Dr Sanjay Saxena

Tragedy

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Dr Sanjay Saxena

Tragedy

मां की ममता

मां की ममता

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    अंशुल आज बहुत उदास था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अब वह क्या करे। कभी वह अपनी छोटी बहिन रानी को देखता तो कभी अपनी माँ की याद करता जो आज इस संसार में नहीं थी। दरअसल माँ के मरने के बाद अचानक ही अंशुल पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। वह बचपन से ही बहुत शरारती और चंचल था। उसकी माँ हर वक्त उसको समझाली रहती कि बेटा तुम मन लगाकर पढ़ा करो और अपनी जिम्मेदारियों को समझा करो। मगर अंशुल माँ की बात इस कान से सुनता ओर उस कान से निकाल देता। मां की बातों का तो उस पर जैसे कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता था। माँ भी सोचती कि वह अकेला तो है ही उम्र के साथ धीरे- धीरे सब कुछ ठीक हो जायेगा । लेकिन अंशुल उम्र बढ़ने के साथ और अधिक शरारती होता जा रहा था।

            अंशुल के पिता मजदूरी करते थे किन्तु वह अपनी कमाई को नशे में ही बहा देते थे। साथ ही अंशुल की माँ को भी मारते- पीटते भी थे। वो अंशुल को भी काम करके पैसे लाने के लिए कहते किन्तु माँ ही पिटती-पिटाती उसे काम न करने देती थी। वो चाहती थी कि उसका बेटा पढ़ लिखकर अच्छा इंसान बने और अपनी अच्छाई- बुराई खुद पहचाने।

             धीरे -धीरे समय बीतता गया। अंशुल और उसकी बहिन रानी अब बड़े हो चले थे तभी अचानक उनकी माँ का स्वास्थ्य खराब रहने लगा। अंशुल की मां अपने खराब स्वास्थ्य से ज्यादा अपने बच्चों की चिन्ता करती। वह सोचती कि अगर वह इस दुनियाँ में नहीं रहीं तो उनके इन गरीब बच्चों की मदद करने वाला कोई नहीं होगा। यही सोच- सोचकर उनका स्वास्थ्य दिन - प्रतिदिन खराब होता जा रहा था।

             एक दिन अंशुल की माँ ने अपनी बेटी रानी और इकलौता बेटे को अपने पास बुलाया। वे दोनों अपनी माँ के पास आकर बैठ गये। उनकी माँ ने कहा-बेटा शायद अब मेरा अन्तिम समय निकट आ गया है। अभी तक तो तुमने मेरी बात कभी सुनी नहीं लेकिन अब मेरी बात ध्यान से सुनो-अब तुम ही अपनी छोटी बहिन का खयाल रखना तथा अपनी मेहनत से अपना खर्च चलाना। तुम्हारे पिता ने तो हम सबको कभी सुख दिया नहीं किन्तु तुम अपनी बहिन को सदा सुखी रखना। इतना कहते-कहते माँ को तेज खाँसी आई और उसके प्राण पखेरू सदा के लिए बच्चों को अकेला छोड़ गये।

            दोनों बच्चे माँ-माँ चिल्ला- चिल्लाकर रोने लगे। आज अंशुल ने पहली बार माँ की बातों को ध्यान से सुना था लेकिन उसकी माँ अब उसे सदा के लिए बिलखता छोड़ गई। अब उसे माँ की पुरानी बातें याद आने लगीं। वो अपनी मृत मॉ के चरण पकड़कर उनसे अपनी गलती की क्षमा माँगने लगा। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी माँ इतनी जल्द कहाँ चली गई। वह रो-रोकर कह रहा था- माँ मैं अब हमेशा तुम्हारी बात मानूँगा तुम रूठ कर मुझसे दूर मत जाओ l लोगों ने समझा-बुझाकर उसकी माँ का अन्तिम संस्कार कराया।

            माँ के अन्तिम संस्कार को कुछ ही दिन बीते थे कि अंशुल के पिता ने किसी बात को लेकर दोनों बच्चों को घर से निकाल दिया। इसी सबसे परेशान अंशुल काफी उदास बैठा था। उसकी आँखें माँ की याद में आँसू बहा रही थीं, सामने भूखी बहिन बैठी थी। जब वह उसे देखता तो माँ की बात याद आ जाती। उसे लगता कि इस छोटी सी उम्र में माँ ने उस पर कितनी बड़ी जिम्मेदारी छोड़ दी है किन्तु अगले ही पल वह उस वचन को पूरा करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हो जाता और सोचता कि चाहे मैं दुखी रहूँ किन्तु माँ की इस धरोहर को कभी दुखी नहीं रहने दूँगा।

             अंशुल को अब काम की तलाश थी लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अब वो क्या करे ? उसे अब अपनी माँ के साथ भगवान भी याद आने लगे। वह कहने लगा भगवान अब तू ही मेरी मदद कर, सुना है जिसका कोई नहीं उसकी रक्षा तू ही करता है। तभी अचानक एक गाड़ी उसके सामने आकर रुकी। उसमें दो आदमी बैठे थे। एक आदमी उतरकर दुकानों की ओर बढ़ गया और दूसरे ने उससे पूँछा-बेटा क्या तुम गाड़ी साफ कर सकते हो? अंशुल को लगा जैसे भगवान ने उस नन्हे को राह दिखा दी है। उसने तुरंत कपड़े से गाड़ी को साफ किया और उससे मिले रुपयों से दोनों ने खाना खाया।

             अब अंशुल को माँ की ममता और उसकी जरूरत समझ में आ गई थी। वह अकेले में माँ और भगवान की याद करता तो उसे लगता जैसे वे उसके साथ ही हैं और उसके मेहनत के कार्य में उसकी मदद कर रहे हैं। उसने प्रण किया कि अब वह प्रतिदिन इसी प्रकार मेहनत से पैसे कमायेगा और अपनी माँ के सपनों को साकार करेगा ॥


                 



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