अच्छाई
अच्छाई


मृणाल और उनके पति कुछ दिन पहले ही अपने पोते की देखरेख के लिए यहां आए हैं।बेटा-बहु ट्रान्सफर के कारण दूसरे शहर चले गये हैं।नई जगह आये हैं, किसी से जान-पहचान नहीं है।मेरा घर बगल में होने की वजह से दिन में एक दो बार कुछ बातचीत हो जाती है।
कल मुलाकात के दौरान बताने लगी कि कुछ खरीदारी करनी थी, इसलिए यहां से कुछ किलोमीटर दूर सुना था कि बहुत अच्छी मंडी है, वहां अनाज, साग -सब्जी ,फल मिल जाते हैं,तो सोचा जाकर देखते हैं।"
"हमसे कहा होता,दूबे जी भी कर वहीं ग्रे थे,ले आते,आप ने नाहक दौड़ लगा दी।"
"जी , यह जीवन का संध्याकाल है,दौड़ भाग हो नहीं पाती, मगर आवश्यकता का सामान जुटाने के लिए जाना जरूरी था। अब सुनिए वहां कल क्या हुआ। यह बताने के लिए काफी उत्सुक लग रही थी।अपना कल का अनुभव सुनाते हुए बेहद खुशी से बताने लगी बोली,"
सबसे पहले हमने अनाज लिया।फिर फल व अन्य सामान और फिर सब्जी मंडी आ गए। ताज़ी सब्ज़ियां देखकर दिल अत्यंत खुश हो गया। तरह-तरह की सब्ज़ियों से हमने थैले भर लिए।ज्यादा हिसाब- किताब, जोड़ -घटाना नहीं, दुकानदार से पूछ लेते, कितना पैसा हुआ,भाई जितना वह कहते, पकड़ाते और आगे बढ़ जाते।"
"ऐसा क्यों, क्या आज भी आपको लोगों पर अटूट विश्वास है?"
"जी हां,कर यह विश्वास और भी मजबूत हुआ।वह ऐसे कि खरीदारी पूरी कर जब हम लौट रहे थे, एक बच्चे ने जिसकी उम्र 10- 12 वर्ष से ज्यादा नहीं रही होगी , हमें रोक कर कहा, बाबू जी आपने गोभी का पैसा ज्यादा दे दिया था। हमारे आश्चर्य से उसका मुंह देखने लगे। उसने हमें ₹ 20 लौटाए।वह हमें ढूंढते हुए बहुत आगे निकल आया था।
साथ चलते- चलते उसकी दुकान के आगे से हम निकले तो हमने उसके पिता से कहा ,आपने बच्चे को बहुत अच्छी शिक्षा दी है,वह बोला, हां बाबूजी,कम खाएंगे मगर बेईमानी का नहीं खाएंगे।'
हमने उस बच्चे को और उसके पिता को बहुत-बहुत धन्यवाद और आशीर्वाद दिए।"
"आपकी बातों से तो मुझे भी एक बार फिर यह विश्वास हो रहा कि आज भी ईमानदारी कायम है। हकीकत यह है कि हम ऐसी कहानियां ,ऐसे किस्से ही अक्सर सुनते हैं,जहां गरीब अधिकतर ईमानदार नही होते।"
"हां, अपवाद हर जगह होते हैं मुश्किल तो अमीरों से है, पैसा होते हुए भी बेईमानी नहीं छोड़ते। हमें पता नहीं था कि हम अधिक पैसे दे आए थे। वह चाहते तो रख सकते थे। इस सुखद अनुभव ने हमारी सारी थकान दूर कर दी थी।"उनके चेहरे पर आज भी अच्छाई की चमक झलक रही थी।