नालायकी भरा खत
नालायकी भरा खत
कहते हैं कि मन के भावों को समझकर खत लिखे जाते हैं और यह कला हर पढ़े लिखे को आती है, लेकिन मैं कहूँ तो इस कला से शायद मैं वंचित रही या मुझे कभी लिखने का मौका नहीं मिला था।
मैंने अपने जीवन में बस दो लोगों को खत लिखा पहला खत जब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। तो उस समय मेरे बड़े भईया इलाहाबाद पढ़ते थे और उनका खत उनके एक दोस्त ने लाकर दिया था। सब ने सब कुछ लिखा और मैंने भी अपने बड़े भईया को चार पेज का एक खत लिखा जिसमें सिर्फ और सिर्फ जूते-चप्पल, कपड़े, गुड़िया लाने की बातें और गुड्डू भईया से लड़ाई करने की बात कही गयी थी। ये तो था मेरे जीवन का पहला खत जो मुझे हमेशा और हमेशा जीवन पर्यन्त याद रहेगा। और दूसरा खत.....
यह खत मैंने दसवीं परीक्षा के बाद लिखीं थी। एक दिन मेरी अम्मा के पास एक आंटी जी आई जिनका बेटा सूरत रहता था और उनको अपने बेटे के लिए खत लिखवाना था। अम्मा ने मुझे बुलाया और लिखने के लिए कह दिया और यह भी कहा कि आंटी जैसा बोलेंगी वैसा ही मुझे लिखना है। मैंने भी लिखना शुरू कर दिया और हाल-चाल लेने के बाद उन्होंने अपने बेटे का नाम लेकर खत को आगे बढ़ाती गयी और हर नये बात पर वो अपने बेटे का नाम लेती और मैं लिख देती। अब खत पूरा हो चुका था और मैंने पढ़कर उन्हें सुना भी दिया। उन्हें मेरा लिखना बहुत अच्छा लगा लेकिन मेरी अम्मा ने मुझे डांट कर कहा कि - अरे पागल उनके बेटे का नाम जो तुम 'एक सौ बीस' बार लिखी हो उसे हटाकर सामान्य रुप से फिर से लिखो क्योंकि पूरी चिट्ठी बारह पेज में पूरी हुई थी।
उस खत को याद करके मैं आज भी हँस देती हूँ। क्या मैं इतनी बड़ी नालायक हूँ।