी- खुशी वाला लगा।
नैना ने नमस्ते की तो भाई ने उठ कर उसे गले से लगा लिया और पिता ने गहरी सांस ली।
वह पिता के पांव छूने ज्यों ही झुकी उनकी आवाज भर्रा गयी।
" आओ नैना ! " आखिर तुम न आती तो रस्म कैसे पूरी होती ? "
रोहन कुमार हंस कर बोले। वह जवाब में कुछ बोलती इसके पहले ही छोटी शुभ्रा अंदर से निकल कर उसकी बांहों में झूल गयी।
तब तक भाभी अनुराधा भी आ गई उसे बांहों से पकड़ कर अंदर मां के सामने ले जा कर खड़ी कर दी।
नैना ने देखा मां के चेहरे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट हैं।
लेकिन मां ?
नैना के अभिवादन के जवाब में
उन्होंने अपने खास स्वर में ताना मार ही दिया,
" आ गई , हमारी अफसरानी बिटिया, नैना रानी बहुत दिनों बाद सुध ली "
जया दी ने उन्हें बीच में ही टोक दिया ,
" क्या मां इतने दिनों बाद घर आई है , उसे बैठने तो दो "
उसके हाथ से लगेज लेकर घर की पुरानी महरी बिंदु को दे दी।
अनुराधा ने सुंदर मुस्कान के साथ अपने बेटे को नैना की गोद में ले दिया।
नैना ने देखा दो नन्ही- नन्ही आंखें उस चकित भाव से देख रही हैं। उसने गीली मुस्कान से उसका चुंबन ले लिया , तो वह प्रसन्न भाव से उसके चेहरे को छूने लगा।
" बहुत जल्दी दिल्ली वाली बुआ से दोस्ती हो गई ? " अनुराधा बोली,
" और तुम्हारे क्या हाल हैं ? ब्रांड एम्बेसडर की नौकरी कैसी चल रही है ? "
यों तो रिश्ते में अनुराधा उससे बड़ी है।
पर नैना ही विनोद से उसकी सगाई से लेकर शादी तक की सभी रस्मों में साथ रही है। तो उन दोनों में सहेलियों जैसे ही व्यवहार हैं।
" सब उपरवाले की मर्जी है "
अनुराधा पल भर उसे ध्यान से देखती रही जैसे नैना का चेहरा ना हो कर कोई पहेली है फिर,
" तुम्हारी माया तुम ही जानो। वैसे आगे के जीवन के बारे में क्या सोचा है ? "
नैना मुस्कुराई ,
" क्यों तुम्हारा जीवन तो मजे में कट रहा है अब मेरा क्या ? मैं जी नहीं रही हूं क्या ?
" मैं पूछ रही हूं ब्याह कब करोगी ?
" मैं ब्याह नहीं करूंगी "
" यह क्या कह रही हो तुम ? यह कोई जीवन है नैना ? "
" आइ एम इन लव "
" यह तुम क्या कह रही हो लड़की ?
हमारे घर में सात पुश्तों तक किसी ने प्रेम किया है ?
और प्रेम-विवाह की तो सोचना भी मत "
मां जो कब से इन भाभी ननद की चुहलबाज़ी सुन रही थीं। एकदम से बिफर उठी थीं।
थोड़ी देर के लिए मौन छा गया था।
नैना सोचने लगी , सोचा तो था , हिमांशु मिल भी गये हैं पर उसका साथ ?
सोच कर ही उदास हो गई है नैना।
शाम को बच्चे के अन्नप्राशन की पूजा हुई।
मां - बाबा ने जो कुछ भी उसके मुंह में डाला उसे वो खूब मजे से चुभलाता रहा। नैना ने भतीजे की कितनी तो तस्वीरें उतारीं हैं।
रात को फंक्शन के पूरा होने के बाद सब एक साथ बैठे थे।
आगे ...
क्रमशः