अजनबी अंकल
अजनबी अंकल
इस दुनिया में सही मायने में अजनबी तो सभी हैं। चाहे मैं या चाहे आप सभी हो। हम सभी एक-दूसरे से अनजान है.... और तो और कभी-कभी तो जानकर भी अनजान बनने की कोशिश करते हैं, लेकिन कभी-कभी हमें कोई अनजान व्यक्ति ऐसा मिल जाता है जिससे हम जीवन के कुछ या ये कहो कि जीवन जीने के मायने सीख जाते हैं या अपने नजरिए को ही बदल देते हैं तो वो व्यक्ति हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण साबित होता है। ये सोचकर भी बहुत आश्चर्य होता है।
जीवन के इस अंतहीन सफर में कभी हम किसी के लिए अजनबी होते हैं। कभी कोई दूसरा हमारे लिए अजनबी होता है और फिर भी हमारे अन्दर सीखने और सिखाने की प्रवृत्ति रहती ही हैं।
मैं गर्मियों की छुट्टी में दिल्ली से वाराणसी जा रही थी। और मेरी टिकट कंफर्म नहीं थी, लेकिन मुझे जाना था तो मैं ट्रेन में बैठ गयी और थोड़ी देर में ही ट्रेन ने सीटी मारी और वो चलने लगी। मैं अपने मन में ये सोच रही थी कि मैं कैसे जाऊंगी रात को कितनी परेशानी होगी। न जाने क्या-क्या विचार मेरे दिमाग में चल रहा था, तभी एक बुजुर्ग अंकल ने मुझे कहाँ - 'बेटा यहाँ बैठ जाओ ये मेरी सीट है और इसकी टिकट भी कंफर्म है।' मैंने उनकी बात सुनी और कहा कि - 'अंकल अगर मैं यहाँ बैठ जाऊंगी तो आप कहाँ बैठेंगे।' वो मुस्कुराए और इशारे में बैठने के लिए कह दिया। मैं भी खड़े - खड़े थक चुकी थी। जिसके कारण मैं बैठ गयी और सोचा जब तक टी. टी नहीं आता मैं बैठ जाती हूँ। फिर वो अंकल मुझे से बातें करने लगे और थोड़ी देर बाद वहां टी. टी आ गया तो मैं खड़ी हो गई और अपना टिकट निकालने लगी। तभी उस अंकल ने कहा 23 और 24 मेरे ये दोनों सीट है और टी. टी ने अपने हाथ में लिए लिस्ट में टिक किया और चला गया।
उउस अंकल ने मुझसे कहा कि - 'बेटा मेरे साथ जिनका रिजर्वेशन हुआ था वो किसी कारण से मेरे साथ नहीं जा सके। जिससे यह सीट खाली है। तुम इस पर आराम से बैठकर और सोकर जाओ ये तुम्हारे लिए ही खाली थी।'
मैंने कहा कि अंकल आप इसके पैसे ले लीजिए, तो उस अंकल ने कहा कि - तुम मेरी बेटी की तरह हो जाओ अब तुम आराम करो।' उस दिन मुझे सच में एक अच्छे इंसान के रूप में ईश्वर ने मेरी सहायता की थी। जिसके कारण मैं आराम से वाराणसी पहुंच पायी थी। वो अंकल मेरे उतरने से पहले ही उतर चुके थे। मैं उन्हें आज भी याद करती हूँ।
