हैप्पी दीवाली!!
हैप्पी दीवाली!!
सत्रह वर्षीय गिन्नी के लिए दीवाली का दिन, पूरे साल भर का सबसे पसंदीदा दिन होता है! पर इस दीवाली माँ से उसकी कुछ शिकायतें थी! कहती है- "माँ हर साल मैं दीवाली में तरह-तरह की चीजों से पूरे घर को सजाया करती थी! पूरे घर भर के लिए मैं बाजार से कपड़े खरीद कर लाती थी! मोहल्ले भर में मिठाइयां बाँटती थी, पर इस साल तो मिठाइयां घर को ही पूरी हो जाये वही बहुत! इस साल मुझे पैसे क्यों नहीं दिए माँ?
माँ जवाब देती है- "तुझे समझ भी है गिन्नी, तेरे दोनों भाई स्कूल और कोचिंग में पढ़ा कर घर चलाते हैं! पिछले नौ महीने से दोनों बेरोजगार हैं! पिता की छोटी सी दुकान से ये कहो कि भूखों मरने की नौबत नहीं आयी! इसलिये ये सब बातें छोड़ो और भीतर जाकर अपनी भाभियों का हाथ बंटाओ पूजा में!
पर घर की लाडली तुनक गयी! गुस्से से बाहर आकर बालकनी में खड़ी हो गयी! जहाँ उसे सामने रहने वाले माथुर अंकल दिख गए! माथुर अंकल मुड़ कर वापस घर के भीतर जाने ही लगे थे कि गिन्नी की आवाज उनके कानों तक पहुची- "माथुर अंकल हैप्पी दी... "पर इससे पहले की गिन्नी दीवाली पूरा कह पाती उसे याद आया कि अभी दो महीने पहले ही माथुर अंकल के तीस साल के इकलौते बेटे की जान कोरोना की वजह से चली गयी! माथुर अंकल अपना सर उठाकर एक नजर गिन्नी की ओर देखते है! मायूसी भरा चेहरा जरा और मायूस हो जाता है! और बिना जवाब दिए ही भीतर चले जातें हैं! गिन्नी मन भीतर खुद को कोसती है कि मैं भी कैसी पागल हूँ! मां भी ठीक ही कहती है-
की माना इस साल चीज़ें थोड़ी कम है!
पर उनका क्या जिनका कोई अपना कम है!!
कोरोना की वजह से असमय कालगर्भित व्यक्तियों को श्रद्धांजलि!
समस्त कोरोना योद्धाओं को नमन!
Happy Diwali...