Dr Sanjay Saxena

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आत्म समर्पण भाग 1

आत्म समर्पण भाग 1

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50 लाख की फिरौती.... लेकिन पापा.. इतनी सारी रकम हम लाएंगे कहां से...?.. परेशान होते हुए रानी ने कहा! लेकिन रकम का इंतजाम तो करना ही पड़ेगा ना बेटा... दामाद जी के जीवन का प्रश्न है!

     पिछले 15 दिनों से रानी काफी परेशान थी । 15 दिन पहले डॉक्टर साहब का अपहरण बदमाशों द्वारा कर लिया गया था और तभी से बदमाशों द्वारा डॉक्टर के परिवार से चिट्ठी के द्वारा संपर्क साधा जा रहा था। साथ ही हिदायत दी गई थी कि अगर उन्होंने पुलिस को सूचित किया तो उसे अपने पति की लाश मिलेगी..! बेचारी रानी अपनी 5 वर्षीय बेटी के साथ तिल तिल कर मरने को मजबूर थी! वह समझ ना पा रही थी कि इस मुसीबत की घड़ी में वह क्या करे? पुलिस को सूचना दे ...या बदमाशों का आदेश पालन करें..!

आज शाम ही बदमाशों ने उसके दरवाजे पर 50 लाख की फिरौती की रकम देने के लिए पत्र छोड़ा था। पर इतनी बड़ी रकम वह भी 2 दिनों के अंदर वह कैसे व्यवस्था कर पाएगी ...समझ ना पा रही थी !!

मां ,बाप ,भाई सभी रानी के साथ चिंतित थे। फिरौती की रकम पर मंथन चल रहा था ।

आखिर व्यवस्था तो करनी ही पड़ेगी ना ....कैसे भी करो... रानी के पापा ने कहा...

नाश जाए इन कलमुहे डकैतों का ....जिन्होंने मेरे फूल जैसे दामाद को किडनैप कर लिया ....परेशान होते हुए रानी की मां ने कहा !

रानी के पिता घर से उठे और कुछ समय के लिए बाहर चले गए। रानी के भाई ने कहा .....दीदी हम सब के बैंक खातों से मिलाकर तो लगभग 20 लाख रुपए ही हो पा रहे हैं ....पर यह 30 लाख ... इनका आखिर क्या और कैसे इंतजाम करें।

रानी हताश बैठी थी। उसे अपने सामने सफेद साड़ी तैरती दिखाई देने लगी । अच्छी खासी हंसती खेलती जिंदगी में कैसी घड़ी आ गई।

क्या मेरा जीवन बर्बाद हो जाएगा.....?

क्या डॉक्टर साहब से मैं अब कभी ना मिल सकूंगी ...?

क्या मेरी बच्ची अनाथ हो जाएगी...? ऐसे ही तमाम अनुत्तरित प्रश्न उसके मन में कौंधे चले जा रहे थे। तभी उसके पापा अंदर आए और कहा... रानी बेटा ..अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे मकान को गिरवी रखकर बाकी रकम का इंतजाम करा दूं। अच्छा तो नहीं लग रहा....... यह सब कहते ....मगर और कोई चारा भी तो नहीं है!! हमारी खेती और घर बार बेचकर भी तो हम 30 लाख रूपए गांव से नहीं ला सकते..... गहरी सांस लेते हुए वे फिर बोले.... बेटी दामाद सुरक्षित रहे तो यह मकान तो हम फिर भी हासिल कर लेंगे... लेकिन अभी तो मकान से ज्यादा जरूरी दामाद जी की जान है ना......!!!

मैं क्या कहूं पापा.... मेरा तो दिमाग काम नहीं कर रहा..! आप जैसा उचित समझें.... करिए ...!..

     रानी के मन की बात जान उसके पापा ने मकान को गिरवी रख कर धन जुटाने का निश्चय किया। रात हो चुकी थी। पिछले कई दिनों से घर में खाने का प्रबंध गड़बड़ा चुका था। बस नन्हीं सी जान के लिए जरूरत का भोजन बन जाता था। बाकी लोगों के पेट में भोजन चलता ही न था ।

रानी अकेली होने पर सिवा रोने के और कुछ ना कर पा रही थी। डॉक्टर साहब को वह बहुत चाहती थी.... और इसी चाहत के कारण ही दोनों ने आज से 6 वर्ष पहले एक दूसरे से विवाह किया था ! डॉक्टर साहब के घर वाले तो इस विवाह के हमेशा से ही खिलाफ थे। वह तो डॉक्टर साहब ने ही घरवालों की मर्जी के खिलाफ रानी से विवाह किया था और इसी कारण उन्होंने डॉक्टर साहब से नाता तोड़ लिया था। संकट की इस घड़ी में भी वह रानी के साथ न थे... हालांकि रानी ने उन्हें सूचना दी थी पर उन्होंने रानी को ही उल्टा सीधा बोलकर मदद करने से इंकार कर दिया था।

      किसी तरह दुख की एक और रात कटी। भोर होते ही पापा ने रानी से घर के कागज मांगे और पड़ोसियों की मदद से मकान को गिरवी रखा कर 30 लाख का इंतजाम किया। कल डकैतों को यह रकम देकर डॉक्टर साहब की जान जो बचानी है।

कल यह रकम कहां ली जाएगी इसकी सूचना भी उनको पत्र के द्वारा प्राप्त हो चुकी थी । डकैतों की आज्ञा के मुताबिक डॉक्टर की पत्नी यह रकम थैले में भरकर अकेली बीहड़ में बने एक टीले के नीचे रखेगी। इस बात को लेकर उसके घरवाले काफी चिंतित थे। रानी अकेली इतना पैसा लेकर वहां कैसे जाएगी? कहीं डकैत इसके साथ कोई दुर्व्यवहार न करें....? रानी की मां ने अपने पति से बीच में ही चिंता व्यक्त की...!

  लेकिन रानी ने घर के सभी सदस्यों से कहा. ..आप लोग चिंता ना करें...! यह तो अच्छा ही है कि पैसे ले जाने का अवसर मुझे मिला। अगर मैं वापस आऊंगी तो डॉक्टर साहब के साथ अन्यथा...... हम दोनों की लाशों का एक साथ आप लोग दाह संस्कार कर देना ...! अपनी बेटी रानी के मुंह से इस प्रकार की बातें सुनकर उसके मां-बाप की आंखें भर आई । उन्होंने कहा... बेटी चिंता ना करो.... भगवान तुम्हारी रक्षा जरूर करेंगे! हम सबने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया है तो हमारे साथ ईश्वर इतना अन्याय नहीं कर सकता !

    भोर होते ही तय समय पर रानी अपनी 5 वर्षीय पुत्री राधिका के साथ चंबल के बीहड़ों में प्रवेश कर गई। इधर चप्पे-चप्पे पर तैनात डकैतों के सुराग दार डॉक्टर की पत्नी के आने की सूचना डकैतों के सरदार को दे रहे थे। तभी रानी बीहड़ में स्थित टीले के निकट पहुंची। वहां पहुंचते ही उसे एक आवाज सुनाई दी.... ठहरो आवाज सुनकर रानी ठहर गई! उसके साथ चलती बच्ची डरकर उससे चिपक गई..!

मम्मी यह आवाज किसकी है...? यहां तो कोई दिखाई नहीं दे रहा..? 5 वर्षीय राधिका ने अपनी मां से डरकर चिपकते हुए कहा..

हां ....हां... बेटी तुम चुप हो जाओ! घबराओ नहीं ! मैं हूं ना तुम्हारे साथ! इतने में एक रौबदार आवाज फिर से आई.... इस बैग को रख दो ..!रुपए तो पूरे है ना इसमें! अब तुम उस बबूल के पेड़ के पास पहुंच जाओ और हां... चालाकी बिल्कुल न करना...! वरना तुम सब को जान से हाथ धोना पड़ेगा ! चप्पे-चप्पे पर हमारे आदमी पहरा दे रहे हैं ..!

 रानी ने आदेशानुसार बैग वही रख दिया और बिना पीछे देखे ... वह आगे बबूल के पेड़ की ओर बढ़ चली तभी अचानक से......

क्या होगा रानी और उसकी बच्ची राधिका का!! क्या डॉक्टर साहब उसे मिलेंगे या यह डकैत पैसा लेकर सभी को मौत के घाट उतार देंगे। जानने के लिए पढ़िए धारावाहिक का अगला भाग


....क्रमशः.....



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