अर्थी
अर्थी
राम नाम सत्य है!
राम नाम सत्य है!
इस अटल सत्य को दोहराते लोगो का हुजूम आगे बढ़ा चला आ रहा था! लाश के ऊपर कफन थी और लाश एक बड़े पारदर्शी कांच के बक्शे में बंद! लाश चार कंधो पर नही बल्कि चार पहियों पर थी! लाश किसी महिला की थी या पुरुष की ये तो दूर से जान नही पड़ता था! पर जो भी था मरा कोई रसूखदार ही था! जहाँ तक नजर जाती उस मरे व्यक्ति के शुभचिंतक ही नजर आते थे! और जो सुनाई दे रहा था वो था बस "राम नाम सत्य है" और जो दिखाई पड़ रहा था वो था सड़क पर लाश के आगे सिक्के और मखाने बिछाने का चलन!
देखते ही देखते हुजूम आगे बढ़ चला, छोड़ गया था तो बस एक 13-14 साल का लड़का! जिसके कपड़े इतने मैले थे कि वह उस लाश के शुभचिंतको में से तो एक नहीं लग रहा था! उसे देख कर पल में ही समझ आ चला था कि ये कोई भीख मांगने वाला हैं!
"ऐ रघु ये देख!" लड़का अपने पैंट की फूली जेब को रघु के हाथों से दबाकर बोला!
"आइला इतने सिक्के?" किधर से मिले रे राजू?" रघु बोला!
राजू:- "बस क्या उधर वो लाश गुजरी तेरे को दिखी नही क्या रे! इतने सिक्के फेके उन लोगो ने उस लाश पर ?"
रघु:- "नहीं अपुन ने सोचा उस लाश में क्या मिलने को होगा!"
राजू:- "अरे बाप अपुन तो मालामाल हो गया! अब आज भीख मांगने की जरूरत नही अपने को! सेठ को बोलके अपुन आज की छुट्टी मरेगा भीख मांगने से!"
रघु:- "वो हलकट देंगा क्या छुट्टी?"
राजू:- "काई कु नई देगा रे पूरा दो जेब सिक्का देगा अपुन उसको!"
रघु:- "अच्छा पर अपने को तो दस रुपये भी नही मिले रे, सेठ बहुत मारेंगा अपुन को!"
राजू:- "तू एक काम कर, उसी लाश के पीछे जा! अभी ज्यादा दूर नही गये होंगे वो लोग! अभी भी बहुत सिक्कें फेक रहे रे वो लोग!"
रघु:- "हाँ तू रुक अपुन भी माल लेके आता है!"
राजू:- "हाँ ठीक है, ए ठेले वाले एक बीड़ी पिला रे!"
राजू बीड़ी के कश लेने लगा और रघु का इंतजार करने लगा! रघु भी कुछ ही देर बाद आ ही चला था! उसे देखते ही राजू बोला-
"क्यों रघु हो गया न तू भी मालामाल?"
"काहे का मालामाल ! राजू खीझते हुए बोला- कैसी कंगली मय्यत थी एक सिक्का भी नही फेका! कुल छः लोग थे! चार कंधे पकड़े थे, एक लाश के आगे चल रहा था और एक खुद लाश! कफन भी ऐसी लग रही थी जैसे किसे से दुबारा मांगी हो!"
राजू:- "ओह्ह तब तो तू किसी गरीब मरने वाले के मय्यत पर चला गया था! खैर कोई नही चल तुझे चाय पिलाता हूँ!"