न खाने का बहाना
न खाने का बहाना
बचपन अनगिनत शैतानियों का पिटारा होता है और अनगिनत बहानों का भी है। बात मेरे और बड़ी दीदी के दोनों बच्चे इशु और बाबू की है।
मैं और बाबू बाहर की खाने वाली चीज़ों को ज्यादा पसंद करते थे और जब कभी भी बाजार जाते उस दिन पेट भर के ही घर लौटते थे। रात में जब खाना खाने के लिए कहा जाता तो मना कर देते थे, लेकिन इधर बीच तो दीदी जब भी खाने के लिए बुलाती बाबू मना कर देता और कहता कि, “मम्मी पेट में दर्द हो रहा है। हम खाना नहीं खाएंगे।”
दीदी पहले तो सोचती थी कि शायद खाना पचा नहीं होगा, इसलिए बाबू खाना नहीं खा रहा है। लेकिन इशु को शक हुआ कि क्या कारण है? जो बाबू रोज़ खाना खाने से मना करता है और रिंकी मौसी भी बहुत कम खाना खाती है। इसका कारण पता करने के लिए इशु ने मुझसे पूछा तो मैंने तो मना कर दिया और इस बात को एक सप्ताह बीत गया।
एक दिन इशु के ट्यूशन जाने के बाद हम और बाबू स्कूल में लगे प्रोजेक्ट का सामान खरीदने के लिए बाजार गए और वहीं 'बहार रेस्तरां' में बैठकर डोसा, चाउमीन खा ही रहे थे कि इशु वहाँ आ गई और हमारी चोरी पकड़ के कहीं कि, “अब पता चला कि रोज आप दोनों को भूख क्यों नहीं लगती है? अब हम ये बात मम्मी को बताएंगे, नहीं तो हमें भी खिलाओ।”
हमने तो डोसा खिलाया लेकिन घर जाकर इशु ने यह बात दीदी को बतायी जिसे सुनकर सभी लोग हँसते रहे।