अबाॅर्शन

अबाॅर्शन

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'नहीं! ... इस बार मैं किसी के मन की नहीं होने दूंगी, बिल्कुल नहीं होने दूंगी। मैं अपने और अपने होने वाले संतान के साथ किसी को भी नहीं खेलने दूंगी। मैं ऐसे जगह अपने बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती, जहाँ लड़कों को जीवन दान और लड़कियों को होते मार दिया जाए, और आने वाले बहू को घर के सभी कुंवारे बेटों के साथ रहने के लिए मजबूर किया जाए.... नहीं! बिल्कुल नहीं... आज चाहे मैं लड़की जनुं या लड़का जनुं दोनों में से किसी को इस निर्दयी दुनिया में नहीं आने दूंगी। ' नेहा प्रसव पीड़ा के दर्द को भूल अपने जीवन की अन्तहीन पीड़ा को महसूस करती हुई सोच रही थी, कि जो मेरे साथ और मेरी नवजात बेटियों के साथ हुआ अब वो मैं किसी भी बच्चे के साथ नहीं होने देगी। वो अपने मन के कई उलझे सवालों को स्वयं ही सुलझा रही थी, और कितने ही जद्दोजहद के बाद उसे अपनी मंजिल मिल चुकी थी। तभी उसके रूम में डाक्टर सुचि दाखिल हुई और मुस्कुराते हुए बड़े प्यार से पूछा - 'क्यों नेहा खुश तो हो आज तुम्हारे ससुराल वाले तो बैंड-बाजे के साथ हस्पताल आये हैं। इस बार तो तुम उन्हें निराश तो नहीं करोगी।'

वहीं खड़ी उसकी सास ने हँसते हुए बड़े ही घमंड से बोला - 'अरे डाकडरनी जी इस बार तो हम सब बेटे का ही मुँह देखेंगे, बहुत पूजा - पाठ, अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी भी करवाकर ही तो हम ये सब करवा रहे हैं, नहीं तो करमजली ने तो हर बार बेटी ही बेटी को जना है।' डाक्टर सुचि के लिए जब सारी बातें सुनने से बाहर होने लगी तब उन्होंने ने नेहा की सास को बाहर जाने का इशारा किया और वो बाहर चली गई ।


डाक्टर सुचि ने नेहा के शांत और उदास चेहरे को देखा और नेहा से कहा -' तुम मुझसे क्या चाहती हो? बोलो क्योंकि तुम्हारे मन की उस उलझन को तुम खुद ही सुलझा सकती हो... बोलो तुम मुझसे क्या चाहती हूँ। ' डाक्टर सुचि के बस इतना बोलते ही नेहा ने बड़े ही निर्ममता से कहा -' डाक्टर सुचि आप मेरे बच्चे को मार डालिये उसका अबाॅर्शन कर दीजिए..... क्योंकि मैं नहीं चाहती कि मेरी कोई भी संतान इन वहशी दर्रिंदों के साथ रहने के लायक है और बड़े होकर इनके जैसे ही बने।' और ऊपर छत की ओर देखने लगी और डाक्टर सुचि चुप खड़ बबस उसे देखती रही।


डाक्टर सुचि जब आप्रेशन थियेटर से बाहर आयी तब उनके चेहरे पर एक माँ को जीताने की खुशी थी और सबके चेहरों पर खामोशी।



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