अल्फ़ाज़ और अहसास
अल्फ़ाज़ और अहसास
सगाई की शाम अविनाश, नीलिमा (मंगेतर) के नाम खुद की लिखी कविता पढ़ कर होटल के हॉल से बाहर आ चला था ! जिसे देखो वो बस उसकी लिखी कविता की तारीफ कर रहा था ! नीलिमा की सहेलियाँ भी नीलिमा को "कविराज अविनाश" कहकर चिढ़ा रही थी, पर नीलिमा जैसे अविनाश के इस गुण की इतनी कायल न थी ! उसे जैसे कोई फर्क न पड़ा अविनाश के उसके लिए कहे गए शब्दों का !
"क्या खूब लिखा है !" नीलिमा की एक हमउम्र महिला ने अविनाश से कहा !
"धन्यवाद !" अविनाश उस महिला की ओर एक नजर देखकर बोला।
"पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, देखा नहीं एक बार उसने तारीफ भी नहीं की आपकी !" महिला ने कहा !
फर्क, किसे ?
"नीलिमा को और किसे, वो ऐसी ही है ! उसे कभी भी आपके लफ़्ज़ों की कद्र न होगी पर मैं तो आपकी कलम की दीवानी हो गई !"
महिला कहती रही और अविनाश बस उसकी बातें सुनता रहा !
"वो मेरी बुआ की बेटी है तो क्या हुआ, मैं अपने घरवालों को मना लूंगी ! तो कहिये मुझसे शादी करेंगे ?"
महिला की बातें सुन अविनाश थोड़ा हैरान तो था ! कुछ पल भर की चुप्पी के बाद उसने जवाब दिया-
"साली साहिबा शब्द मेरे है ! अहसास मेरे है ! उसकी कद्र मुझे होनी चाहिये ! नीलिमा करे या नहीं, इससे नीलिमा के लिए अहसास अगर कम हो जाये तो इसका मतलब तो यही हुआ कि लिख़ने में मैंने ईमानदारी नहीं बरती ! आप फिक्र न करिये और दुबारा ऐसी कोई बात भी !"