Seema Verma

Others

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अंक …१८" डार्लिंग कब मिलोगी"

अंक …१८" डार्लिंग कब मिलोगी"

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वहाॅं माॅं के अलावा और सभी लोग मौजूद थे।अनुराधा ने तो सवाल पर सवाल दाग कर नैना को परेशान कर दिया था। लेकिन नैना ने तनिक भी घबराए और बिना हिचक के उसके एक- एक सवाल के जवाब विनम्रता पूर्वक दिए थे मसलन ,

" अनुराधा ... हमने सुना है तुम वहाॅं लगातार सुशोभित के संपर्क में हो यहां तक कि अभी तुम जहाॅं रह रही हो वह घर भी उसी के मार्फत मिला है तुम्हें "

"हां , सही सुना है तुमने भाभी 

" और यह भी कि तुम उसके साथ नाटकों में भी काम किया करती हो अपनी नौकरी के अलावा ?"

"हां यह भी सच है। "

" लेकिन! तुम्हें किस तरह मालूम ?"

" मेरी दूर के रिश्ते की बहन ने तुम्हें देखा था कहीं स्टेज पर उसने ही हमें बताया "

अब पिताजी खखाड़ उठे थे ,

" यह हम क्या सुन रहे हैं ?

 तुम वहां नौटंकी करने गयी हो ? और कोई काम नहीं बचा है खानदान की नाक कटाने को ? "

" और यह भी कि तुम प्रेम विवाह करना चाहती हो। ऐसा तुम्हारी मां ने कहा है "

नैना ने कटी हुई नाक लहराते हुए ,

" अभी ऐसी कोई बात नहीं है, पहले मैं अपनी लगी हुई नौकरी में जम जाऊं फिर नाटकों में भी अच्छे पैसे मिल जाते हैं बाबा ,

" आपको क्या परेशानी है ?

यहां की हालत मैं देख रही हूं। घर की छत चू रही है। विनोद भाई की छोटी सी प्राइवेट नौकरी, मां की दिन पर दिन बद्तर होती हालत और अब ये उपर से मुन्ने की परवरिश सब कुछ इतना आसान हो रखा है क्या ? "

" और आप अपना स्वास्थ्य देख रहे हैं सिर्फ चमड़ी और हड्डियां बच रही है "

अगले कुछ मिनटों तक ...

 नैना ने खुद को यह सब कहते हुए सुना ...।

एक बार बहुत छुटपन में नैना ने बाबा को मां से यह कहते हुए सुना था ,

" अगर नैना, की जगह हमारा लड़का होता तो घर चलाने में हमारी मदद करता " 

तभी से नैना ने घर की जरुरत के समय खड़े रहने की सोच ली थी।

आज उसे कुछ वैसी ही आवश्यकता दिख रही है। और शायद इसलिए बाबा के सामने कभी भी कुछ कह पाने की हिम्मत नहीं करने वाली नैना भी

उनके सामने आज इतना बोल पाई।

 तभी ... 

" यानी प्रेम और नौटंकी चलती रहेगी ? खानदान पर कीचड़ उछालती रहोगी ? "

यह विनोद भैया का स्वर था।

" मेरा व्यक्तिगत जीवन मेरा सरोकार है विनोद भाई "

सुना है , आप इन दिनों तंगी की हालत में चल रहे थे और घर से बाहर कहीं निकल कर अपनी किस्मत आजमाने की सोच रहे हैं।


लेकिन पिता असामान्य ढ़ंग से शांत हो गये थे।शायद वस्तुस्थिति समझ पा रहे थे।ठीक है ! कहते हुए वे उठ खड़े हुए।

" बड़े शहर की बड़ी बातें ! तुम जो कर रही हो वह पतन का रास्ता है। मैं डरता हूं बाद में तुम्हें पछतावे के चलते शर्मिंदगी ना उठानी पड़े। "

" और अगर सफल रही तो ? "

कहते हुए नैना की आवाज कांप गई थी।

पिता के हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उसके सिर पर थे।

दद्दा! 

नैना सिसक उठी थी। वह समझ नहीं पाई यह आंसू खुशी के हैं या समझौते के ?

" अरे भाई कलाकार साली साहिबा , खुशी के मौके पर यह क्या ? "

रोहन कुमार बीच में बात संभालते हुए हो... हो ... कर हंस उठे थे।

आगे अनुराधा ने ,

" तुम्हारे पास रहने को कितनी जगह है  ‌‌‌‌‌से लेकर ,

" हर महीने घर का कितना किराया भरती हो ?"  के बहाने नैना की आर्थिक हैसियत से लेकर सामाजिक हैसियत जानने तक में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।

यों नैना ने इस सब कुछ के बारे में सच- सच बता दिया है।

लेकिन वह जानती है, अनुराधा ने इसपर विश्वास नहीं किया था।

 फिर उसने बातों ही बातों में दबे स्वर में हिमांशु के बारे में भी जानने के प्रयास किए थे।

इन सारे वाकयातों से गुजरते हुए अनुराधा की आंखों में जो भाव दिखाई दिए थे वो यह था कि ,

" अगर इसके वश में होता तो ये अभी भी सब कुछ छोड़ कर मेरे साथ चली चलतीं "

" तुम्हारी डेली रूटीन क्या रहती है? "

नैना ने शौर्ट में बताया।

" तुम्हारी आलमारी तो कपड़ों से भरी होगी ? और सौन्दर्य - प्रसाधन के अनगिनत सामान होंगे ? "

नैना थक चुकी है जवाब देते- देते तो हंसती हुई ,

" चली चलो, अनुराधा रानी इस बार मेरे साथ सब अपनी आंखों से देख लेना "

अनुराधा की आंखें चमक उठीं।


वो तीन दिन किस तरह कट गये पता ही नहीं चला। इस बार घर से चलते हुए पिता के आदेश पर नैना को पापर, अचार और बड़ियां बांध कर मिले हैं। स्टेशन पर छोड़ने आए पिता ,

" नैना , एक बात बोलूं ? "

नैना का मन का कैसा तो हो उठा।

" कहिए " 

" तुम संतुष्ट तो हो न ? विनोद आने वाले दिनों में बाहर शायद तुम्हारे पास जाना चाहे। 

इस विषय में तुम्हारी राय क्या होगी ?

वह तुमसे बात करने में कतराता है "

नैना सिवाए मुंडी हिलाने के और क्या कर सकती थी ?

पिता और दुर्बल हो गये हैं। अवकाश प्राप्ति करने में अब कुछ दिन ही शेष बचे हैं।

भाई भी दायित्वों के बोझ तले दबे और बुझे से लगे थे।

उसने सोचा ...

मध्यम वर्गीय जिंदगी भी कितनी सपाट और तिल- तिल कर जलती है।

ट्रेन ने सीटी दे दी थी।धीरे- धीरे भीड़-भाड़, स्टेशन के लाइटस, पुराना शहर और पिता पीछे छूटते से लगे काफी देर जब तक वे दिखते रहे नैना हाथ हिलाती रही। फिर थक कर अपनी सीट पर जा कर बैठ गई।

नजर के सामने एक- एक कर शुभ्रा, अनुराधा , अनुराधा के बेटे और विनोद भाई के साथ मां की कृशकाय छवि तैर गई।

इन सबके पीछे एक और चेहरा हिमांशु और शोभित का था।  

एक में अतीत की प्यारी निर्मल छवि दिखाई देती है तो दूसरा सुनहरे भविष्य की चमकती तस्वीर है।हर सुबह उजाले के साथ शुरू होकर रात होते- होते नैना के ख्याल उसकी जिंदगी से उलझने लगते हैं। दिन भर तो वह काम में खुद को उलझा कर उन ख्यालों से दूर रहने की जद्दोजहद में लगी रहती है। लेकिन रात का सूनापन और सन्नाटा उसे वापस उन्हीं सवालों के घेरे में घेर लेता है।

इस अंतर्द्वंद में विचरती हुई उसकी आंख कब लग गई पता नहीं चला।सुबह नींद खुली गाड़ी दिल्ली स्टेशन पर लग चुकी थी।  सामने शोभित खड़ा था।

हैलो ... नैना!

पहले से दुबला लग रहा था। चेहरे पर असमंजस के भाव लिए शोभित आज नैना को थोड़ा अजनबी सा लगा। 

फिर भी ,

तुम्हारी तबियत ठीक तो है ?

ठीक है , फिर कुछ पल सोच कर ,माफ करना नैना मैं तुमसे मिलना चाहता था।

तुम्हारे औफिस भी गया था पता चला तुम घर गयी हो कोई खास बात सब ठीक है‌ ना ? 

" हां सब ठीक है। 

बोल कर ,

चलते-चलते ही खुद के घर जाने का कारण और वहां की ताज़ा स्थिति के बारे में शोभित को जानकारी दे दी।

पल भर दोनों की दृष्टि मिली नैना हल्के से मुस्कुराई।

" नैना ! दरअसल पिछले दिनों हम जो नाटक खेलने वाले थे उस के सम्बंध में ही तुम्हारे पास गया था। "  

" ओ सही है, अगर आवश्यक होगा तो हम शाम में मिल सकते हैं "

" चलो घर पर काॅफी पी कर जाना "

" अभी नहीं नैना,

 बाद में नहीं तो मैं रिहर्सल के लिए लेट हो जाउंगा और तुम औफिस के लिए , तुम मेरे औफर पर विचार करना अच्छे पैसे मिल जाएंगे" 

 कहते हुए शोभित उसके हाथ को हल्के से थपथपा कर मुस्कुरा दिया। 

नैना को उसकी बरसाती में छोड़ते हुए शोभित अपने घर के लिए निकल गया।

अपनी बरसाती में पहुंच कर नैना ने संतोष की सांस ली। स्टेशन पर शोभित से हुई छोटी सी मुलाकात से उसकी सारी थकान और उदासी मिट चुकी है।

वह झटपट तैयार हो उबले अंडे और टोस्ट का नाश्ता करके साथ में गर्म दूध के भरे गिलास में काॅफी डाल पी कर तरोताजा महसूस करती औफिस के लिए निकल पड़ी

रात के ग्यारह बजे जब नैना थकी हारी सोने की कोशिश कर रही थी ।

जब उसका फ़ोन घनघना उठा था।


आगे ...


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