अगर गंगा और सरस्वती की मुलाकात होती
अगर गंगा और सरस्वती की मुलाकात होती
साड़ी पर जगह जगह मांस के लोथड़े से लटके हुए थे ;सिर से बाल कम प्लास्टिक की थैलियां ज्यादा झाँक रही थी ,हाथों पर झाग जैसा कुछ सफ़ेद -सफ़ेद लगा हुआ था ,पैर कोलतार से काले थे। वह तेजी से दौड़ती जा रही थी। अचानक वह किसी से टकराई।जिससे टकराई वह एक उजली सी साडी पहने थी और उसके मुँह से तेज़ टपक रहा था।
"गंगा तुम ,ये क्या हालत बना रखी है। तुम तो बड़ी ही स्वच्छ और निर्मल थी। ",सरस्वती ने दुखी होते हुए पूछा।
"बहिन सरस्वती तुम बिलकुल सही समय पर धरती माता के गर्भ में समा गयी। नहीं तो यह मानव तुम्हारी हालत भी मेरी जैसी ही कर देता। मैं तो खुद धरती माता के पास जा रही हूँ। उनसे कहूँगी मुझे भी तुम्हारी तरह अपने गर्भ में समा ले। यह दुष्ट मानव उनके स्नेह के लायक ही नहीं है। " गंगा ने आवेश में कहा।
"लेकिन बहन ,मानव तो तुम्हे माता के समान सम्मान देता है। तुम्हारी पूजा और आराधना करता है। फिर तुम्हारी यह दशा कैसे हो गयी ?" सरस्वती ने समानुभूति पूर्वक कहा।
"यही तो इसका पाखंड है। यह मानव तो अपनी नारियों को भी देवी कहता है ,9 दिन तक उनकी पूजा करता है। फिर इसी देवी को या तो जनम लेने से पहले ही गर्भ में मार देता है। उनके शरीर को नोंच डालता है ;उन्हें जलाकर मारने से भी बाज नहीं आता है। धरती माता के सभी बच्चे पेड़ ,पौधे ,पशु,पक्षी ,नदी ,पर्वत,कीट आदि सहअस्तित्व की संकल्पना को साक्षात साकार करते हैं। लेकिन यह मानव अपने आपको सर्वश्रेष्ठ मानते हुए सब पर यहाँ तक कि धरती माता पर भी शासन करना चाहता है। "गंगा ने सरस्वती को बताया।
"चलो ,साथ ही धरती माता के पास चलते हैं। " सरस्वती ने गंगा से कहा।
गंगा की दुर्दशा देखकर धरती माता द्रवित हुई। धरती को मानव पर अत्यंत क्रोध आया। " यह मानव अपने दम्भ में यह भी भूल गया कि सहअस्तित्व की संकल्पना को न मानने के कारण जब डायनासोर जैसे विशाल जीव विलुप्त हो गया तो यह मानव क्या चीज़ है ?"धरती ने क्रोधित होते हुए कहा।
"लेकिन मैं एक माँ भी हूँ। तो पहले मैं अपने इस बुद्धिहीन बच्चे को समझाऊंगी ;चेतावनी दूँगी। अगर फिर भी इसने अपने आप में बदलाव नहीं किया तो अपने विनाश का कारण वह स्वयं होगा। "धरती ने कहा।
