मेरी प्रेरणा
मेरी प्रेरणा
यूँ कहूँ कि... ज़िंदगी में सभी खुश है, और दिखते भी ऐसे ही है.... और तो और जताते भी ऐसे ही है, कि वो दुनिया के पहले शख्स है जो बहुत खुश रहते है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। मेरे और किसी और के साथ भी।
जब मैं आठवीं में पढ़ती थी। तब मुझे कविताएं पढ़ना अच्छा लगता था, लेकिन क्यों अच्छा लगता था, ये जान नहीं पाती थी। मुझे कविताओं की हर एक पंक्ति में एक अजीब सा अनुभव होता था। जैसे अगर उन पंक्तियों को मैं लिखती तो कैसे लिखती। ऐसे ही लिखती या कुछ और लिखती।
समय मुझे धीरे-धीरे कविता, लेख पढने का आदी बना रहा था और लिखने का भी। आदत धीरे-धीरे ऐसी होती जा रही थी कि सड़क पर चलते-चलते अगर कोई काग़ज़ भी मिलता तो उसे उठाकर, उसे झाड़कर पढ़ने लगती। लेकिन मेरी इस आदत के कारण मुझे कई बार अपने दोस्तों से डाट पड़ी, पर मेरी यह आदत कहाँ छूटने वाली थी। समय बित रहा था और लेखन के जादू से मैं उसके ओर खींची जा रही थी।
सच कहूँ तो... मेरे जीवन में एक समय ऐसा आया कि मैं खुद को अकेला महसूस करती थी। मुझे भीड़ में भी अकेलापन काटता था। मुझे वह घूरता रहता बिना पलकें झपकाए... और मैं उससे दूर भागती थी, लेकिन फिर भी जो सोचती उसको काग़ज़ पर उतार देती, पर क्यों... ये समझ नहीं आता था?
वैसे मुझे महादेवी वर्मा जी की कविताओं को पढ़ना अच्छा लगता था और उन्हें पढकर एक अजीब - सा सुकून मिलता था। उनके दर्द में डूबे एक-एक शब्द और उन शब्दों की भावनाएं... न... पूछो मेरे जीवन पर कितना असर करने लगी थी।
अब तो सोते-जागते, छूपकर बस लिखना था। अपनी सोच को... जो मैं महसूस करती थी। सच कहूँ तो महादेवी वर्मा की कविताओं में शायद मैं खुद को खोजने लगी थी। अपनी खुशी को पाने लगी थी, और धीरे-धीरे मुझे मेरा सुकून मिल रहा था। अच्छा लग रहा था कि मैं भी लिख सकती हूँ। इसके सहारे मैं दूसरों की भावनाओं को व्यक्त कर सकती हूँ और उन्हें समझ सकती हूँ।
सच कहूँ तो... मुझे प्रेम था पीड़ा से, उस दर्द से जो सबको महसूस होता है। पर कोई दिखाता नहीं। तब पता चला था, कि कविता दर्द से जन्म लेती है। मैं कह सकती हूँ कि महादेवी जी की कविताओं ने मुझे जीना सिखाया और वो मेरी प्रेरणा है।