Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Aarti Ayachit

Abstract

4.2  

Aarti Ayachit

Abstract

अलग-अलग रहकर भी साथ-साथ

अलग-अलग रहकर भी साथ-साथ

7 mins
24.2K


शिखा नौकरी छोड़ने के फैसले के बाद से ही कुछ उदास रहने लगी। मन ही मन सोचते हुए ! अरे बच्‍चे जब छोटे थे, उनको झुलाघर में जैसे-तैसे छोड़कर नौकरी चली जाती थी ! पर आज जब बच्‍चे बड़े हो गए और अपने-अपने उच्‍च-स्‍तरीय अध्‍ययन में व्‍यस्‍त हैं पुणे में ! तो स्‍वयं के बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य की सलामती की खातिर 26 वर्ष बाद यह फैसला लेना पड़ा। खैर चलो अब तो मैं इसी में खुश हॅूं कि निखिल के ऑफीस जाने के बाद अच्‍छा स्‍वादिष्‍ट खाना बनाकर खिलाने के साथ ही घर की देखभाल भी कर लेती हॅूं और बीच-बीच में बच्‍चों के पास भी हो आती हॅूं। अरे ! मैं तो भूल ही गई अब तो मेरी पहचान लेखिका के रूप में होने लगी है। अपने ही विचारों में खोई हुई-सी थी कि निखिल ने आवाज दी ! कहॉं हो भई ! आज खाना मिलेगा या नहीं ?

सुनते ही होश संभालते हुए शिखा आई ! आप हाथ-मुंह धो लीजिए ! मैं खाना परोसती हॅूं। अरे वाह ! आज भरवां बैंगन की सब्‍जी ! मेरी पसंद की...लाजवाब बनी है। तुम्‍हारे भोजन की बराबरी तो कोई कर ही नहीं सकता ! बहुत लजी़ज खाना बनाती हो। ऐसा खाना खिलाओगी रोज ! तो नौकरी कौन जाएगा ? ऐसा खाना खाते ही नींद आने लगती है जोरों से !

एक बात तो है शिखा ! कि हम यहॉं इसलिये बेफिक्री से रह रहें है क्‍योंकि तुमने बच्‍चों को भी सभी कामों की आदत जो लगा दी है। नहीं तो आज के जमाने में हॉस्‍टल में पढ़ाओ यदि दोनों को ! तो हॉस्‍टल और खाने-पीने का खर्चा अलग और कॉलेज की फीस अलग ! सभी खर्चा भी अधिक होता और खाना भी बाहर का खाना पड़ता कितना भी कहो घर के खाने की बात ही अलग है ! "स्‍वादिष्‍ट के साथ-साथ स्‍वास्‍थ्‍य के लिये हितकर भी।"

अरे जी ! सिर्फ़ मुझे यह लगता है कि बच्‍चों को मेरे हाथ का खाना नसीब नहीं हो रहा। अपने अध्‍ययन के साथ उन्‍हें सब प्रबंध करना पड़ता है ! हॉस्‍टल की परेशानी अलग और घर की अलग ! "दोनों के ही अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं।"

शिखा ! लेकिन हम भी क्‍या करेंगे ? हमारे जैसे कई माता-पिता ऐसे हैं, जिनके बच्‍चे उच्‍च-स्‍तरीय अध्‍ययन या फिर नौकरी के जरिये उनको घर से बाहर ही रहना पड़ रहा है। बच्‍चों के बगैर सभी माता-पिता को अकेलापन खलता है ! लेकिन क्‍या कर सकते हैं ! उनका भविष्‍य संवारना हैं हमें ! तो रहना ही पड़ेगा जी। फिर भी तुम तो नौकरी करती थीं ! इसलिये स्‍वयं की सूझबूझ से लेखन का जरिया आखिर ढूँढ ही लिया !" जिससे तुम्‍हारा पुराना शौक भी पूरा हो रहा और साथ ही समय का सदुपयोग भी।"

चलो भई शिखा ! ऑफीस का फोन आ रहा है ! मैं चलता हूँ ! शाम को बात करते हैं। वैसे भी अफसोस मत करो ! मैने फ्लाईट की टिकिट बुक कर दी है और अगले हफ्ते तुम्‍हे जाना ही है।

शाम को निधि का फोन आता है ! मम्‍मी मैने अपने सम्बंधित विषय के लिए कोचिंग क्‍लास के सम्बंध में विस्‍तार से पूछताछ कर ली है और वह रविवार को ही रहेगी। अपनी ट्रेनिंग के साथ-साथ यह भी मैनेज करना ही पड़ेगा, क्‍योंकि उस क्षेत्र में भविष्‍य में बेहतर स्‍कोप है। फिर यश का भी इंजिनियरिंग का अंतिम वर्ष है, तो उसको भी तो काफी अध्‍ययन करना है न ? तुम आओगी तो काफी सहयोग हो जाएगा।

इतने में बीच में ही शिखा के हाथ से फोन लेते हुए निखिल ने कहा ! बेटी फिक्र मत करना अच्‍छा ! मैं भेज रहा हॅूं मम्‍मी को मैं फ्लाईट से। चलो अब मम्मी की इच्‍छा भी पूरी हो जाएगी और वह काफी बेहतर हो गई है पहले से ! साथ ही उसके आत्‍मविश्‍वास में भी उत्‍तरोत्‍तर वृद्धि हो रही है।सुनते ही बच्‍चों की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा ! अब तो मम्‍मी के हाथ का स्‍वादिष्‍ट खाना जा खाने को मिलेगा रोज।

तुम किस सोच में पड़ गई शिखा ? कुछ नहीं जी ! अब बच्‍चों के पास जा तो रही हॅूं, पर आप नौकरी के साथ मैनेज कर पाओगे ? अरे तुम मेरी चिंता ना करो ! अभी बच्‍चे उम्र की उस दहलीज पर हैं, इस समय उनको मॉं की ज़रूरत ज्‍यादा है।

बिल्‍कुल सही कह रहे हैं आप ! पर मुझे लगता है कि मेरी स्‍वास्‍थ्‍य की परेशानी के चलते दौर में मेनोपॉज की दिक्‍कत और कितने डिप्रेशन से उबारा है आपने ! तब जाकर तो सामान्‍य हो पाई हॅूं। अब मैं आपको और तकलीफ में नहीं देख सकती और बच्‍चों को भी।

शिखा जी सब फिक्र छोडि़ए और जाने की तैयारी किजीए ! यहॉं तो मैं संभल ही लॅूंगा। फिर शिखा खुश होकर ! अरे जी बेटी का जन्‍मदिवस भी नज़दीक ही है और उस समय आप भी वहीं आ जाना ! फिर हम सब मिलकर मनाएंगे।शिखा के पुणे पहुँचते ही बच्‍चें फुले नहीं समा रहे ! मम्‍मी को देखते ही ! यश और निधि बोले ! आप काफी बेहतर स्थिति में हो ! सब ठीक हो ही जाएगा अब तो !

कुछ समय बीता ! यश का कॉलेज और निधि का ट्रेनिंग एवं कोचिंग क्‍लासेस यथावत चल रही थी कि अचानक कोरोनावायरस के कहर की खबर सब जगह फैलने लगी। जनवरी से सुन रहे थे, पर उस समय भारत में उसका इतना खतरा नहीं था, पर फिर भी उसके प्रभाव से बचाव हेतु आवश्‍यक नियमों का पालन करने के लिये कहा जा रहा था ! सो कर रहे थे।

मार्च में निधि का जन्‍मदिवस होने के कारण निखिल से पूर्व से ही रेल्‍वे का रिजर्वेशन कर रखा था और शिखा को किये वादे के मुताबिक वह आया भी। सबने मिलकर निधि का जन्‍म दिवस उसकी सखियों के साथ घर पर ही बड़ी धूमधाम से मनाया।

निखिल को मार्च एंडिंग के काम अधिकता के कारण सिर्फ़ चार ही दिन का अवकाश मिला था, ऑफीस से ! बच्‍चों का मन भरा नहीं था ! पर करें क्‍या ? नौकरी पर जाना भी तो ज़रूरी ! सो अगले ही दिन निकलना पड़ा भोपाल के लिए और जैसे ही घर पहुँचे, सभी जगह लॉकडाउन ही घोषित हो गया। निधि को वर्क फ्रॉम होम बोल दिया गया और यश के प्रोजक्‍ट व यूनिट टेस्‍ट सभी वर्क ऑनलाईन ही होने लगे। अब तीनों सोच रहे कि काश ! निखिल एक दिन रूक जाते तो सभी साथ ही रहते ! पर होनी को कोई टाल सका है भला ?

फिर बच्‍चों ने इसी में समाधान माना कि चलो इस लॉकडाउन में कम से कम मम्‍मी तो साथ है ! पापाजी की ड्यूटी की भी इमरजेंसी है ! तो ऑफीस से बुलावा आने पर जाना ही पड़ेगा न ! चलो ठीक है ! शिखा ने कहा मैनेज कर ही लेंगे।

रोज विडि़यो कॉल पर बातें होने लगीं। शिखा कभी-कभी मायूंस हो जाती तो बच्‍चें समझाते ! इसके पहले भी कितने कठिन पल आए मम्‍मी और पापा पर कितनी सहिष्‍णुता से आप दोनों से सामना किया है न ? विडि़यो कांफरेंस में यश बोला ! सुनते ही निधि भी बोली मम्‍मी ! यह क्‍या कम है कि आप हमारे साथ हो। फिर निखिल ने सभी को समझाते हुए कहा ! थोड़े दिन की और बात है ! यह पल भी निकल ही जाएंगे ! तुम ये सोचो शिखा कि इस समय बच्‍चों का सहारा बनी हो ! इस लॉकडाउन में कुछ सीखना होगा न नया ! इस परिवर्तनशील जीवन में कुछ परिवर्तन हमें भी लाना ही होगा ! सो तुम्‍हारे बताए अनुसार मैं खाना बना लूंगा।

वैसे भी इमरजेंसी में तो ड्यूटी जाना ही पड़ेगा मुझे ! स्‍पेशल पास बना है मेरा और इस वक्‍त की नज़ाकत को समझना है ! इस लॉकडाउन में जो डॉक्‍टर, नर्स, सफाई कर्मचारी इत्‍यादि देश के हित में कार्य कर रहें हैं, उन्‍हें हम सबको नमन करना चाहिए। अपनी जान जोखिम में डालकर भी ड्यूटी निभा रहे हैं। जीवन में कठिनाईयाँ आती-जाती रहेंगी ! लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि उसका हिम्‍मत के साथ सामना करते हुए कैसे सफल हो पाते हैं ! "तुम अपनी ड्यूटी निभाओ और मैं अपनी।"फिर विडि़यो कांफरेंस समाप्‍त करते हुए बच्‍चे बोले मम्‍मी-पापा ! हम सब तन से अलग-अलग होते हुए भी मन से हमेशा साथ-साथ हैं।


Rate this content
Log in

More hindi story from Aarti Ayachit

Similar hindi story from Abstract