GOPAL RAM DANSENA

Abstract Inspirational

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GOPAL RAM DANSENA

Abstract Inspirational

मेरे सपने

मेरे सपने

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 नदी के किनारे किनारे बिछा स्वेत बालू पर चल रहा था I माघ का महीना था I सूर्य नारायण आसमान में विराजमान थे उनकी किरणें शरीर को सुकून दे रहा था I नदी का पानी मद्धिम प्रवाहित हो रही थी, I कभी कभी भँवर बन लहरों के बीच खलबली मच जाती और इस भंवर में छोटी छोटी मछलियां ऊँची छलांग लगा पानी के उपर हवा में आ जाते और सूर्य के किरणों से चांदी की तरह चमक लिए एक पल में ही पानी में समा जाते I

मैं जहाँ भंवर बन रहा था वहां बालू पर बैठ गया बालू की ठंडक और नदी के पानी का कल कल मधुर आनन्द दे रहा था I शांत वातावरण ठण्डी हवा नदी किनारे पेड़ों की घनी छाया मैं आंख बंद कर प्रकृति के साथ उसके प्यार में खोता गया और अनुभव करने लगा अपनी हर दिन के भागदौड़ की जिंदगी को I ऐसा लग रहा था मानो हम अपना सब कुछ खो कर जीवन भर भौतिकता के पीछे पीछे भाग रहे हैं जिसके पाने पर तृष्णा और ही बढ़ती जाती है I

कभी घर का सोच बिल्डिंग में बदल रहा है फिर उनके उपर कई मंजिलें मुझे ख्वाब की शहर मुंबई की ऊंची अट्टालिकाओं का याद ताजा हो गया I जहाँ मैं उनको देख कर अपने आप को और अपने रहन सहन, कपड़े, रुपये पैसे सब बौना प्रतीत हो रहा था I और उस भीड़ भरे सड़क पर धूल खाता, एक पाव भाजी खाने के लिए भी रुपये का आकलन कर कुछ खाने का विचार त्याग रहा था, और अपने आप को धन्य समझ अपने जीवन को मुंबई देख लेने का खिताब दे रहा था I और आज यहां भी अपने आप को धन्य समझ रहा था I कोई हीन भावना नहीं जो मिल रहा था वह ईश्वर का प्यार था जो मुझे गौरवांवित कर रहा था कोई ग्लानि नहीं कोई तृष्णा नहीं, प्रकृति यहां मुझे अपने मृदुल स्पर्श और प्यार से सहला रहीं थी I काश अपना जीवन इसी तरह कट जाए , प्रकृति सलामत रहे, हर जीव और जीवन अपने पूर्व अवस्था में आ जाए ताकि इस भौतिकता के कारण प्रकृति का विनाश कम किया जा सके I


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