Dr Sanjay Saxena

Tragedy

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मां की कमी

मां की कमी

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मां जगत का पहला वह शब्द जो शायद ॐ नाम से भी महान है। यह वह जीती जागती प्रतिमा है जो जीव को जन्म के बाद सबसे पहले अपने सामने दिखाई देती है।

यूं तो जीव को उसका आभास उसी दिन से होने लगता है जिस दिन से सूक्ष्म शरीर मां के गर्भ में अवतरित होता है। दुनिया के सभी जीवो में सिर्फ मां का ही अस्तित्व चारों ओर दिखाई देता है। इंसानों में ही नहीं वरन सभी जीवो में करुणा और दया की यह मूर्ति तब आक्रामक हो उठती है जब उसके बच्चों पर किसी भी प्रकार का प्राण संकट आ जाता है। ऐसी स्थिति में वह अपनी जान तक की परवाह किए बगैर ताकतवर दुश्मन से भी भिड़ जाती है और कई बार तो अपने बच्चों के लिए अपनी जान तक भी न्योंछावर कर देती है।

आपने अपने मोबाइल पर अनेक बार जीव व पक्षियों की मां को ऐसा करते देखा होगा। पर वे ऐसा क्यों करती है...? आइए समझे...!!

दरअसल जब एक मादा और नर प्रेम भाव से भर अपनी कामवासना की तृप्ति के लिए मिलते हैं तब एक जीव का जन्म होता है। वह जीव सिर्फ और सिर्फ मां के गर्भ में ही अवतरित हो सकता है। जहां पर उसके शरीर के किसी भी भाग का अभी तक कोई निर्माण नहीं हुआ होता। ऐसी स्थिति में मां को अपने गर्भ में एक जीवात्मा के आने का जब एहसास हो जाता है तभी से वह उसको प्रेम करने लगती है। वह उसकी सूरत देखने के लिए व्याकुल रहती है। वह अपने कृत्य को निहारना चाहती है। किंतु वह जानती है कि यह तय समय पर ही हो सकेगा। वह हर घड़ी उसको प्रेम से सुरक्षित रख अपनी सांसों से जीवन ऊर्जा देती है । उसके शारीरिक विकास के लिए अपने खून से उसका पोषण करती है अर्थात वह जीवात्मा उस मां का एक प्रकार से एक्सटेंशन ही होती है। इसी कारण मां को उससे इतना लगाव हो जाता है।

वह जीवात्मा उसके साथ एक निश्चित समय अवधि तक आत्मीयता से उससे जुड़ी रहती है जहां वह भी अपनी मां की धड़कनों को सुनकर बड़ी हुई होती है। ऐसे में मां को जन्म से पूर्व ही वह आत्मसात कर लेती है।

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि... किसी भी जीव की मां का हृदय उस समय व्याकुल हो उठता है जब उसके बच्चे पर घोर संकट आ जाता है या वह मर कर उससे हमेशा हमेशा के लिए दूर चला जाता है! ऐसा अनुभव पशु पक्षी सभी में देखा गया है । वे व्याकुल होते हैं उन्हें बच्चे पर खतरे का एहसास हो जाता है। मगर क्यों ..? शायद उनका बच्चे से आत्मागत लगाव व जुड़ाव के कारण ही। जबकि यह अनुभव बच्चे के पिता को नहीं होता । इसी कारण मां का दर्जा सर्वोपरि है ।

आपने मानव जगत में देखा होगा कि एक स्त्री जिसको मां उसके पति ने बनाया... तथापि वह अपने उसके निकट तो है, उसको प्रेम तो करती है... मगर उतना नहीं... जितना वह अपनी संतान को..!! इसी कारण यदि एक स्त्री को पति और पुत्र में चुनाव करने का समय आए तो वह अपने पति के साथ चुनती है। शायद आपको यह चुनाव गलत लगे। मगर इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि... वह जानती है कि उसकी संतान अभी छोटी और कमजोर है..! वह बाप का मुकाबला नहीं कर सकती। तब वह उसको सुरक्षित रखने के लिए अपने दिल पर पत्थर रख अपने पति के साथ रहती है ताकि वह उसके प्रेम में पडकर उसके पुत्र को नजरअंदाज करता रहे और उसका पुत्र जल्द बड़ा और ताकतवर हो जाए।

ऐसा ही एक दृश्य मुग़ल-ए-आज़म फिल्म में भी दर्शाया गया था। जहां कि मां ने अकबर और सलीम में से अकबर का साथ देना स्वीकार किया था ।

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि संतान से एक मां का अटूट प्रेम उसके साथ तय समयावधि तक एक आत्मीयता से जुड़े रहने के कारण होता है । जबकि उसका पति से आत्मीय जुड़ाव कुछ ही क्षणों का होता है। तो यह समझना मुश्किल नहीं कि पति और पुत्र में से उसकी आत्मा के निकट कौन अधिक होगा ।

यह हर एक पुरुष को भी समझना होगा कि... जैसे वह अपनी मां को सर्वोपरि समझता है वैसे ही वह स्त्री जिसे उसने मां बनाया है उसकी संतान उसे सर्वोपरि समझेगी। पिता और पुत्र की टकराहट की जड़ दरअसल यहीं से पड़ती है। स्त्री का प्रेम जब उसकी संतान और खासतौर से पुत्र को मिलने लगता है तो पिता के मन को बहुत पीड़ा पहुंचती है और वह उसको डांटता फटकारता रहता है। ऐसा जानकर नहीं अनजाने अवचेतन में घटित होता है। जिसका उसको भी पता नहीं होता। इसी कारण पुत्र 90% मौकों पर हमेशा अपनी मां को सर्वोपरि ही नहीं समझता बल्कि उसके साथ खड़ा दिखाई देता है।

अगर पुरुष को अपनी पत्नी से आत्मीय प्रेम चाहिए तो उसे अपनी संतान को भरपूर प्रेम देना होगा और मां के साथ ही स्त्री को भी उचित सम्मान देना होगा। तभी सच्चे अर्थों में वह अपनी मां को सम्मान दे सकेगा। क्योंकि स्त्री भौतिक रूप से एक है और उसके प्रेम को पाने वाले भौतिक रूप से दो प्राणी है.. पिता और पुत्र ..!

स्त्री के पास भरपूर प्रेम है ...बस आपको उसके साथ आत्मीय बनकर रहना होगा..!!

अंत में सभी माताओं को मेरी तरफ से मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएं।


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