अगले जन्म इन्हें मोची ही कीजो
अगले जन्म इन्हें मोची ही कीजो


बिदेशी गाँव का मोची दर्द से कराह रहा था, हर साल जमींदार को दो जोड़ी जूते का भेट चढाता था सावन लगते ही बारिश के जूते लेकर मालिक के घर जाना था,तेज बारिश और जाने की हड़बड़ी में वह जूता रखना भूल गया। हवेली में पहुँचने के बाद उसने अपने खाली हाथ देखे तो उसे ध्यान आया कि वह जमींदार का नजराना लाना भूल गया है, सोचा वापस जाकर उनका जूता लाये खाली हाथ मालिक के पास जाने का परिणाम वह अच्छी तरह जानता था फिर उसके मन ने कहा भादों कि झमाझम बारिश जमींदार से माफी मांग लेना, कहाँ आठ मील पैदल वापस जाएगा ?
विदेशी ने मन की बात सुनी और हाथ जोड़कर मालिक के चौखट पर खड़ा हो गया काँपते हुये बोला "मालिक आज आशीर्वाद लेने आया हूँ, नजराना आपसे मिलने की खुशी में लाना ही भूल गया कल भोर आपकी चौखट पर उसके साथ फिर हाजिर हो जाऊँगा।" जमींदार के चेहरे के भाव बिदेशी पढ़ लिया था हाथ जोड़कर काँपते हुए खड़ा था कि जमींदार ने पाँव के पास रखे जूते उसकी ओर फेंक दिया एक उसके दायें हाथ मे तो दूसरा पीठ के किनारे लगा,जमींदार ने कड़क आवाज में कहा "हम मरे मवेशी देकर तेरी रोजी रोटी चला रहे हैं और तू हमारा ही नज़राना लाना भूल गया।" बेईज्ज़ती और मार से बचने के लिए हाथ जोडकर घुटने के बल बैठकर याचना करते हुवे बोला "माई-बाप आप तो हमारे देवता है आपको हम कैसे भूल सकते हैं पहिली और आखिरी बार है हुजूर , अब बिना नजराने के आने की बात सोचेंगे भी नही!"जमींदार का अहम और गुस्सा दोनो चरम में था उसने बिदेशी से जूते अपने सर में उठाकर पैर के पास रखने कहा, यह क्रम पूरा कर बिदेशी चौखट तक पहुँच ही पाया था कि फिर जूता उसके हाथ और पीठ पर लगा यह क्रम तब तक चलता रहा जब तक उसका पीठ और हाथ लहूलुहान हो गया।अधमरे बिदेशी को सब धुँधला दिखाई देने लगा "माफी हुजूर माफी की आवाज एकदम धीमी हो गई तो जमींदार के दो नौकर उसे चौखट के बाहर छोड़ आये।"अचेत बिदेशी बुदबुदा रहा था अगले जन्म मालिक को मोची ही कीजो भगवान।