अंक २१" डार्लिंग कब मिलोगी"🌺
अंक २१" डार्लिंग कब मिलोगी"🌺
बातों में कब रात गुजर गयी पता ही नहीं चला अगले तीन दिनों तक नैना सपना के साथ
गुजारने के बाद खुश हो कर अपनी बरसाती में लौटी थी।
औफिस आते- जाते एक हफ्ते भी नहीं बीते थे।
एक दिन औफिस से लौटते वक्त नैना जल्दी- जल्दी सीढ़ियां चढ़ती चली जा रही थी।
जब मिसेज अरोड़ा ने उसे रोकते हुए अपने चेहरे पर मुस्कुराहट ला कर मुखातिब हुई,
" नैना महंगाई बहुत बढ़ गई है, हमें किराया बढ़ाना होगा,
या तो तुम ही बढ़ा दो नहीं तो ... फिर दूसरी जगह देख लेना "
नैना एकाएक यह सुन कर मानों धड़ाम से जमीन पर गिरी। उसे काटों तो खून नहीं,
अभी एक साल भी नहीं हुआ है। सारी मंहगाई की मार सिर्फ एक उसकी बरसाती के लिए ही है।
फिर सारी रात वह अपनी बरसाती में करवटें बदलती रही। यह बरसाती उसके लिए सुरक्षित जगह साबित हुई है।
वह इसे छोड़कर कहां जाएगी ?
वह चाहे तो कुछ पैसे बढ़ा सकती है पर अभी-अभी उसने कुछ पैसे घर अनुराधा के आग्रह पर उसकी कम्प्यूटर ट्रेनिंग के लिए भेजना शुरू किया है।
इस तरह चिंता और फिक्र से वह सारी रात अनिद्रा से जूझती रही।
यह अतिरिक्त बोझ उस पर इतना। घना और गहरा है कि सबको परेशान करके रख देगा यह सोच कर उसे रोना आ गया।
मन ही मन उसे फिर से अपने भीतर दबे आक्रोश पर गुस्सा आ गया।
" जिस बोझ को एक बड़े बैल पर रखा जाना चाहिए था, मानों उसे बछड़े पर रख दिया गया है "
वह तकिए में सिर छिपा कर रोती रही।
अब उसे ज्यादा पैसों की आवश्यकता होगी।
सुबह औफिस जाने के समय उसका सिर भारी और चेहरा क्लांत हो रहा था।
आखिर कुछ तो सोचना पड़ेगा यह सोच कर अपने औफिस में कलिग से बातें की लेकिन ठोस नतीजे के रूप में कुछ भी सामने नहीं आया था।
शाम होने को आई है, आसमान पर लाली छाने को है। नैना औफिस की खिड़की से बाहर देख रही थी सूरज डूबने को है। उसे तत्काल शोभित की याद आई।
साथ ही उसके दिए गए ऑफर का ध्यान आते ही नैना के कदमों में जैसे चाबी भर गये।
दीवार घड़ी ने पांच का घंटा बजाया।
नैना ने टेबल पर रखे अपने कागज समेट कर बैग के हवाले किया और औफिस से निकल कर सड़क पर आ गई।
सामने ही ऑटो खड़ी थी। जिस पर सवार होकर शोभित के घर का पता बता दिया।
करीब आधे घंटे में नैना शोभित के घर के सामने खड़ी थी।
वहां पहुंच कर उसने शोभित को
"हैलो" किया। शोभित उसके इंतजार में ही बैठा था।,
" कहां थी इतने दिनों तक ?
जिस सुबह हमारी बातें हुईं उसी रात तुम घर से बाहर चली गई थी।
मैं पिछले पंद्रह दिनों से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं "
" माफ करना, तुम्हें असुविधा हुई, हर्ट तो नहीं हो गये ? "
" मैं तैयार हूं " नैना ने कहा।
शोभित ने आगे बढ़कर उसकी तरफ चेयर कर खिसका दी और खुद सोफे पर बैठ गया।
" मुझे बहुत खुशी हुई। सच्चाई यह है कि मेरे मन से भारी बोझ उतर गया "
" यह प्ले कौन सा है ? मैं पहले तुम लोगों की रिहर्सल देखना चाहूंगी "
" यह प्ले, स्त्रियों के उपर चल रहे गृह युद्ध के प्रभाव के बारे में है "
" तुम चाहो तो इस शनिवार को चल कर देख सकती हो। "
नैना ने हामी में सिर हिलाया।
शोभित ने एक फाइल उसकी तरफ बढ़ाई और मुस्कुरा कर बोला,
" स्क्रिप्ट ? "
" मैं आज रात को ही पढ़ लूंगी "
नैना ने स्क्रिप्ट खोली। हिंदी में थी। नैना बोली कर पढ़ने को हुई।
पहले ही पन्ने पर था,
" पता नहीं क्यों आज की शाम बहुत सुहानी लग रही है। हवा की अठखेलियों में कशिश कुछ ज्यादा है। दिल में उमंगों की घटाएं छाई रही ... है " बोलती हुई नैना को लगा कि शोभित की एक टक निगाहें उस पर ही है।
" पर्फेक्ट " शोभित के चेहरे पर मीठी मुस्कान खेल रही है।
नैना अचकचा गई।
" आगे पढ़े " कुछ रुक कर नैना,
" आंखों के सपने कुछ ज्यादा ही दिलकश हो उठे हैं " फिर अपनी भाव भरी आंखें शोभित पर डाल कर,
" तुम क्या सोचते हो शोभित "
अब शोभित ने इत्मीनान होकर पूछा,
" कैसी हो ? कुछ दुबली लग रही हो ? "
वह ड्राइंग रूम के सोफे पर बैठ गया था। और सिगरेट सुलगा ली।
" नैना " शोभित अटकते हुए,
" पिछले दिनों तुमने फोन नहीं किया अच्छी हो, नाराज़ तो नहीं हो ? "
हिमांशु की मां के गुजर जाने का तनाव, और पीड़ा अकेली नैना से संभाले नहीं संभल रहा था।
उसका मन भारी हो गया।
रुंधी हुई आवाज में उसने पिछली सारी बातें बता दी।
पूरे पन्द्रह दिन बाद दोनों का मिलना हो पाया है।
उन दोनों के बीच जिस भाव भरी खामोशियों का लेन- देन अब तक हुआ है।
वह अभी किसी वाक्यों तक नहीं पहुंचा है। लेकिन शोभित ने हमेशा उसके हौंसले को बढ़ाया है।
" बैठो नैना! शांत हो जाओ, फिर शांत हो कर कुछ फैसला करना,
तब तक मन हल्का करने के लिए रिहर्सल में भाग लेना शुरू कर दो "
"इस तरह इस हाल में किस तरह शोभित ?
मुझे पूर्व में इसके कोई अनुभव भी नहीं है! लेकिन मुझे इस समय पैसों की भी सख्त जरूरत है,
तुमसे मेरी और मेरे घर की हालत छुपी नहीं है। मिसेज चोपड़ा ने अपनी बरसाती का किराया भी दोगुना कर दिया है "
नैना रुंधे हुए स्वर में बोल पड़ी।
शोभित ने सोफे पर बैठे हुए ही नैना की चेयर थोड़ी नजदीक खींचते हुए,
" तुम्हारी तरह ही मुझे भी किसी ट्रेनिंग का अवसर नहीं मिला है "
कहते हुए शोभित ने जैसी शक्ल बनाई, उसे देख नैना को एकबारगी हंसी आ गई।
फिर उसने नैना को अपनी प्रारम्भिक संघर्ष की कहानी कह सुनाई।
" हां शुरू - शुरू में कदम थोड़े बहके थे। फिर कुछ ठोकरें लगी तो संभल गया "
शोभित ने सिगरेट सुलगा ली थी।
"इतना जरूर कहूंगा कि जैसा अवसर तुम्हें मिला है वैसा सबको नहीं मिलता।
चाहो तो औफिस के साथ- साथ थोड़ी ज्यादा मेहनत करके सब्सटेंशियल पैसे कमा लो "
" सीधे तौर पर बताओ कितने पैसे को तुम सब्सटेंशियल कहते हो ? "
" उतना ही !
जितने में तुम्हारे सिर के उपर एक छत हो साथ ही तुम अपने परिवार वालों की भी उनकी जरूरत के मुताबिक हेल्प कर सको "
" मैं उलझन मैं हूं शोभित "
नैना के मुंह से एक ठंडी सांस निकल गई।
आगे …