आकाश का प्रेम
आकाश का प्रेम
आकाश ...मेघा ...से बहुत प्रेम करता था, लेकिन आज मेघा... आकाश ..को अकेला छोड़ कर चली गई । आकाश से मेघा की जुदाई जब बर्दाश्त न हुई तो उसने ईश्वर से प्रार्थना की ....हे प्रभु... दुख की इस घड़ी में तुम ही मेरी मदद करो। आत्मा की करुण पुकार सुनकर प्रभु से रहा नहीं गया। वह दौड़े-दौड़े वहां आए और बोले.... वत्स तुम इतने दुखी क्यों हो ?
आकाश ने कहा प्रभु..... आप तो जानते हैं मैं मेघा से कितना प्रेम करता हूं ! लेकिन वह मुझे छोड़ कर चली गई!!
प्रभु बोले... आकाश ....मेघा से तुम इतना प्रेम क्यों करते हो ?
आकाश ने कहा... प्रभु वह मुझे बहुत अच्छी लगती है। प्रभु ने कहा वत्स.... मैं प्रेम को समझता हूं! जहां सच्चा प्रेम होता है मैं स्वयं वहां होता हूं । तुम दुखी मत हो।आज मैं तुम्हें एक वचन देता हूं .... आज तुम्हें सूर्यास्त तक जो अच्छा लगेगा.... जिसको तुम अपना बनाना चाहोगे... वह मैं तुम्हें दे दूंगा !
प्रभु का वचन सुनते ही आकाश के चेहरे पर संतुष्टि का भाव प्रदर्शित होने लगा। प्रभु के द्वारा दिए गए वचन ने उसे फिर से प्रसन्न होने का एक अवसर दे दिया। वह अपने तेज कदमों से आगे...... और आगे ....बढ़ता जा रहा था। उसे जो भी भाता वह उसे अपनी डायरी में लिख लेता । पर्वत, झरने कल-कल करती नदियां, पशु, पक्षी, महिलाएं , बच्चे सब कुछ वह लिखता जा रहा था। आखिरकार सूर्यास्त का वह समय भी आ गया जहां उस वरदान की सीमा समाप्त हो गई। प्रभु एक बार फिर से अपने वचनानुसार आकाश के सम्मुख उपस्थित हुए । आकाश ने प्रभु को दंडवत करते हुए अपनी पसंद और प्रेम पत्रिका प्रभु को थमा दी।
प्रभु इतने सारे नाम देखकर पहले मुस्कुराए फिर बोले..... वत्स इतनों से तुम प्रेम करते हो ।आकाश ने कहा.. हां प्रभु.. यह मुझे बहुत भाते हैं। मैं चाहता हूं यह हमेशा मेरे साथ रहे।प्रभु ने कहा वत्स... यह तो एक दिन की प्रेम पत्रिका है!! जरा सोचो... अगर मैं तुम्हें अपनी प्रेम पत्रिका बनाने के लिए एक वर्ष और... फिर सारा जीवन दूं... तो क्या तुम्हारी यह पत्रिका पूर्ण हो सकेगी ?
प्रभु की बात सुनकर आकाश खामोश रहा। वह समझ नहीं पा रहा था कि प्रभु क्या कहना चाह रहे हैं। प्रभु ने कहा वत्स मैं तुम्हारी इस प्रेम पत्रिका को तुम्हें दे सकता हूं लेकिन इसके लिए तुम्हारा घर भी तो बड़ा होना चाहिए !!! प्रभु की बात सुनकर आकाश का मन उदास हो गया ! लेकिन भक्त की उदासी प्रभु को अच्छी नहीं लगी उन्होंने कहा वत्स... तुम उदास न हो आज से मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि समस्त संसार ही तुम्हारा घर होगा !! मेघा ही नहीं जो तुम्हें अच्छे लगें, तुम जिससे सच्चा प्रेम करो ...वह सब तुम्हारे होंगे!! और तुम ऊपर रहकर संसार की समस्त खूबसूरत चीजों को प्रेम से देखते रहो । तुम चिरंजीव रहो और हमेशा अपनी प्रेम पत्रिका बनाते रहो... कभी न भरने वाली प्रेम पत्रिका।
प्रभु अंतर्ध्यान हो चुके थे।आकाश ईश्वर का संदेश समझ चुका था। समस्त पृथ्वी उसका घर बन गई । वह ऊपर रहकर ही समस्त संसार का अवलोकन करता रहता है।उसने सभी से प्रेम करके अपने को बड़ा बना लिया। वह समझ चुका था कि.... प्रेम... व्यक्ति को ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है .…....बहुत ऊंचाइयों तक