अदिति …
अदिति …
अदिति …सिटी न्यूज़ चैनल पर बताया जा रहा था, राष्ट्रीय बैडमिंटन विजेता राघवन दो दिन के लिए हमारे शहर में आए हुए हैं। वे, यहाँ उभर रहे जूनियर प्लेयर्स के बीच कोचिंग में अपने अनुभव एवं बैडमिंटन खेल की टिप्स शेयर करेंगे। स्क्रीन पर दिखाई जा रही राघवन की हँसती हुई तस्वीर को देख कर, मुझे अपने भीतर कुछ होता हुआ सा लग रहा था।
इसके बाद जब न्यूज़ एंकर दूसरे समाचार सुनाने लगा तो मैंने टीवी बंद कर दिया था।
मैं जाकर अपने बिस्तर पर लेट गई थी। मैं आँख मींचे हुई थी मगर मेरे मनो-मस्तिष्क पटल पर तीन वर्ष पूर्व जब मैं षोडशी थी, तब के दृश्य उभर आए थे। उस साल मैं चंडीगढ़ में आयोजित किए गए राष्ट्रीय खेलों में बॉक्सिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेने गई थी।
उस सुबह वहाँ, मैं बॉक्सिंग की प्रैक्टिस के बाद लौटते हुए बाजू के कोर्ट में चल रहा बैंडमिंटन देखने चली गई थी। उस समय वहाँ एक प्रैक्टिस मैच चल रहा था। एकल मैच में खेल रहा एक लड़का जो शायद मुझसे 2 वर्ष बड़ा था, मुझे अच्छा लगा था। वह बहुत अच्छा खेल रहा था। मैं उसके खेल को कम, उसके हाव भाव पर अधिक रीझ कर, मुग्ध सी होकर उसे देख रही थी। अंत में वह मैच जीतने के बाद अपनी किट समेट रहा था। वहाँ मेरे परिचित कोई नहीं थे, इससे मुझमें यह साहस आ गया था कि मैं उसके पास जाकर कह रही थी - हैलो प्लेयर, मैं अदिति हूँ। अभी मैंने देखा, आप बहुत अच्छा बैंडमिंटन खेलते हैं।
उसने हँसते हुए अपना हाथ बढ़ाया था। मैंने उससे हाथ मिलाने में संकोच नहीं किया था। मेरे हाथ थामे हुए ही उसने बताया था - "मेरा नाम राघवन है।"
मैंने आकर्षक मुस्कान सहित कहा - मैं" यहाँ बॉक्सिंग में हिस्सा लेने आई हूँ।"
हममें इतनी बात हुई थी तब उसके पार्टनर्स वहाँ आ गए थे। वह हँसकर मुझे बाय करते हुए, उनके साथ चला गया था।
अगली सुबह की ऐसी ही मुलाकात में हम दोनों ने, अपने अपने मोबाइल नं. एक दूसरे को दिए थे। फिर राघवन का राउंड वन का मैच हुआ था। मैंने पूरे समय कोर्ट में रहकर मैच देखा था। वह जीता तो मैं दौड़कर उसके पास गई एवं हाथ मिलाकर उसे बधाई दी थी। राघवन बहुत खुश दिखाई दे रहा था। मुझे पता नहीं वह मैच जीतने से या मेरे बधाई देने से इतना खुश था।
फिर उसी दोपहर मेरा पहले राउंड का मैच हुआ। मैं हार गई थी। रिंग से बाहर निकलते हुए मैंने देखा, राघवन भी वहाँ था। मुझे हारने से अधिक इस बात से दुःख हुआ कि राघवन मैच देख रहा था, उसके सामने मैं हारकर बाहर आई थी।
मेरी पलकें भीगी हुई थीं। मैंने जानबूझकर राघवन की तरफ फिर नहीं देखा था। सिर झुकाकर मैंने अपनी किट समेटी थी और होटल लौट आई थी। रूम में, मैं जिस लड़की के साथ रुकी हुई थी, उसका बॉस्केटबाल मैच शाम को था। वह स्टेडियम गई हुई थी। मैं घर लौटने की पैकिंग कर रही थी। तब डोर बेल बजी थी। मैंने दरवाजा खोला तो सामने राघवन था। मैंने उसे आने की जगह दी तो वह कमरे में आ गया था। उसके पीछे मैंने दरवाजे बंद किए थे।
मेरा सूटकेस खुला देखकर राघवन ने पूछा - "अदिति, आप आज ही लौट रही हो?"
मेरे स्वर में निराशा थी जब मैंने कहा - "अब रुकने का कारण नहीं है।"
राघवन ने एकाएक मुझे अपने आलिंगन में लिया था। मेरी पीठ पर हाथ से थपथपाते हुए कहा - कोई नहीं अदिति, गेम में हार जीत होती है। हार जाने और जीत जाने के दोनों समय बीत जाते हैं। इनसे मिलता-खोता कुछ स्थाई नहीं होता है। आगे भी जीतने हारने के क्रम चलते हैं। आज की हार जीत तब पुरानी हो जाती है। आज आप हारी हो, आगे अवश्य जीतोगी भी, आप दुःख न करो।
उसके आलिंगन में मैं अपनी हार भूल गई थी। अब मैं चाह रही थी, कमरे में अकेलेपन का राघवन और उपयोग करे। आलिंगन में मुझे लिया ही है। मेरे साथ कुछ और करे। राघवन ने मर्यादा विरुद्ध कोई काम नहीं किया था। वह वास्तव में मेरे से सहनुभूति प्रकट करने ही आया था।
मैं चुप थी। तब राघवन ने कहा था - "अदिति, हम फिर मिलेंगे।"
मेरे होंठों पर फीकी सी मुस्कान थी। वह हँसते हुए गुड बाय कहकर जा रहा था।
मैं उसके जाने के बाद दरवाजा बंद करते हुए सोच रही थी। राघवन तुमने, आज अकेले का लाभ उठाकर मुझसे प्यार कर लिया होता तो बॉक्सिंग में हारकर भी मैं प्यार में जीत गई होती।
बाद में मैं लौट आई थी। तब से तीन वर्ष हुए थे। मैं अपने गेम में सुधार नहीं कर पाई थी। अतः फिर मुझे अच्छी प्रतियोगिताओं में भाग लेने के अवसर नहीं मिले थे। इन तीन वर्षों में राघवन कभी यह और कभी वह प्रतियोगिता में चैंपियन हुआ, यह समाचार मैं सुनती थी। हर ऐसे समाचार पर सर्द श्वांस लेते हुए सोचती राघवन, तुम अच्छे हो मगर तुम मेरे लिए नहीं बने हो।
हमने मोबाइल नं. लिए थे मगर कभी कॉल करके आपस में कोई बात नहीं की थी। आज उसके शहर में होने पर भी उससे मिलने में मुझे संकोच लग रहा था।
बिस्तर पर इतना सब याद करते हुए मेरी पलकें भीग गईं थी। तब मुझे टॉयलेट जाने की इच्छा हुई थी। कल फ्रेंड के भैया के विवाह के रिसेप्शन में शायद मंचूरियन अधिक खाने से मेरा डायजेशन बिगड़ा हुआ था।
रात पढ़ने की टेबल पर बैठकर भी मैं मन एकाग्रचित्त नहीं कर पाई थी। कारण, राघवन की याद और मेरी अस्वस्थता भी थी।
अगली दोपहर मैं कॉलेज में थी तब अननोन नं. जिसे ट्रू कॉलर, राघवन बता रहा से, इनकमिंग कॉल आया। राघवन के नाम के कारण, तेज हुई हृदय की धड़कनों में मैंने कॉल लिया। यह राघवन ही था। शायद उसने दूसरी सिम से कॉल किया था। उसने कहा - अदिति क्या आप भूल गई मुझे, मैं राघवन।
मैंने कहा - "राघवन, आपको कैसे कोई भूल सकता है, आप की जीत समाचारों में इतनी चर्चा पाती है। कोई भूलना चाहे तो भी आपको भुला नहीं सकता।"
राघवन ने कहा - मेरी वापसी की फ्लाइट आज देर रात की है। अगर आप मेरे लिए समय निकाल सको तो मेरे होटल रूम में, शाम 5 बजे हम साथ कॉफी ले सकते हैं।
मैं राघवन से मिलना चाहते हुए भी ऐसी अस्वस्थता में मिलना नहीं चाहती थी। मैं सोच रही थी आज नहीं मिली तो फिर कभी शायद ही राघवन से मिल पाऊंगी।
मुझे चुप रहता अनुभव कर, राघवन ने कहा - आप कहीं बिजी हैं तो कोई बात नहीं।
यह सुन मैं हड़बड़ा गई कि राघवन मेरे चुप रह जाने को मेरी मनाही न समझ ले। उतावली में मैंने कहा - नहीं नहीं राघवन, मैं आ रही हूँ। मुझे होटल और रूम नं. टेक्स्ट कर दो।
मैंने तय समय पर पहुँच कर, राघवन के रूम की डोर बेल बटन प्रेस की थी। राघवन ने दरवाजा खोला था। मुझे देखकर वह खुश हुआ था। मेरे पीछे उसने दरवाजा बंद कर दिया था।
मुझे सोफे पर बैठाने के बाद वह रूम सर्विस के लिए, फोन करके कॉफी एवं स्नैक्स के लिए कह रहा था। तब मेरे पेट में उठ रही गुड़गुड़ की आवाज से मैं परेशान हो रही थी।
आर्डर कर देने के बाद राघवन पास आया था। सोफे पर मेरे सामने न बैठकर वह जब मेरे साथ आ बैठा तो मुझे असुविधा लग रही थी।
किसी और समय मुझे उसका ऐसे साथ बैठना बहुत अच्छा लगता मगर आज मैं चाह रही थी कि वह सामने के सोफे पर बैठे। उसे अपने करीब आने से, जब मैं रोक नहीं पाई तो मैंने वॉशरूम जाने के बहाना लिया था। वॉशरूम में भी अकारण मैंने अधिक समय लिया था। जब मैं बाहर आई तो रूम सर्विस से कॉफी एवं स्नैक्स आ गए थे। राघवन जहाँ बैठा था मैं उसके सामने तरफ के सोफे पर जा बैठी थी। वह कप में कॉफी उड़ेलते हुए कह रहा था - "अदिति, आप पहले से अधिक सुंदर हो गई हो।"
मैंने कहा - "आप भी लड़के से अब नौजवान हो गए हो।"
फिर राघवन अपनी विभिन्न प्रतियोगिताओं में जीतों के विषय में बताने लगा था। मैं स्नैक्स लेने से परहेज करते हुए सिर्फ कॉफी पी रही थी। साथ ही उसके बताए जा रहे किस्सों पर खुशी प्रकट कर रही थी।
कॉफी पी चुकने पर राघवन उठा था। अचानक उसने मुझे आलिंगन में ले लिया था। पिछली बार के मर्यादित आलिंगन से भिन्न, इस बार राघवन हरकत कर रहा था। उसके सीने का दबाव मुझे अपने वक्षों पर लग रहा था। फिर जैसे ही उसने अपने होंठ मेरे अधरों के तरफ बढ़ाए, मेरे पेट में गुड़गुड़ हुई थी। अपनी ऐसी अवस्था में राघवन को इतने पास नहीं होने देना चाहती थी। अनायास ही एक बॉक्सर की तरह मेरे हाथ का एक पंच, राघवन के मेरे तरफ बढ़ते चेहरे पर पड़ गया था।
इससे उसकी बाँहें मेरे इर्द गिर्द से हट गई थी। वह मुझसे दूर हुआ, मैं भी दो कदम पीछे हटी थी।
राघवन कह रहा था - "सॉरी, अदिति मुझे नहीं पता था, तुम पसंद नहीं करोगी।"
मेरी आँखें छलक आईं थीं। मैं अपनी अस्वस्थता का बताना नहीं चाह रही थी।
मैंने कहा - "राघवन, मुझे आप पसंद हो मगर मैं आज इसके लिए तैयार नहीं थी। सॉरी, वैरी वैरी सॉरी।"
राघवन अपना गाल सहला रहा था। मैंने अपने आँसू पोंछे थे। फिर अपने को संयत कर कमरे से बाहर यूँ निकली थी। जैसे कुछ हुआ न हो। स्कूटी से अपने घर के रास्ते में मैं इसे दुर्भाग्य मान रही थी कि तीन वर्ष बाद राघवन के मिलने पर मैं ऐसी अस्वस्थ थी।
मेरा दूसरा मन कह रहा था, सफलता के साथ राघवन बदला लग रहा था। उसके व्यवहार एवं आलिंगन में पूर्व वाली वह बात नहीं थी जिसने उस समय मेरी आगे की इच्छा के होते हुए भी मेरी गरिमा बनाई रखी थी। मैं तब भी और अब भी राघवन से मरते दम तक प्यार करना चाहती थी।
घर पहुँचते तक मैं दूसरी तरह से सोचने लगी थी। अब मुझे लग रहा था कि तब का राघवन, मुझे प्यार करने वाला था। आज का राघवन, प्यार करने वाला नहीं अपितु छेड़खानी करने वाला था। मुझे लग रहा था अब का विजेता राघवन अपनी फैन लड़कियों को अपनी वासना पूर्ति का साधन बनाता हो सकता है।
अगर ऐसा था तो आज मेरा अस्वस्थ रहना दुर्भाग्य नहीं भाग्य था। मुझे अपना तन मन उसे सौंपना था, जो मुझे आजीवन का साथ दे।
मैं कुछ दिन या कुछ रात की हमबिस्तर किसी की नहीं हो सकती थी। चाहे वह कोई विश्व विजेता ही क्यों न हो।

