प्रेम प्रतिक्षा
प्रेम प्रतिक्षा
राम रात भर करवटें बदलता रहा उसे समझ नहीं आ रहा था, कि जिसे वह जान से ज्यादा चाहता था उसके बारे में वह इतनी बड़ी भूल कैसे कर सकता है I वह बार बार अपने अतीत को झांकता की भूल कहाँ हो गयी I उसे आज समझ नहीं आ रहा था की जिसको वह बेवफ़ा समझ कर हमेशा अपने दिल जलाता रहा वह खयाल तो सब झूठा निकला, उसके आँखों में बीते जमाने के प्यार के बहार झूमने लगे, कैसे प्यार का परवान चढ़ा, कैसे उसके नीली झील सी आँखों को उसने अपने आंखों के रास्ते दिल में घर करने दिया I एक दिन पहले ही की तो बात है उसने सुना कि ऋतु बहुत बीमार है, तब वह सोच रहा था, अच्छा ही तो है बेवफ़ाई का परिणाम तो यही होगा I
पर आज रामू के पैरों तले जमीन खिसक गया था, जब रमेश जो उसके बचपन का दोस्त जो उसके प्यार के दिनों का हर राज जानता था, आकर बताया और कहा कि ऋतु ने तुम्हें अंतिम सलाम भेज अलविदा कहा है I और अनुरोध किया है की हो सके तो इस जीवन में माफ कर देना I
मानव मन में तो भावनाओं का समंदर होता है जिसमें जज्बातों की लहरों की हिलोरें प्रायः इस तरह के मार्मिक पलों में दिल की गहराई तक जान को भिगो जाती है I आज रामू के साथ भी वहीं हो रहा था I जिस तरह सागर के लहरों का किनारे पर आकर भिगो जाना हर बार अलग अलग दूरी तक होता है, कभी दूर खड़े होने पर भी लहरें पैरों को छू जाते हैं उसी तरह मन तरंग रामू के मन से उछलकर आंखों से होकर बह रहे थे I काश वो समय फिर वापस आ जाता I ऋतु उस दिन जब मिल कर बताई की उसके घर वाले उसकी शादी करने वाले हैं और वह उनको मना नहीं कर सकती अतः रामू खुद कोई उपाय करे हो सके तो उनके घर वालों से आकर बात करे और बोली कि शायद ही वे मान पाएं क्योंकि उनके घर वाले जाति के प्रति दृढ़ निष्ठा वाले है और इससे समाज के द्वारा बहिष्कृत होने का उन्हें डर था I
बस इस बात को सुन रामू का तेवर ऐसे बदला जैसे ऋतु का मन ही में खोट है जो उसके घर वालों के बारे में बोल कर उससे दूर होना चाहती है I ऋतु बड़े घराने की कुलीन उच्च जाति से संबंध रखती थी I और उसके पिता एक अच्छे घराने में उसकी शादी की बात चला रहे थे I फिर वो दिन भी आया जब लड़के वाले उसे देखने आये I और रमेश ने बताया कि ऋतु का शादी फिक्स हो गया I
हाँ तब से रामू के मन में जहर भर गया, वह जब भी ऋतु का जिक्र होता साँप की तरह फुफकार मारता आदमी अक्सर जो सोचता है बस उसे ही सच समझता है I उसे सच्चाई नहीं दिखता I जिस तरह गर्म रेत में पेड़ों की परछाई नजर आने से पानी का बोध होता है I रामू के मन में वहीं भावना घर कर गया I की ऋतु का तर्क उसके खुद का है I उसकी फ़ितरत ही है, बड़े घर की जो है जब तक बना उसके साथ मौज की अब दूसरे के साथ शादी कर रही है I
समय बीता रामू अब उसके बारे में कुछ सुनने को कभी तैयार न हुआ I कई वर्ष बीत गए रामू शादी कर दूर नौकरी करने चला गया I उसके बच्चे हुए, उसकी पत्नी भी लंबी बीमारी के बाद चल बसी, फिर रिटायर मेंट हुआ I वह फिर वापस अपना पुराना घर आया, I बच्चे वही नौकरी कर रहे थे I कोई भी रामू का ध्यान न देता I बेचारा घर वापस आने में ही भलाई समझा कम से कम गाँव का मिट्टी तो अंतिम साथ देगी I
गाँव आकर उसके पुरानी यादें ताजी हो गयी एक दिन रमेश से पूछ बैठा यार आजकल ऋतु कैसी है I कितने बाल-बच्चे है I हाँ रमेश तूने कौन सा गांव बताया था उसके ससुराल वालों का I
रमेश बोल पड़ा- क्या आज तुम पूछ रहे हो I इतने दिनों तक तो उसके नाम से भी चिढ़ जाता था I तूने उसे पहचानने में भूल किया रामू, ऋतु ने शादी की ही नहीं साफ मना कर दी कि वह एक गम्भीर बीमारी से ग्रसित हैं और वह शादी नहीं करेगी I
पर तुम ने क्या किया एक बार भी पलट कर पीछे नहीं देखा, शादी किया I जीवन जीया I प्यार का डींगे मारता फिरता I
आज देखो सच तुम्हें प्यार का बादशाह बना देगा I
रामू निरुत्तर हो गया वह रोता रहा कि उसे समझने में ऋतु ने भूल की क्योंकि बेवफ़ा वो नहीं बेवफ़ा रामू खुद थाI