मेरी परिस्थितियां
मेरी परिस्थितियां
समय और परिस्थितियाँ ही मनुष्य को जीना सिखाती हैं। उसी तरह मुझे भी अनेक परिस्थितियों ने जीना सिखाया। आसमान से ज़मीन पर बैठना और उठकर चलना सिखाया और तो और स्वतंत्रता के साथ हर बार एक नए परवाज़ लेने की हिम्मत भी दी।
ज़िंदगी में ऐसे बहुत से वक्त आए जिसमें मन हारने लगा और मेरी हिम्मत ने भी साथ छोड़ने का भी पूरा प्रयास किया, लेकिन ईश्वर और मेरे परिवार का साथ ऐसा था, जिससे मेरे जीवन में आई कितनी ही मुश्किलों का सामना करना उन्होंने मुझे सिखाया और हौसलों को पा लेने की हिम्मत भी दी।
मुझे पता है कि मैं भावुक प्रवृत्ति की होते हुए भी अत्यधिक क्रोध करती हूँ। मेरे पिता जी के देहांत के बाद मेरे सोचने - समझने की क्षमता जैसे खत्म सी हो गयी थी, और मैं उस वक़्त हर घटना को स्वयं से जोड़ देती थी। जिससे मेरे अन्दर क्रोध ने जन्म लिया और उसके साथ मैं जिद्दी स्वभाव की बनने लगी। जिसकी वजह से मेरी नौकरी और मेरे काम पर उसका असर बहुत ज्यादा होने लगा था और मैं परेशान और चिंतित भी थी, लेकिन...
मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ कि उन्होंने, मेरे परिवार ने और मेरे अजीज दोस्त ने मुझे सबलता प्रदान की। जिससे मैं उन परिस्थितियों को पार कर पायी।
