मैड मैन
मैड मैन
इंदौर के अम्बेडकर नगर की सर्द सुबह !
सड़क पर आवाजाही कम है ! बीच-बीच मे दो-एक बाइक निकल जाती है ! सेल्स की नौकरी में यूँ तो न सुबह होती है न रात पर हर सुबह की तरह अपनी नौकरी को अपने मन भीतर कोसते मैं सड़क पर पैदल चला आ रहा था ! सोच ही रह था कि एक दिन ये झल्लाहट कहीं पागल न कर दे, तभी सड़क का वो पागल दिख गया जो सड़क पर नग्नावस्था में बैठा सफेद चौक से पूरी सड़क पर लिखता था !
"आज तो पढ़ता हूँ ये पागल आखिर लिखता क्या है !"
मन के भीतर के संवाद में मैंने मन को ही आदेशित किया !
उसके पास जाकर देखा तो सड़क पर करीब 10 मीटर की लंबाई-चौड़ाई पर उसने जैसे जीव-विज्ञान की कोई किताब छाप दी थी। लिखावट एकदम स्पष्ठ और सुंदर। अंग्रेजी व्याकरण का ज्ञान तो मुझे भी न था। हाथ में एक चाक का डिब्बा बस यही उसका पहनावा था। उसकी लिखावट देखकर वहाँ हर कोई हैरान था। मैंने कई पागल देखे थे तरह तरह के, पत्थर मारने वाले, गाली देने वाले, कचरा खाने वाले ! पर ये पागल जो सिर्फ अंग्रेजी लिखता था पहली बार देखा था !
"ये कैसा पागल है ?" पास ही खड़े एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से पूछा। वो उस पागल की ओर देखता रहा, एक लंबी साँस छोड़ी और बोला-
पागल नहीं मेरा बेटा है ! हम दोनों ने एक दूसरे को तरफ देखा। मैंने उससे जैसे बिना शब्दों के अपने कहे के लिए माफी माँगी ! उसने आगे कहा-
हमने इसकी पूरी शिक्षा अमेरिका से करवाई है, जो जीवन मैं न जी पाया इससे उम्मीद की थी। उम्मीद क्या मेरी अति महत्वाकांक्षाओं का ये प्रतिफल है। इसकी माँ और मैंने हमेशा इसे किताबों से ही बाँधे रखा। पढ़ाई में औसत होने के बावजूद भी बेटे को अमरीकी डॉक्टरी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए दबाव बनाते रहे। दो बार असफल होने के बावजूद और इसकी स्वयं की इच्छा न होते हुए भी हम इस पर लगातार दबाव बनाते रहे। मेरे बेटे ने दिन-रात एक कर एक दिन सफलता तो पाई पर जैसे ही इसे अपने सफलता की खबर मिली उस दिन से ये ऐसा हो गया।
दुनिया के सारे डॉक्टर, वैद्य दिखा लिए पर अब समझ चुका हूँ कि शायद बेटा खो चुका हूँ। बस कभी-कभार इसे देखने आ जाता हूँ ये चॉक का डिब्बा लेकर।।
