VIKAS KUMAR MISHRA

Tragedy

4.5  

VIKAS KUMAR MISHRA

Tragedy

कुंठाइनन

कुंठाइनन

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क्वारंटाइन सेंटर में चार आमने सामने बिस्तरों में बैठे लोग बातें कर रहे थे! उनमें से एक बता रहा है कि वह रायपुर से पैदल ही चल कर यहाँ तक आ गया! वहां खाने को नही था! रहने को छत भी छिन गयी थी! सो यहाँ आ गया! और तुम कहाँ से आये भाई? पहले ने एक दूसरे व्यक्ति से पूछा!

"हम, हम तो दिल्ली से आये हैं भैया। वही रोटी,और मकान की किल्लत थी ! तो छुपते छुपाते चले आये हैं! और आप भाईसाब?" दूसरे ने तीसरे से पूछा!

"भैया मैं तो गुजरात से आया हूँ! रोजगार-धंधे सब बंद हो गये, हुवा अब करते भी का! सो पकड़ी अपनी साइकिल और चले आये!"

तीनो की बाते सुनकर चौथा व्यक्ति हैरान था बोला "आप लोग इतनी दूर से पैदल, तो कोई साइकिल में तो कोई भूखे प्यासे छुपते छुपाते आ गया?"

"हाँ भैया तुम कहाँ से आये हो!"उन तीनों में से एक किसी ने पूछा!

"मैं... मैं तो भैया यहीं से हूँ! यहाँ चौराहे पर भीख मांगा करता था! अभी भीख देने वाला ही कोई नही रहता था! फिर एक दिन किसी से सुना कि कुंठाइनन में सब मिलता है ! तो बस एक दिन थाने जाकर कह दिया कि बम्बई से आया हूं! तो इन लोगो ने कुंठाइनन कर लिया! बस दो टाइम का खाना मिल जाता है और क्या चाहिए भला! लेकिन अब एक मुश्किल आ गयी है!"

कैसी मुश्किल? 

"भैया मेरे कुंठाइनन के दिन पूरे होने वाले है!" ये कहते वक़्त भिखारी थोड़ा मायूस हो गया!और क्षण भर में ही एक मासूम मुस्कान के साथ बोला!

"ए भइया हम तो चाहते है कि हमको जीवन भर ही कुंठाइनन रख ले!"


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