अंक…२२"डार्लिंग कब मिलोगी"
अंक…२२"डार्लिंग कब मिलोगी"
कुछ क्षण वो खिड़की से बाहर टुकुर -टुकुर देखती रही।
अपने आवेग को दबाने के प्रयत्न करती हुई नैना ने शोभित की तरफ तृष्णा भरी निगाहों से देखा।
शोभित ने उसकी तरफ चाय का प्याला बढ़ाया।
नैना शोभित के थोड़ा करीब आ कर ,
" आज मैं तुम्हारे साथ अपनी गहन बात बाॅंटना चाहती हूॅं " कहती हुई चाय के प्याले को बगल में पड़ी तिपाई पर रख दी…
" हिमांशु ,
से मेरी दोबारा मुलाकात हुए कुछ दिन बीत गए। इस बीच उसकी माॅं गुजर गई हैं।
वो खुद को अकेला महसूस करता है। साथ ही यह भी सच्चाई है।
मैं भी उसके बिन गुजारे दिनों की यातनाओं को भूल नहीं पाती हूॅं "
कुछ पल चुप्पी साध कर ,
" मैं नहीं जानती हमारा यह संबंध आगे क्या मोड़ लेगा और स्थिति हमारे अनुकूल हो पाएगी या नहीं ? "
बहरहाल ,
" जो भी हो अभी तो मैं नाटकों से मिले पैसों से एक घर और अनुराधा के बेटे के भविष्य पर ध्यान देने कि सोच रही हूॅं "
प्रिय पाठकों!
हर व्यक्ति के साथ कितना कुछ गोपनीय होता है ना ?
किसी के बारे में सब कुछ जानते हुए भी हम उसके भीतरी मन से कितने अनजान रहते हैं।
फ़िलहाल इस वक्त!
नैना अपने अन्तर्मन की व्यथा शोभित के सामने रखती हुई खुद को हल्की महसूस कर रही है।
" शोभित, मेरा दिल ऐसी नाव है जिसकी पतवार किसी और की हाथ में है" शोभित के कान गर्म हो गये । धमनियों में बहते खून का प्रभाव तेज हो गया। वह मन ही मन सोच रहा है,
" इतनी मोहक युवती की चिंता का कारण ? और कोई नहीं उसके खुद का प्रेमी भी हो सकता है? "
" क्या हाल हैं उसके ? "
उसे जबरन पूछना पड़ा।
" परेशान हैं आजकल ,
मम्मी के गुजर जाने के बाद नया बिजनेस बैठाना चाहता है "
शोभित नैना को चुपचाप देखता रहा।
हिमांशु को लेकर वह नैना से स्पष्ट बात नही कर पाता है। वह जानता है कि उन दोनों के संबंध काफी पुराने हैं।
जिसके बारे में संदेह जता कर वो खुद को नैना की नजरों में गिराना नहीं चाहता है।
" बहुत रात हो गई है नैना,
तुम रिहर्सल में तो आओगी ना? इस रविवार को रविन्द्र भवन में मिलेंगे ,
चलो अभी, मैं तुम्हें छोड़ आता हूॅं "
"चलो" कह कर नैना उठ खड़ी हुई।
" पर खाना ? खाना तो हमने खाया नहीं और मुझे जोर से भूख लग रही है।
तुम भी इतनी देर से क्या बना पाओगी "
पास के रेस्तरां में चलते हैं ,
" हाॅंं, चलो "
घर वापसी के लिए ऑटो पर बैठती हुई नैना के चित पर पसरी उदासी छंट चुकी थी। मन प्रफुल्लित लग रहा था।
रात के साढ़े नौ बज रहे थे। जब नैना ऑटो से उतर कर सीधी मिसेज अरोड़ा के पास पहुंची थी।
" मिसेज अरोड़ा , मैं अगले महीने से आपकी रेंट बढ़ाने की डिमांड पूरी कर दूॅंगी मैं बेफ्रिक हो कर रह सकती हूॅं ?
"ओ हाॅं- हाॅं बल्कि कुछ जरूरत है तो बोल दिया करना "
नैना ने धन्यवाद की औपचारिकता पूरी कर सीढ़ियों की ओर बढ़ गई।
पिछले कुछ दिनों से हिमांशु और माया दी की खबर नहीं मिली है।
नैना ने कल ही उन दोनों से मुलाकात करने की सोच ली।
अगले दिन अपने प्रोग्राम के मुताबिक नैना माया दी के सामने थी।
माया उसे देख कर खुश हो गईं ,
"कहाॅं रही नैना इतने दिन ? यू केम हियर आफ्टर ए लौंग टाइम "
नैना हामी में सिर हिला दी। उसकी निगाहें हिमांशु को ढूंढ रही थीं। संकोच से वह पूछ नहीं पाई।
तभी हिमांशु मुस्कान के साथ आ कर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। इस समय वह वाकई बहुत आकर्षक लग रहा था।
उसे देख कर … नैना को शारीरिक पुलक महसूस हुई।
माया ने आया से कह कर चाय नाश्ते का इंतजाम किया फिर चाय पीकर उठ खड़ी हुई ,
तुम लोग बैठो बातें करो मैं आती हूं। मुझे कुछ काम है। ऐसा बोल कर निकल गईं।
शायद उन्हें अकेले में बात करने का मौका देना चाह रही थी।
मम्मी की मृत्यु के बाद उससे एकांत में नैना की यह पहली मुलाक़ात थी।
कुर्सी पर बैठी नैना के बैठने की मुद्रा बदल गई है। वो गुजरे हुए कल की याद से बेचैन है।
" चलो ! " हिमांशु ने कहा।
" कहां "
"मेरे साथ " हिमांशु ने उसके हाथ थाम माथे पर एक चुंबन अंकित कर दिया।
" घर तो लाॅक कर लो " नैना ने मीठी मुस्कान बिखेरी।
एक ताजी सी सुबह की ताजगी महसूस कर रही है।
हिमांशु उसे ले कर पार्क की ओर बढ़ गया।
आगामी क्षणों का रोमांच उसकी देह को तरंगित कर रहा है। हिमांशु ने जेब से रुमाल निकाल कर उसकी आंखों पर बांध दिया।
नैना ने अपने मुख को हथेलियों से ढ़ंक रखा है आंखें बह चली है।
इन प्रेमिल क्षणों के लिए वह कब से तरस रही है।
पार्क के पेड़ों के घने झुरमुट में हिमांशु घुटनों के बल बैठा हुआ हाथ में अंगूठी लिए हुए ,
" विल यूं बी माइन " कह उठा।
नैना आंखों से रुमाल हटा कर ,
" हाॅं! हाॅं! हाॅं! "
कहती हुई उससे लिपट गई।
अंगूठी पहनाते हुए हिमांशु ने उसे बांहों में भर लिया। वह पल उन दोनों के लिए उत्सव बन गया था।
नैना खुश थी यह सोच कर ,
" जो परिचय पहले मिलना चाहिए था वह देर से ही सही अब मिल गया "।
उसके लिए वह खास दिन था जब उसकी बरसों की चाह पूरी हुई है।
प्रिय पाठकों!
नैना ने उस दिन को खास मान कर सही किया या नहीं ?
इसका पता तो बाद में चलेगा ?
हां हिमांशु के लिए 'पल' खास होते हैं 'दिन' नहीं।
आगे …
क्रमशः