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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Romance

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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Romance

अधूरी तमन्ना

अधूरी तमन्ना

4 mins
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रेलगाड़ी की पटरी से उठने वाली आवाज धीमी हो रही थी मुझे आभास हो गया कि कोई स्टेशन आने वाला है कुछ ही देर बाद "ले चाय गरम चाय, समोसे लो आदि कोलाहल से स्टेशन गूंजने लगा I मैंने घड़ी पर नजर दौड़ाया रात के एक बज चुके थे I मैं अनुमान लगाने लगा कि गाड़ी कितने देर बाद रायपुर पहुँच जाएगी दो घंटे का सफ़र और बाकी था खिड़की से बाहर झाँक कर देखा कि ये स्टेशन बिलासपुर तो नहीं अनुमान सही था गाड़ी यहां दस पंद्रह मिनट तो रुकेगा ही मैं ये सोच पानी का बाटल लेकर स्टेशन पर उतर गया I बाटल में पानी भरकर अपने बोगी में वापस सीट की और बढ़ा पर अपनी सीट पर समान के पास एक महिला बैठी मिली I

शायद खाली सीट देख बैठ गयी थी I मैं उसे देखते ही सोच में पड़ गया कि इस रात को ये अकेली कौन आ गयी महिला खिड़की से बाहर की ओर देख रही थी I पूरा सभी सीट खाली था फिर भी मेरे सीट पर देख

मैंने उसे कहा- "जी आपको कहां जाना है I "

अब वह महिला मेरे तरफ देखी चेहरे को देख मैं चौंक गया बेहद खूबसूरत पर आंख लालिमा शायद कुछ देर तक रोई थी I मेरे चौंकने का कारण था कि वह कोई और नहीं बल्कि तृप्ति थी जिसे मैं कालेज के दिनों में मन ही मन प्यार करता था I

तृप्ति मेरे ही क्लास में पढ़ती थी उसकी सुन्दरता और सादगी के कारण मैं उसे पसन्द करता था I क्लास में पढ़ाई में भी वह तेज थी I वह किसी शुक्ला खानदान की रईस लड़की थी I दिन कटते गये पर क्लास के साधारण बातचीत के अलावा मैंने कभी अपने प्यार का इजहार नहीं किया I वह भी मुझसे बात करती घण्टों कक्षा में बैठ दोस्तों के बीच जब नजर मिलती एक तूफान सा दिल में उठता वह भी छुप कर देखती पर नजर मिलते ही दूसरे तरफ देखने लगती I मैं उसके नजरों में छुपी प्यार को ढूँढता अनुमान लगाया करता I पर उसने भी कभी इजहार होने नहीं दी I

कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर हम दूर हो गए। एक साल बाद एक दोस्त ने बताया कि तृप्ति का शादी बिलासपुर में किसी लड़के के साथ हो गयी है I

तृप्ति ने जैसे ही मेरे तरफ देखी वह भी देखते रह गयी ।

-अरे तृप्ति तुम " इस वक्त तुम कहां जा रही हो I तुम्हारा तो ससुराल है न यहां मैंने एक ही साँस में कई सवाल दाग दिए I

-हाँ मेरा ससुराल यहीं है और मैं अपने घर जा रहीं हूं I

- तुम बताओ तुम कहां गए थे I तृप्ति ने पूछा

-- मैं, मैं यही जॉब के सिलसिले में सम्बलपुर गया थाI

पर तुम इतनी रात अकेली कैसेI मेरे चेहरे पर विस्मय के भाव थेI सब खैरियत तो है I पर उसने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया और पूछ बैठ I

-- तुमने शादी की

-- कहाँ तृप्ति "मुझसे शादी कौन करेगी "

--ऐसी क्या कमी है तुममेंI तृप्ति ने बात को आगे बढ़ाया

-- मुझमें क्या है तृप्ति, रुपया नहीं तो कुछ नहीं इस दुनिया में लोग भला और क्या देखते हैं I तू तो मेरे बारे में सब जानती है I ले देकर पढ़ाई कर पाया हूँ बस अब यहां से वहां भाग रहा हूं की कोई काम मिल जाए तो शादी कर लूं I मैंने एक गहरी साँस ली I

-- तुम सिर्फ अपने नजर से देखते हो राकेश I कभी दूसरे के नजर को भी देखा होता तो तुम आज ये ना कहते I ये कहते तृप्ति के आंखों में आंसू छलक आए I

मैं समझ नहीं पा रहा था कि तृप्ति किस नजर की बात कर रहीं थीं I आज जीवन में पहली बार तृप्ति से अपने सुख दुख की बात कर रहा था I वह भी बोले जा रहीं थीं I मैंने बात को आगे बढ़ाया

-- ऐसी बात नहीं है तृप्ति तुम गरीबी को समझ नहीं पाओगेI की आदमी अपनी गरीबी के कारण क्या क्या खोता हैI ये तुम्हारे वश की बात नहीं

- और अमीर सब हासिल कर लेते हैं, यही कहोगे ना राकेश तृप्ति ने बात को काटते हुए बीच में कहीI

पर ऐसा नहीं है "तुम जिस तरह गरीबी के समंदर में फंस कर तैरने की कोशिश कर रहे हो, अमीर अमीरी के समंदर में संघर्ष कर रहे हैंI" पर मन तो समान होता है न राकेशI अपना चाहा कभी नहीं मिलता है यहां I तृप्ति के शब्दों में दर्द झलक रहे थे I

-- ये क्या बोल रहीं हो तृप्ति मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूंI मैंने तृप्ति की नजरों में देखते हुए बोला I तुमको किस बात का दुख है, तृप्ति ! शादी हो चुका है, सुना है साहब भी करोड़ों के मालिक हैं I तुम्हें तो खुश होना चाहिए I

-- ये तुम्हारी सोच है राकेश रुपया ही जीवन में सब कुछ नहीं है I खास कर जब इंसान जो ख्वाब देखता है और वह न मिले या कर ना पाए तो जीने का अर्थ क्या रह जाता है I


क्रमशः आगे के अंक में


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